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Wednesday, July 23, 2014

दयनीय पिता और अर्थहीन दशा



आज बहुत दिनों के बाद शकील मुझे मिला था । वह उस डिपो में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था । मुझेबहुत ही आदर करता  था । यह उसकी अपनी बड़प्पन थी । वह देखते ही सलाम किया । मै भी मुस्कुराते हुए स्वीकृति में हाथ उठा दिया और उससे पूछा - कहो शकील कैसे हो ? गुंतकल कैसे आना हुआ ? सर ऑफिस काम से ही आया हूँ । बातो - बातो में यह भी पूछ लिया - परिवार कहाँ रखे हो ? और हा वह नवीन कैसा है ? परिवर गुंतकल में ही है सर । फिर वह कुछ उदास सा हो गया । आगे कहने लगा -सर आप के ट्रांसफर के करीब दो - तीन महीने बाद ही नवीन का देहांत हो  गया ।मेरा  मुह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए । पूछा - वह कैसे हुआ ? क्या बीमार था ? नहीं सर । लोग कहते है - स्टोव से जल कर मर गया । 

अजीब समाचार था । घर आया । दिल में  एक अनजाने दर्द ने घर कर  लिया जैसे मैंने घोर अपराध कर दिए हो । बातो ही बातो में इस घटना की जिक्र पत्नी से भी कर दिया । पत्नी ने अफ़सोस जाहिर की  । पत्नी बोली - आप ने गलती कर दी अन्यथा ऐसी घटना नहीं होती थी । उस वक्त उसे आप को उसकी  मदद करनी चाहिए थी । मैंने लम्बी साँस ली । किसे मालूम था एक दिन ऐसा भी होगा ?


उन दिनों मै एक छोटे से डिपो में कार्य करता था । शाम का समय । अभी - अभी ड्यूटी से उतरा था । पत्नी चाय नास्ते बनाने के लिए किचन के अंदर व्यस्त थी । मै बाथ रूम में मुह -हाथ धोने के लिए अंदर गया । तभी दरवाजे पर लगी काल बेल को किसी ने दबाया । घंटी बजी , पत्नी ने बाहर जाकर देखने की प्रयत्न की । नवीन आया है । पत्नी ने आवाज दी ।  अरे अभी - अभी ही गाड़ी लेकर आया हूँ , यह क्यों आ गया ? ठीक  ही कहते है इन पियक्कड़ों की कोई भरोसा नहीं होती ? पैसे की कमी पड़ी होगी ? बाथरूम में मन ही मन बुदबुदाया और पत्नी से बोला - कह दीजिये थोड़ा इन्तेजार करे । अभी आया । 

घर से बाहर निकला । देखा नवीन दोनों हाथो को सामने सीने के ऊपर मोड़े  हुए स्थिर खड़ा था । लम्बा , गोरा और पतला छरहरा आधे उम्र का इंसान । मुझसे उम्र में बड़ा किन्तु प्रशासनिक पद में छोटा था । देखते ही नमस्कार किया और सहमे हुए खड़ा रहा । शायद उसके मुह से कोई शव्द नहीं निकल पा रहे थे । मैंने ही पूछ लिया  - कहो क्या बात है ? देखा उसके चहरे पर उदासी झलक रही थी । सर एक जरूरी काम है । कहो ? मैंने हामी भरी । सर मै रेलवे नौकरी से स्वैक्षिक अवकाश लेना चाहता हूँ  कृपया एक दरख्वास्त लिख दे । 

वस इतनी सी बात । कल सुबह भी आ सकते थे ? किन्तु मेरा मन कारण जानने के लिए जागरूक हो गया । सच में आखिर इसकी क्या वजह है ? कोई मेहनत की नौकरी भी नहीं है । इसके पिने की लत से सभी वाकिफ  है । सभी एडजस्ट भी करते है । मैंने उससे पूछ ही डाला -" नवीन आखिर क्यों ऐसा करना चाहते हो ? " वह रोने लगा । बोला - " सर मेरा बेटा मुझसे कहता है ,जा के कहीं  मर क्यों नहीं जाते । कम से कम उसे एक नौकरी मिल जाएगी अन्यथा हम ही किरोसिन छिड़क कर तुम्हे मार डालेंगे ।"  मै इसे  गम भीरता से नहीं लिया और उसे समझा बुझा कर -कल सुबह लिख दूंगा कह कर बिदा कर दिया । फिर वह कई बार मिला किन्तु दरख्वास्त लिखने की अनुरोध कभी  नहीं  दुहरायी । 

