Saturday, September 24, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा -3


कटरा से जम्मू सड़क मार्ग में एक सुरंग । 
आज दिनांक 5वी मई 2016 है । आज कोई प्रोग्राम नहीं था क्योंकि माता जी का दर्शन कल पूरी हो गयी थी । यहाँ से वापसी भी 6 तारीख को था । 24 घंटे व्यर्थ न जाये , अतः कुछ भ्रमण की तैयारी करना जरुरी लग रहा था । हमने निर्णय लिया कि क्यों न सड़क मार्ग से जम्मू चला जाय । ये कश्मीर है । एक समय था जब इसे भारत वर्ष का स्वर्ग के नाम से जानते थे । आज वह खोता नजर आ रहा है । जिधर देखो उधर डर का माहौल व्याप्त है ।आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आ गयी है । कब क्या हो जायेगा , कोई तय नहीं कर सकता । इसकी आशंका होटल मालिक ने कर दूर कर दी । उसने कहा की आप आराम से बिना भय के कटरा से जम्मू जाएँ । कोई परेशानी नहीं होगी । कहे तो मैं टूरिस्ट कार की व्यवस्था कर देता हूँ । यह भी बिलकुल साठीक सुझाव था । किसी अनजाने की कार को भाड़े पर ले जाना ठीक नहीं था । हमने होटल टुडे के माध्यम से एक कार किराये पर ली । भ्रमण कराते हुए जम्मू तक छोड़ने का 1500/- रुपये । चलो ठीक है । करार हुयी और हमने अपनी यात्रा 10 बजे से शुरू की । हमने अपने पुरे सामान कार में रख दिए और होटल टुडे को अलबिदा कहा ।

हमने मन ही मन बैष्णो माताजी को प्रणाम किये और सुख शांति की दुआ की आग्रह के साथ फिर दुबारा आने की लालसा व्यक्त की । कार कटरा के छोटी छोटी गलियो से होते हुए शहर से बाहर निकला  मुझे ट्रेन की सफ़र तो पसंद
 है ही , पर कार की मजा अलग ही होती है । हम सब कुछ करीब से देख और परख सकते है ।कार  दोहरी सड़क पर दौड़ने लगी । चारो तरफ हरियाली ही नजर आ रही थी जबकि गर्मी का मौसम था । इन वादियो के नज़ारे बरसात में देखते ही बनते होंगे । जंगलो और झाड़ियो में गाँव दिखाई दे रहे थे किन्तु प्रत्येक घर एक दूसरे से दुरी पर थे । वीरान और सुनसान सा । इसीलिए आतंकवादियो के मनसूबे सफल हो जाते है । जेहन में एक तरह से डर भी लग रहा था और आनंद भी । चलते चलते कई पिक भी लिया गया ।

सेल्फ़ी लेने में मजा है या अपनी जिगर की चाहत । क्या हम अच्छे लगते है । ये भी एक आधुनिकता की पहचान है । आये दिन इस कृत से कईयो की जाने भी जा चुकी है । हमारी यात्रा आगे बढती रही । सडको के किनारे हरियाली और नयी नवेली सड़क मुग्ध कर रही थी । सड़क यात्रा के दौरान मंदिर और संग्रहालय व् एक छोटा सा चिड़ियाघर दिखा । रास्ते में ही कौल कंडाली माता बैष्णो देवी जी का मंदिर है । इस जगह से माता जी का लगाव था । कहते है की इसके दर्शन भी बैष्णो माँ के दर्शन पुरे कर देते है । यह मंदिर यहाँ के लोकल लोगो के प्रबवधन में है । साफ सुथरा है । यहाँ एक कुँआ भी है जिसके पानी पिने से फल की प्राप्ति होती है । मैं विस्तार में नहीं जाना चाहता । आप खुद ही पिक और विवरण को पढ़ जानकारी प्राप्त कर सकते है । 
जूम कीजिये और विवरण पढ़िए ।
जूम कीजिये और विवरण पढ़िए ।
जूम कीजिये और विवरण पढ़िए ।
जम्मू घाटी की एक सुखी बरसाती नदी ।
ये एक कश्मीरी राजा के बंशजो द्वारा बनायीं गयी अमर महल संग्रहालय है । इसे हरी तारा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है । जिसमे उनके कुछ परिवारो की तस्वीर प्रदर्शित है । श्रीकरण सिंह । एक सोने का सिंहासन  भी है । इसके अंदर जाने का किराया मात्र 20 रुपये प्रति व्यक्ति है । एक तरफ नदी तो दूसरी तरफ हरी भरी फुलवारी है । कार , मोटर या टूरिस्ट बसो के लिए पार्किंग भी है । जीवन में बहुत से म्यूजियम देखे है किन्तु यहाँ निराशा ही हाथ लगी ।  इसके आस पास के बगीचे में घुमे । आम के पेड़ो पर मोजर आ गए थे । चौकीदार छूने नहीं दे रहे थे । यहाँ से निकल कर चिड़ियाघर पहुंचे । यहाँ भी इक्के दुक्के पक्षी और कुछ बाघ के सिवा कुछ नहीं था । 
अब हम जम्मू शहर में आ गए थे । यहाँ एक मंदिर है ।जिसे देखने गए । दरवाजे पर सिक्युरिटी वाले सब कुछ चेक किये । मोबाइल या कैमरे अंदर ले जाना मना है । हमने प्रमुख द्वार के खिड़की पर जमा कर दिए । मंदिर के अंदर कोई खास भीड़ नहीं था । मंदिर के प्रांगण में अलग अलग कई कमरे है । इन सभी कमरो में अलग अलग देवी - देवताओ की मूर्तिया है और सभी जगह एक पुजारी का ड्यूटी था । जिस मंदिर में भी गये ,  वहाँ पुजारी के मंत्रो का सामना करना पड़ा और उस के एवज कुछ न कुछ दक्षिणा देना पड़ा । प्रभु के भोग या गरीब अन्न दान के स्वरूप  । जो एक पारंपरिक रिवाज है । 
जो भी हो भगवान सबके दाता है । जो नसीब में होगा भाग कर आएगा। जो नहीं होगा वह लाख चतुराई के बाद भी चला जायेगा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे । कोई विशेष दर्शनीय स्थान न होने की वजह से यात्रा समाप्त करनी पड़ी । अतः हम आश्रय के लिए एक लॉज में गए । जो रेलवे स्टेशन के ही नजदीक था । शाम के समय बाजार में खरीददारी हुई । लेकिन हाँ यहाँ जेहन में हमेशा डर सत्ता रहा था । ये कश्मीर है पहले जैसा नहीं । अब कल की यात्रा यानि 6 मई 2016 - अगले कड़ी में । इसे जरूर पढियेगा । यह मेरे जीवन का एक अजूबा था या भूल । कुछ कह नहीं सकता ।
अब फिर मिलेंगे " माँ वैष्णो देवी यात्रा - 4 " में 



Saturday, July 2, 2016

माँ बैष्णो देवी यात्रा - 2

मेरी जीवन संगिनी और बाला जी ।  कटरा स्टेशन 
कटरा स्टेशन में हमने कुछ तस्वीर अपने मोबाइल में कैद किये । हमें रेलवे को बधाई देनी पड़ेगी जिसने इन खूबसूरत कश्मीर के वादियो में पहाड़ो को काट छांटकर एक सुन्दर स्टेशन का निर्माण जो किया है । मई का महीना गर्मियों भरा होता है फिर भी चारो तरफ हरियाली थी । मौसम तो बादलो से ढका जैसा । नरम सी सर्दी लग रही थी । प्राकृतिक की सर्दी कृतिम सर्दी से लाखगुना अच्छी लग रही थी । जिधर देखो उधर ही नजरो को सिर्फ व् सिर्फ हरियाली  ही दिखाई दे रही थी। स्टेशन से बाहर आते ही पहाड़ो के ऊपर माँ वैष्णो देवी जी का मंदिर दिखाई दे रहा था । जाने आने के रास्ते नजर आ रहे थे । बाहर कोई ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं था । दर्शनार्थियों को यात्रा के पूर्व पंजीकरण की पर्ची लेनी पड़ती है । जो पूर्ण रूप से कम्प्यूटरिकृत है । यह सुविधा रेलवे , बस स्टैंड और जहाँ से यात्रा शुरू होती है ( वाणगंगा ) में उपलव्ध है । हमने अपने  पंजीकरण यही से करवा लिए क्यों की हम रेलवे स्टेशन में मौजूद थे । इस प्रक्रिया से सभी को गुजरना पड़ता है । इसमे हमारे नाम , स्थान को हमारे पिक के साथ रेकॉर्ड किया जाता है और एक टिकट व्यक्ति को दी जाती है । इस कार्ड की जरुरत यात्रा के दौरान कई जगहों पर पड़ती है । आवश्यकता के समय सुरक्षाकर्मियों को दिखानी पड़ती है । इसे सुरक्षा कर्मी मंदिर में प्रवेश करने के पहले ले लेते है । कटरा स्टेशन भाग दौड़ की शहरी जिंदगी से बिलकुल शांत लगा । साधारण भीड़ । एक झुण्ड में सिमटे घर ।