आज मन विचलित था । शायद उसने सही अभिव्यक्ति की थी । एक दयनीय पिता अपने दयनीय अर्थ से परास्त हो चूका था । काश ऐसा न होता । संसय कहाँ तक उचित है - कह नहीं सकता । ( नाम और स्थान काल्पनिक किन्तु सत्य ) 

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Wednesday, April 23, 2014

लोवर बर्थ


२७ मार्च २०१४ दिन गुरुवार । राजधानी एक्सप्रेस लेकर सिकंदराबाद आया था । आज ही आल इण्डिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएसन  के आह्वान पर , लोको पायलट जनरल मैनेजर के ऑफिस के समक्ष धरने  पर बैठने वाले थे । मेरा  को -लोको पायलट सैयद हुमायूँ और मै  धरना  में शरीक हुए । दोपहर को दक्षिण मध्य रेलवे के जोनल लीडरो की  वैठक थी । पूरी रात गाड़ी चलाने  और धरना में शामिल होने कि वजह से थकावट महसूस हो रही  थी कारण  पिछले  दिन बुखार से भी ग्रसित था । अतः जोनल सदस्यों की सभा में अनुपस्थित ही रहा । 

वापसी के समय कोई गाड़ी नहीं थी । लिंक के अनुसार गरीब रथ (१२७३५) से मुख्यालय वापस जाना था । सिकंदराबाद से यह गाड़ी १९.१५ बजे छूटती  है । हम समयानुसार प्लॅटफॉर्म पर पहुँच गए । हमने एडवांस में अपने बर्थ आरक्षित कर ली थी । इस लिए कोई असुविधा  का सवाल नहीं था । कोच -७ / बर्थ संख्या -३४ और ३७ । प्लॅटफॉर्म  का नजारा अजीबो - गरीब  था । गाडी पर लेबल गरीबो की , पर पूरी उम्मीदवारी अमीरो की  थी । लगता था जैसे श्री लालू यादव जी ने अमीरो को तोहफा स्वरुप  इस ट्रेन को चलाने का निर्णय लिया था । शायद असली सच्चाई  यही हो  । इसीलिए तो गरीबो ने श्री लालू जी को गरीब बना दिए और वह बनते ही जा रहे है । सामाजिक कार्य में खोट कभी छुपती नहीं है । आज सबको मालूम है , लालू जी किस मुसीबत से जूझ रहे है । 

हमने अपने बर्थ ग्रहण किये और लिंगमपल्ली आने के पूर्व ही डिन्नर कर ली । लिंगमपल्ली में यात्रियो की  काफी भीड़ हो जाती है । आध घंटे में लिंगमपल्ली भी आ गया । कोच खचा - खच तुरंत भर गया । यात्रियो में ९०% नौजवान और १०% ही ४० वर्ष उम्र वाले या  ऊपर के होंगे । यह प्रतिसत हमेशा देखी  जा सकती है । सिकंदराबाद / हैदराबाद / बंगलूरू में जुड़वा भाई का सम्बन्ध है । प्रतिदिन लाखो की  संख्या में एक शहर से दूसरे शहर में लोगो का स्थानांतरण होते रहता है ।  अगर एक दिन भी ट्रेन सेवा रूक जाय , तो लोगो में अफरातफरी मच जायेगी

हमारे  आमने - सामने  वाले सीट पर एक दम्पति और उनके दो छोटे - छोटे प्यारे बच्चे स्थान ग्रहण किये ।  उनकी सीट भी वही थी । इनकी आयु करीब २५ - ३० वर्ष के आस - पास  होगी । पहले तो मैंने समझा कि दोनों युवक है । लेकिन ऐसा नहीं था । एक युवक और दूसरी उनकी  पत्नी थी । बिलकुल अत्याधुनिक लिबास से सज्जित । उस संभ्रांत महिला ने काले-नीले स्पोर्ट पैंट और सफ़ेद -टी  शर्ट पहन रखी थी । दृश्य का वर्णन नहीं कर सकता । आस  - पास के लोगो कि निगाहे सिर्फ उसी पर । लिबास ऐसे थे कि हमें उधर देखने में शर्म आ रही थी । अगर ऐसे पहनावे का विरोध किया जाय तो जबाब मिलेंगे  - मेरी मर्जी जैसा भी पहनू । अपने चरित्र को कंट्रोल में रखिये ।