हम स्टेशन से बाहर निकले । इस अनजान शहर में एक आश्रय की जरुरत थी । कोई जान पहचान वाला नहीं था । अतः होटल के कमरे लेना जरुरी था । सामने रोड पर एक दलाल घूम रहा था । हमें खड़े देख पास आया और पूछा - साब रूम चाहिए क्या ? हमने हामी भरी तो उसने कहा - मिल जायेगा । ये सी या नार्मल ? कटरा का वातावरण बिलकुल ठंढा था अतः वातानुकूलित का प्रश्न नहीं था । हमने कहा - नार्मल रूम चलेगा । किन्तु साफ सुथरा रहनी चाहिए । उसने कहा - आप चल कर कमरा देख ले । पसंद आये तो रहे अन्यथा दूसरे जगह ले चलूँगा । 1200/- लगेगा । हमने कम कराये तो हजार पर राजी हो गया । उसने किसी को फोन किया और एक कार सामने आकर रुकी । हमें बैठने का इशारा हुआ । हम लोग कार में बैठ गए । करीब 2 मिनट में कार एक होटल के पोर्टिको में प्रवेश किया । जिसका नाम होटल टुडे है जो रेलवे स्टेशन रोड में स्थित है । हमने प्रोग्राम के अनुरूप रुम का मुआयना किया । रूम बिलकुल अच्छे थे । हमारी सहमति के बाद कागजी प्रक्रिया पूरी हुई । होटल का मैनेजर हमारी आईडी नहीं पूछा । जबकि हम तैयार होकर चले थे । हमने हमारे कमरे में प्रवेश किया जो ग्राउंड फ्लोर पर ही था ।

हम दिन चर्या से निवृत होकर तैयार थे । नास्ते का समय था । हमने होटल से ही आलू पराठे और दही लिए । आदत तो नहीं था पर स्वाद अच्छे लगे । आज आराम करने का प्रोग्राम था  चुकी कोई थकावट तो नहीं थी । इसीलिए हमने आज ही मंदिर जाने के प्रोग्राम तय कर ली । होटल वालो ने भी बताया  की अभी जाने से शाम तक वापसी संभव है । यहाँ के होटलो में एक समानता है । सभी के पास अपनी कार है । ये यात्रियों को मुफ़्त में रेलवे स्टेशन या वैष्णो देवी यात्रा की शुरुवाती द्वार वाणगंगा तक  ले जाते है और वापस भी ले आते है । तो हमने पूर्णतः आज ही मंदिर जाने का निश्चय कर लिया ।

बालाजी होटल के मुख्य द्वार पर ।


होटल का मैनेजर अपने कार के ड्राईवर को निर्देश दिया की साहब को वाणगंगा तक छोड़ आये , जहां से माँ के मंदिर के लिए यात्रा शुरू होती है । उसने वही किया । हम वाणगंगा के नजदीक बाजार में थे जहा कार ड्राईवर ने हमें छोड़ी थी । चारो तरफ प्रसाद की  दुकाने लगी हुई थी । दुकान दारो ने अपने दलाल छोड़ रखे थे ।  हमें अपने तरफ आकर्षित करने लगे । हम पहली बार आये थे अतः प्रसाद खरीद लिए । मुख्य द्वार की तरफ चल पड़े । एक छोटा भेंडर आया और चांदी  के सिक्के मातादी के तस्वीर वाले लेने  के लिए विवश करने लगा । हमने अपनी अनिक्षा जाहिर की । वह गिड़ गिड़ाने लगा । साहब ले लो । यही हमारे जीविका  का साधन है । सौ रुपये में 6 ले लो । हम अनजान सा आगे बढ़ते रहे । वह मायूस हो गया और बोला - साहब आप लोग दूसरे जगह हजारो खर्च कर देंगे पर गरीब की भलाई के लिए कुछ नहीं सोंचते । बात पते की थी । कटु सत्य । मेरे मन में उसके प्रति सहानुभूति जगी और मैंने न चाहते हुए भी 6 चांदी के सिक्के जिस पर माँ की तस्वीर छपी थी ले लिए । उसके मुख पर मुस्कराहट खिल  पड़ी । 

कुछ आगे बढ़ते ही पालकी और घोड़ो के मालिको से सामना हुई । वे भी घेर लिए । श्रीमती जी शुगर की मरीज है । पैदल यात्रा संभव नहीं था । घोड़े या पालकी जरुरी था । मुझे भी पैदल की आदत नहीं है । पालकी वाले 5 हजार और घोड़े वाले ने 1850/- की मांग रखे वह भी प्रति व्यक्ति । हेलीकॉप्टर से जाने का प्लान था किन्तु इसकी बुकिंग 2 माहपूर्व करनी पड़ती है । करेंट संभव नहीं था । माँ की यात्रा , और पॉकेट पर बल न पड़े अतः हमने घोड़े की सवारी का निर्णय किया । बहुत जद्दो जहद के बाद 1500/- प्रति व्यक्ति पर जाने और ले आने की बात बनी । घोड़े पर सवार होने के लिए जगह जगह प्लेटफॉर्म बने हुए है । घोड़े की सवारी भी अजीब लगी । घोड़े के टॉप और हमारे शरीर में उछल कूद आनंददायी थे पर यात्रा के बाद कमर को दर्द का अहसास हुआ । वाणगंगा से मंदिर की चढ़ाई 13 किलोमीटर है । इसी रास्ते में अर्धकुआरी माता जी का मंदिर है । जिनका दर्शन करने के लिए एक गुफा से गुजरना पड़ता है । जो सभी के लिए उपयुक्त नहीं है । घोड़े से यात्रा करने के समय यह मंदिर बाईपास हो जाता है । अगर मन में इच्छा हो तो घोड़े के मालिको से कह , यहाँ भी जाया जा सकता है । चढ़ाई के रास्ते पक्के है । जगह जगह शेड भी मिल जाते है । छोटे छोटे दुकान भी मिलते है। रास्ते में पड़ने वाले दुकान बहुत पैसे वसूल करते है क्योंकि उन्हें अपने सामान घोड़े के माध्यम से लाने पड़ते है ।  वैसे तो गर्मी का मौसम था किन्तु सुबह से धुप नदारद थी  । उस पर यात्रा के दौरान एक दो जगह बारिस भी हुई जिससे मौसम खुशनुमा हो गया था । लोग पेट के लिए क्या क्या न करते है । हम घोड़े पर बैठे थे और उनका मालिक उन्हें पकड़ कर निचे चल रहे थे । यात्रा के दौरान जगह जगह चेक पोस्ट मिले ।

तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।

बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है ।  इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।

चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच  ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में । 

Thursday, June 2, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा ।

झेलम एक्सप्रेस का खाना 
माँ बैष्णो देवी के दर्शन के बाद लौटते हुए 
बहुत दिनों से जम्मू कश्मीर की यात्रा की इच्छा थी । वह भी वैष्णो देवी माँ  का दर्शन । सुना था की मंदिर तक पैदल रास्ता ही है ।  जेब भारी हो तो और भी दूसरे साधन उपलब्ध है जैसे घोड़े या पालकी या हेलीकॉप्टर ।  1983 वर्ष में श्रीनगर गया था । किन्तु बैष्णो देवी माँ के दर्शन करने की इच्छा पूरी न हो सकी  थी क्यों की किसी और कार्य से गया था । वैसे लोग कहते है कि माँ जिन्हें बुलाती है , वही उनके दरबार तक जा पाता है । उस समय विवाह भी नहीं  हुई  थी । किन्तु जम्मू कश्मीर में उस समय किसी तरह का डर भय या आतंकवाद  नहीं था ।हमारे घर में एक यात्रा का प्रोग्राम प्रति वर्ष बन ही जाता है । ये सच है की किसी भी यात्रा में आर्थिक परिस्थिति ही साथ देती है जो आप को प्रति क्षण संयोजे रखती है । आज कल देश का भ्रमण सबके लिए बस की बात नहीं है । दिन ब दिन महंगाई दबोचे जा रही है । हमारे साथ भी यही समस्या आ खड़ी थी  जिसका नियोजन यात्रा के पूर्व ही कर लिया था ।