यहाँ प्रश्न उठता है कि --

१) क्या कोई तड़क - भड़क पहनावे से महान / गुणी बन जाता है ?
२)आखिर इतनी गंदी एक्सपोज किसके लिए  ?
३)क्या ऐसे व्यक्तियो के समक्ष समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?
४)अपने अधिकार कि दुहाई देने वाले , क्या  दूसरे के अधिकारो का हनन नहीं करते ?
५)क्या ऐसे व्यक्ति समाज में व्यभिचार फ़ैलाने में सहयोग नहीं करते ?
६)क्या वस्त्र का निर्माण इसी दिन के लिए हुए थे या अंग ढकने के लिए ?
७)क्या हमारे समक्ष हमारी सभ्यता कोई मायने नहीं रखती ?

बहुत से ऐसे प्रश्न है , जो आज  समाज के युवा वर्ग के सामने है । अपने समाज को स्वच्छ और भारतीय बनाने में आज के युवा वर्ग को  सहयोग करनी चाहिए । इतिहास उठा के देखने से पता चलेगा कि महान व्यक्तियो के आचरण कैसे थे । स्वर्गीय और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी जैसा अंग्रेजी आज भी कोई नहीं बोलता है और पहनावा -धोती और कुरता । स्वर्गीय इंदिराजी का इतिहास सामने है । आज के श्री मोदी जी को देखे ? डॉक्टर  अब्दुल कलाम जी को देखे है वगैरह - वगैरह । नदी में चारो तरफ जल ही जल फैली होती  है , परन्तु डुबकी किसी खास जगह ही लगायी जाती है सुरक्षित रहने के लिए । वैसे ही समाज में सुरक्षित डुबकी ( पहनावा ) क्यों नहीं ? वस्त्र तन ढकने के लिए पहने जाते है , तन दिखाने  के लिए नहीं । 

बहुत कुछ कोच में हुए जो व्यवहारिक नहीं थे । उस युवक ने हमसे पूछा - आप के बर्थ कौन से है , ये लोअर बर्थ है क्या ? हमने हामी भरते हुए कहा - जी बिलकुल सही । उसने अनुरोध किया  कि - " क्या आप लोग मेरे मीडिल बर्थ से एक्सचेंज करना  स्वीकार करेंगे  ?" हमारे मन में एक आवाज उठी ।कितने स्वार्थी हैं , ऐसे आधुनिक घोड़े पर चढ़ने वाले , हमारे लोअर बर्थ को भी छीन लेना चाहते थे  कैसी विडम्बना है । पूछने के पहले हमारे उम्र कि लिहाज तो कर लेते ? लोअर बर्थ की इच्छा सभी की होती है । ऐसे इंसानो को लोअर बर्थ  सुपुर्द करना भी उचित नहीं लगा  क्युकी गुंतकल में यात्री ज्वाइन करते  है । गुंतकल में आने वाले यात्री उन्हें डिस्टर्ब करेंगे । अतः हमने उन्हें पूरी बाते बता दी । उन्हें भी मायूसी में  संतोष करना पड़ा  । वैसे मुझे दूसरे कि पहनावे से  जलन नहीं है ,बस अपने संस्कार से वेहद लगाव है ।अपनी संस्कार छोड़ ,दूसरे की संस्कार स्वीकार करने वाले से बड़ा भिखारी भला कौन हो सकता है ?
ये वो थे जो ज़माने से बदल रहे थे , 
पर ज़माने को 
बदलने कि ताकत उनमे नहीं थी । 

Sunday, March 23, 2014

आरक्षण

सत्ताईसवीं फरवरी २०१४ को शिवरात्रि का दिन  था । उस दिन ट्रेन में आरक्षण हेतु सिकंदराबाद स्टेशन के आरक्षण खिड़की पर गया था । " क्या आप ही सबसे पीछे है ? " मैंने सामने कतार में खड़े व्यक्ति से पूछा ।उसने हाँ में सिर  हिला दी । मै उसके पीछे खड़ा हो गया । मेरे सामने पुरे दस व्यक्ति खड़े थे । आध घंटे से कम नहीं लगेगा ? सोंचते हुए अनमयस्क सा लाईन में खड़ा रहा । सामने वाला बार -बार मुझे पलट कर देख रहा था । शायद कुछ पूछना चाह रहा हो । मैंने उसके तरफ ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा । 