मंदिर की लोकेशन जेहन में भय पैदा कर रही थी । फिर भी हिम्मत से  सभी तैयार हो गए ।  जेब खाली हो तो यात्रा दर्शन के नज़ारे मनहूस सा लगते है । हमें एक चीज का फायदा जरूर है की ट्रेन के यात्रा खर्च बच जाते है । फ्री पास जो उपलब्ध है । हमने  पूरी तैयारी के साथ गुंतकल से नई दिल्ली से कटरा से लुधियाना से फिर नई दिल्ली से शिरडी से गुंतकल का अग्रिम टिकट बुक कर लिए थे । सारे के सारे कंफर्म हो गए थे । 2 मई 2016 को कर्नाटक एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ट्रेन चलाते वक्त जो अनुभूति मिलती है उससे ज्यादा आनंद  ट्रेन से यात्रा में है जो मुझे बहुत पसंद है । वह भी लंबी दुरी  हो तो कुछ और ही  ।

मैं बहुत अनुशासित हूँ , मुझे नाइंसाफी पसंद नहीं है । अतः किसी भी हद का विरोध जल्द कर देता हूँ । कर्नाटक एक्सप्रेस में खाने पिने के लिए पैंट्री उपलब्ध है । आज कल ट्रेन में कोई  भी चीज सस्ती नहीं है । अतः मेरा सुझाव है कि आप अपनी यात्रा के पूर्व खाने पिने की व्यवस्था घर से करके ही चले तो सुखमय है । एक जगह एक वेंडर 20 रुपये में एक बोतल पानी दे रहा था । जिसके ऊपर मैं गुस्सा हो गया था और कोच से बाहर चल जाने के लिये कहा क्योंकि पैंट्री वाले 15 रुपये में दे रहे थे । खाने के मामले में  पैंट्री वाले पैसे बहुत वसूलते है पर खाना ऐसा की एक छोटे बच्चे का पेट भी नहीं भरेगा । चलिए इसी बहाने पैसे से आंशिक उपवास भी हो जाता है ।

3 मई को दिल्ली पहुँच गए । रिस्तेदार बहुत है । उन्होंने घर आने की रिकुवेस्ट की थी । किन्तु फिर शाम को 5.30 बजे श्रीशक्ति एक्सप्रेस से कटरा के लिए रवाना होना था  । अतः चार  5 घंटे के लिए कहीं  दूर जाना मुनासिब नहीं लगा  । दस बज रहे थे अतः रिटायरिंग रूम में समय व्यतीत कर लेना ही उचित समझा । रिटायरिंग रूम में डबलबेड वाला रूम 250/- में  मिल गयी । 5 बजे शाम तक के लिए केवल ।हमलोग  स्नान वगैरह कर स्टेशन के बगल में स्थित बाजार में चल पड़े । जहाँ कुछ छोटी मोटी खरीदारी हुई और दोपहर का भोजन । छोले भटूरे। नया नाम पर सुना  हुआ । हमारे दक्षिण में नहीं मिलती है । हमने इसके स्वाद चखे । चटक और मजेदार लगा । वापसी में अनार ख़रीदे जो सौ रुपये से भी ज्यादा प्रति किलो था । हमारे यहाँ 60 या 70 के दर में मिल जाते है । समय कैसे बिता । पता ही नहीं चला । मौसम भी नरम और अनुकूल था ।

सामान समेट कर 17 बजे प्लेटफॉर्म में आ गए । अभी श्रीशक्ति एक्सप्रेस ( 22461 ) का रेक बैक नहीं हुआ था । 15 मिनट बाद हम 2 टेयर ऐसी कोच में प्रवेश किये । समय से ट्रेन रवाना हुई । संध्या होने वाली थी । वेंडर कोच में फिरना शुरू कर दिए थे । हमने पनीर पकौड़े के दो पैकेट ख़रीदे । चार्ज 120 रुपये लगा । पैकेट खोले । प्रति पैकेट में शायद 5 पकोड़े थे , वह भी छोटे छोटे । दुःख हुआ इस नाइंसाफी के लिए । हमारे पास रात्रि भोजन भी नहीं था । ट्रेन में खरीद कर हल्का फुल्का खा लेंगे , समझ कर बाहर से नहीं लाये थे । पैंट्री में ही 3 भोजन ( शाकाहारी ) का आर्डर दे दिया  । ट्रेन अम्बाला पहुच गयी थी , पता ही नहीं चला । किन्तु 30 मिनट से खड़ी थी । आखिर क्यों ? पता नहीं चल रहा था । ट्रेन से बाहर  आकर लोगो से पता किया । किसी ए सी कोच में ए सी काम नहीं कर रहा था अतः लोग इसकी मरम्मत चाह रहे थे । अंततः करीब एक घंटे बाद ट्रेन रवाना हुई ।