आखिर वह पीछे पलटा और अपने टिकट को मुझे दिखाते हुए पूछा  - क्या टिकट का रद्दीकरण 
इसी खिड़की पर होगा ? मैंने हाँ में सिर हिला दी । पर मेरा मन माना नहीं । उसके हाथो कि 
ओर फिर देखा । उसके हाथो में केवल टिकट था । मैंने उससे कहा - " रद्दीकरण के लिए फॉर्म 
भरना पड़ेगा , वह कहाँ है ?" उसने सच्चाई भाप ली । उसने फॉर्म नहीं भरी थी । पूछा - " फॉर्म 
कहाँ  मिलेगा ?" मैंने उसे दूसरी खिड़की कि ओर इशारा कर दी । वह लाईन से बाहर चला गया । 

दिल में तशल्ली हुई ,कम से कम एक व्यक्ति सामने से कम हुआ । सामने से लाईन कम होने कि 
नाम नहीं ले रही थी । सामने ग्रीष्म कालीन  टूर हेतु  आरक्षण वाले ज्यादा थे । मैंने देखा कि फिर वह व्यक्ति हमारे आस -पास टहलने लगा । उसके हाथो में रद्दीकरण का एक फॉर्म था । कभी मेरे तरफ तो कभी आगे वाले व्यक्ति को देख रहा था । शायद कलम कि जरूरत हो  । उसके पास कलम नहीं थे । मेरे मन में भूचाल आया । मै उसे कलम नहीं देने वाला क्योकि आरक्षण कि खिड़की के 
पास मेरे कई कलम गुम हो चुके है । जिन्होंने फॉर्म भरने के लिए लिए , बिन वापस किये चले गएँ । 

यह कैसी विडम्बना है कि आज - कल के ज्यादातर व्यक्तियो के पास मोबाइल / स्मार्टफोन मिल जायेंगे , पर कलम नहीं । 

तब तक लाईन में खड़े सामने वाले व्यक्ति ने उसकी मंसा को भांप लिया  और अपनी जेब कि कलम उसके तरफ बढ़ा दी  । वह व्यक्ति भी सहर्ष स्वीकार कर लिया । किन्तु फॉर्म भरने कि वजाय वह  इधर - उधर देखते रहा । आखिर कार कलम देनेवाले ने कहा - " फॉर्म भर डालो भाई , आपकी बारी आने वाला है । "

ओह उसके मुख से आश्चर्य जनक शव्द  निकले - " सर लिखने नहीं आता । " मेरा मन उसके प्रति सहानुभूति से भर गया । क्या यही है शिक्षा का अधिकार ? क्या यही है आजादी के पैंसठ वर्षो से अधिक  की उन्नति ? आज भी देश के कोने - कोने में हजारो ऐसे व्यक्ति मिल जायेंगे , जो पढ़ाई से ज्यादा जीविका पर ज्यादा ध्यान  देते है । अगर ऐसा ही रहा तो आधुनिक भारत की  कल्पना बेकार है । 

Friday, April 12, 2013

एक लघु कथा --माँ की ममता पर प्रहार |

लक्षम्मा  झोपड़ी में बैठी बी. .पि.एल चावल के कंकडो को चुन रही थी | जीर्ण शीर्ण सी झोपड़ी और वैसे ही  अंग के चिर  | फिर भी सूर्य की किरण का चुपके से झोपड़ी में आना , उस कड़वी ठण्ड और बरसात  से बेहतर लग रही  थी |

  " लक्षम्मा ..वो लोग आये है |" - उसका पति वीरन्ना बोला | लक्षम्मा धीरे से मुड़ी , उसके मुख पर भय  की रेखाए और शरीर में सिहरन दौड़ गयी | उसके मुख से शव्द नहीं निकल रहे थे  | वश केवल  - "  नहीं  " शव्द ही निकल पायें | देखो ..हमारी  दिन - दशा ठीक नहीं है | चार वेटिया है | जीना  दूभर हो गया है | ऐसे कब तक घुट - घुट कर  जियेंगे | वैसे भी अभी तीन और है |  लक्षम्मा जब - तक कुछ और कहे  , वीरन्ना ने सबसे छोटी दो वर्ष की  विटिया  को उसके नजदीक से खिंच लिया , जो माँ से चिपटी हुयी गहरी नींद में सो रही थी |