इसी बीच एक दोस्त को फोन लगाया जो लुधियाना में लोको पायलट है । उन्हें जान कर बहुत ख़ुशी हुई की मैं इस ट्रेन से कटरा जा रहा हूँ । उन्होंने  घर से भोजन उपलव्ध कराने की इच्छा जाहिर  की । हमने धन्यवाद कह मना कर दी क्यों की खाने का आर्डर दिया जा चूका था । कुछ समय बाद रात्रि भोजन का पैकेट हमारे सामने था । रात्रि के साढ़े नौ से ऊपर हो रहे थे । जल्द भोजन ग्रहण किये किन्तु भोजन किसी काम का नहीं था । स्वाद से ज्यादा गुस्सा बढ़ा गया । ट्रेन है सोंच कर बर्दास्त कर लिए । हम सभी अपने अपने बर्थ पर सो गए । मैं ऊपर के बर्थ पर सो गया । आधे घंटे बाद पैंट्री बॉय पैसे वसूलने आया । मैंने उसे पांच सौ के नोट दिए । वह मुझे कुछ छुट्टे वापस से जल्द चला गया । मैंने गिनने शुरू किये ये तो 140/- रुपये ही है । वह 360/- रुपये 3 भोजन का ले लिया था ।

ये तो पब्लिक के साथ बहुत बड़ा धोखा है । कुछ करना चाहिए । ये सरासर बेईमानी है । मैंने तुरंत रेलवे को इसकी शिकायत की । दूसरी तरफ से मेरी शिकायत दर्ज की गयी और कार्यवाही का भरोसा दिया गया । कुछ देर बाद रेलवे का कॉल आया और मुझे बताया गया की आप पैंट्री मैनेजर से शिकायत दर्ज करा दीजिये । मैंने कहा आप लोग अपनी तरफ से कार्यवाही करे मैं सबेरे शिकायत लिख दूंगा और  आराम से सो गया । कुछ देर बाद टीटी साहब आये और मुझे जगा कर पूरी जानकारी लिए । उन्होंने कहा की आप ने  इतनी ऊपर शिकायत क्यों कर दी । मुझसे कहना था । मैंने कहा कि आप को कहाँ कहाँ ढूढता फिरू । ठीक है देखता हूँ - कह कर चले गए और सबेरे तक वापस नहीं आये । सुबह ट्रेन कटरा पहुंची । हम निचे उतरे । प्लेटफॉर्म पर टीटी महोदय दिखाई दिए । फिर उनसे पूछा ? भोजन के बारे में क्या कार्यवाही हुई ? पैंटी का मैनेजर उनके पास ही था । उन्होंने उससे मेरा परिचय कराया।

मैनेजर मुझे पैंट्री के अंदर ले गया और शिकायत न करने की विनती करने लगा । उसने मेरे हाथो पर 60 रुपये वापस दिए । मैंने कहा - फिर भी 100 रुपये का भोजन हुआ और वह भी  घटिया । वह गिड़गिड़ाने लगा और बोला - सर आप माँ का दर्शन करने आये है । हमें क्षमा कर दे माँ आप को देंगी । वह बच्चा नया है । गलती हो गयी । हम गरीब लोग है । अब मेरा मन भी शिकायत के मूड में नहीं था । उन्हें दुबारा ऐसी गलती न हो की हिदायत दे बाहर आ गया ।

कटरा रेलवे स्टेशन और बालाजी ।


आगे की यात्रा विवरण  अगली क़िस्त में पढ़िए ।

Thursday, April 14, 2016

सर्प दंश

सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार । जमीन या पेड़ या घरो में रहने वाले सर्प बहुत ही नुकसान देह होते  है । 

वैसे तो सर्प  के बारे में पूरी दुनिया में कई किस्से मशहूर है   किताबो से ज्यादा चलचित्र में । नाग और नागिन पर आधारित चलचित्र मनोरंजन के प्रमुख साधन है । चलचित्र में नाग या नागिन द्वारा अपने दुश्मन से बदला लेने की कला सबको चकित कर देती है । मन में ये दृश्य ऐसे समा जाते है जैसे सच में  भी यह संभव है । चलचित्र की कहानिया सही हो या न हो पर  वास्तविक जीवन में कुछ घटनाये गहरी दर्द दे जाती है । कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हें याद करते ही शारीर में सिहरन दौड़ जाती है । मैं खुद और मेरे परिवार के लोग कई बार सर्प से सामना कर चुके है ।  यहाँ तक की एक बहुत ही पुराना सर्प मेरे घर में वर्षो से निवास कर रहा था और इसकी भनक किसी को नहीं । भगवान की दया है की कोई नुकशान नहीं झेलने पड़े ।

एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी  भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।

सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।


सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के  पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।

भारती  की नजर  उस सर्प पर  पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर  को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।

कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर  यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या  किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने  लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी  कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।

जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।

Friday, March 11, 2016

नपुंशक

आज कल शिक्षा का क्षेत्र  काफी विकसित हो गया है । जो समय की मांग है । वही इस शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले भरपूर सेवा का योगदान नहीं देते है । सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए , वह भी आराम की तथा ज्यादा सैलरी होनी चाहिए किन्तु अपने फर्ज निभाते वक्त आना कानी करते है । कई तो कोई जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते । किस किस विभाग को दोष दूँ समझ में नहीं आता । ऐसा हो गया है की सरकारी बाबुओ और अफसरों के ऊपर से विश्वास ही उठता जा रहा है । आज हर कोई किसी भी विभाग  में किसी कार्य के लिए जाने के पहले ही यह तय करता है कि उसका कार्य कितने दिनो में संपन्न होगा और उसे कौन कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा  । वह दोस्तों से अधिक जानकारी की भी आस लगाये रखता है  ।

क्या यह सब सरकारी विफलताओं को दोष देने से दूर हो जायेगा ? कतई नहीं । हम सभी का सहयोग बहुत जरुरी है । बच्चे का जन्म होते ही उसकी जिम्मेदारिया बढ़नी शुरू हो जाती है । वह किसी की अंगुली पकड़ कर चलने का प्रयास करता है । उसे अपने माता -पिता के प्यार से आगे की कर्मभूमि का ज्ञान शिक्षण संस्थाओ से मिलता है । उस ज्ञान का दुरूपयोग या उपयोग उसके शैक्षणिक  शक्ति पर निर्भर करता है । पुराने ज़माने में गुरुकुल या छोटे छोटे स्कुल हुआ करते थे । हमने देखा है उस समय  शिक्षक और शिष्य में एक अगाध प्रेम हुआ करता था । दोनों एक दूसरे की इज्जत करते थे । मजाल है की शिष्य गुरु के ऊपर कोई आक्षेप गढ़ दे या गुरु शिष्य पर क्यों की आपसी मेल जोल काफी सुदृढ़ होते थे । उस समय नैतिक विचार नैतिक आचरण सर्वोपरि थे । छोटे बड़ो की इज्जत और बड़े छोटे को भी सम्मान देते थे । कटुता और द्वेष का अभाव था । ऐसे गुरुकुल या शिक्षण स्कुल से निकलकर आगे बढ़ने वालो के अंदर एक उच्च कार्य करने की क्षमता थी । शायद ही कभी कोई किसी को शिकायत का अवसर देता था । इस तरह एक स्वच्छ समाज और देश का निर्माण होता था । 

आज कल की दुर्दसा देख रोने का दिल करता है । शैक्षणिक संस्थान व्यवसाय के अड्डे बनते जा रहे है । शिक्षा के नाम पर कोई सम्मान जनक सिख तो दूर समाज को बर्बादी के रास्ते पर चलने को उकसाए जा रहे है । शैक्षणिक संस्थान रास लीला , नाच और गान के केंद्र बनते जा रहे है । नयी सोंच और नयापन इतना छा गया है कि कभी कभी बेटे  बाप को यह कहते हुए शर्म नहीं करते कि चुप रहिये आप को कुछ नहीं पता । अब आप का जमाना नहीं है । पिता के प्रति पुत्र का आचरण आखिर समाज को किधर मोड़ रहा है । बलात्कार , देश के प्रति अनादर , व्यभिचार समाज में इतना भर गया है और हम नैतिक रूप से इतने गिर गए है कि अगर कोई बहन को भी लेकर बाहर निकले तो देखने वाले तरह तरह के विकार तैयार कर लेते है , फब्तियां कसेंगे देखो किसे लेकर घूम रहा है। ऐसा नहीं है  की सभी ऐसे ही है पर अच्छो की संख्या नगण्य है । उनको कोई इज्जत नहीं मिलती । 

हमारे रेलवे में दो रूप है । प्रशासक और कर्मचारी । आज सभी शिक्षित है चाहे जिस किसी भी रूप में कार्यरत हो ।कर्मचारियों को हमेशा उत्पादन देना है जिसे वे हमेशा जी जान से पूरा करते है चाहे दस आदमी का कार्य हो और उस दिन 5 ही क्यों न हो । इस असंतुलन से कर्मचारी सामाजिक  , पारिवारिक , धार्मिक और राजनितिक उपेक्षा से प्रभावित हो जाते है । क्या एक कर्मचारी किसी गदहे जैसा है ? जो मालिक को खुश करने के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देता है । क्या कहे हम तो मजदूर है नीव की ईंट से लेकर  भवन के कंगूरे को सजाते है । फिर भी हमारी जिंदगी नीव की ईंट के बराबर ही है  । सभी कंगूरे की सुंदरता देखते है नीव की ईंट पर किसी का ध्यान नहीं जाता । शायद उन्हें नहीं मालूम की यह भव्य सुंदरता नीव की ईंट पर ही ठहरी है ।प्रशासक उन उच्च श्रेणी में आते है जो हमेशा  कर्मचारियों पर बगुले की तरह नजर गड़ाये रहते है । इन्हें विशेषतः उत्पादकता को बढ़ाना तथा कर्मचारियों के कल्याणकारी योजनाओ को सुरक्षित रखना होता है  । जो एक क़ानूनी दाव पेंच के अंदर क्रियान्वित होता या करना पड़ता  है । यह भी एक जटिल क़ानूनी प्रक्रिया के अनुरूप होता है । लेकिन ज्यादातर देखा गया है की प्रशासक इस क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करते  है जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो सके । मेरा अपना अनुभव है की अच्छे प्रशासक बहुत कम हुए है और है । आज कल इन्हें अपने को दायित्वमुक्त व् फ्री रखने की आदत बन गयी है । ये सब उपरोक्त सड़ी हुयी शिक्षा का असर ही तो है । कौन अच्छा अफसर है ? आज कल समझ पाना बड़ा मुश्किल है । आम आदमी यही सोचता है की चलो ये अफसर ख़राब है तो अगला अच्छा है , आगे बढे। काम जरूर हो जायेगा । किन्तु सच्चाई कुछ और ही होती है । 

इसे आप क्या कहेंगे ? 

उस दिन जब बंगलुरु स्टेशन पर  बॉक्स पोर्टर ने मेरे बॉक्स को पटक कर बुरी तरह से तोड़ दिया था । जुलाई 2015 की घटना है । मैंने इसकी सूचना सभी को दी चाहे मेरे मंडल का अफसर हो या बंगलुरु का । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी । मुझे संतोष नहीं हुआ और मैंने फिर एक लिखित शिकायत मंडल रेल मैनेजर बंगलुरु को भेजा । इसकी कॉपी अपने मंडल रेल मैनेजर को व्हाट्सएप्प से भेजा । फिर भी कोई न कारवाही हुयी और न enquiry । शायद छोटी और अपने स्टाफ की शिकायत समझ इस पर कोई कार्यवाही करना किसी ने उचित नहीं समझा । अगर वही हमसे कोई गलती हो जाय तो हमें नाक पकड़ कर बैठाते है । उस पर धराये लगाकर सजा की व्यवस्था तुरंत करते है क्यों की उनके लिए ये आसान है । ऐसे समाज और कार्यालयों  की त्रुटियों को आखिर बढ़ावा कौन दे रहा है ।  शायद हमारे सड़ी हुयी शिक्षा का प्रभाव है । जिसे इन नपुंशक अफसरों की वजह से औए बढ़ावा मिलता है और एक दिन यह एक नासूर बन जाता है । आज कल ऐसे नासूरों का इलाज करना अति आवश्यक हो गया है । आखिर इसका इलाज कौन करेगा ? 

आज हमारे नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुछ कार्यक्रमो से काफी खुश हूँ क्यों की इन नपुंशको को  एक सठीक इलाज मिलने वाली है । रेलवे ने फिल्ट्रेशन शुरू कर दी है इसके अंतर्गत उन अफसरों पर गाज गिरेगी और उन्हें CR के अंतर्गत निकाल दिया जायेगा जिन्होंने 30 वर्ष सर्विस या 55 वर्ष की उम्र को पूरी कर ली है तथा अच्छे रिकार्ड नहीं है । काश ऐसे नपुंशको पर जल्द गाज गिरे । समाज बहुत सुधर जायेगा और कर्मठ कर्मचारियों के जीवन में एक नए सबेरे का उदय होगा ।

कर्मठ और मेहनत कश मजदूरो को नमस्कार । यह लेख उन मेहनती  कर्मचारी समूह को समर्पित है ।