उन  व्यक्तियों में से एक  ने वीरन्ना के हाथो  पर  एक नोट का  बण्डल  रखते हुए बोला  - "  गिन लो , पुरे पांच हजार है | " फिर छोटी बिटिया को एक बिस्कुट का पैकेट पकड़ा दिए और वह ख़ुशी से खाने लगी | चलते है ! कह कर उन्होंने छोटी विटिया को गोद में उठा  आगे बढ़ गए  | लक्षम्मा दरवाजे पर खड़ी.. बाएं हाथ से साडी के पल्लू को मुह पर रख ली और दाहिने हाथ को आगे बढ़ाई...जैसे कह रही हो - नहीं .. रुक जाओ ...मेरी विटिया मुझे वापस दे दो | धीरे - धीरे वे दोनों व्यक्ति आँखों से ओझल हो गए |

लक्षम्मा के दोनों आँखों के कोर आंसुओ से भींज गएँ थे  | मुड़ कर पीछे की ओर  देखी | उसका निर्मोही  मर्द पैसे गिनने में व्यस्त था | अचानक वह बोला - ""  अरे ..ये तो पांच सौ कम है और जल्दी से  उनके पीछे दौड़ पड़ा | लक्षम्मा धम्म से जमीन पर बैठ  गयी ..इस आश  में की अब  उसकी बिटिया  वापस आ जाएगी ........

Monday, September 24, 2012

जिंदगी के सफ़र

यात्रा में  मानवी सहकारिता , संयोग , मिलन और अपनापन का एक अनूठा समिश्रण चार चाँद लगा देता है । कभी - कभी यह दुखदायी भी बन जाता है । समयाभाव की वजह मुझे ब्लॉग से दुरी बनाने के लिए मजबूर किये बैठी है । संक्षिप्त में पोस्ट लिखना मेरी मजबूरी बनते जा रही है । एक समाचार मुझे उद्वेलित कर गयी ।

परसों की बात है । जनरल डिब्बे में दो महिलाये बातों - बातों में  ..इस कदर ---- सिट के लिए झगड़ बैठी की एक ने दुसरे की गले को ऐसे दबा दिया , की उसके प्राण पखेरू उड़ गए । माँ के शारीर को पकड़ छोटे बच्चे का बिलखना ....सभी को बिचलित कर दिया । मामला गंभीर था . गाडी रुक गयी  । पुलिस  आई उस महिला को पकड़ कर ले गयी । पत्रकारों  का झुण्ड उमड़ पड़ा । कल समाचार जरूर छपी होगी ।

यात्रा में सावधानी , बरतनी जरूरी है। 

Friday, September 7, 2012

लोहा सिंह

नर - नारी ,  घर परिवार , समाज , जिला ,  प्रदेश , देश - विदेश , संसार और यह व्योम । सम नहीं है , भला मनुष्य सम कैसे हो सकता है । हर मनुष्य में कुछ कर सकने की शक्ति छुपी हुयी होती है । कोई पढ़ने में , कोई खेलने में , कोई राजनीति में , तो कोई -भोग  विलास और योग के क्षेत्र में  माहिर है । एक ही कक्षा में कई विद्यार्थी , एक ही शिक्षक के द्वारा  शिक्षा ग्रहण करने के वावजूद भी अलग - अलग मार्ग पर अग्रसर हो जाते है । एक ही धरती ..अलग - अलग बीज   ग्रहण कर , अलग -अलग आकार   देती है । ये तो व्यापारी और ग्राहक का एक अनूठा सम्बन्ध है ।

कुछ जीवन की अनुभूति -

बाबूलाल यादव का नाम आते ही  सभी यही समझ जाते थे .....पढाई में कमजोर विद्यार्थी । शिक्षक के डांट  या फटकार का  कोई असर नहीं । लोहा सिंह इसके नाम का पर्याय बन चुका था । सभी शिक्षको  के उपहास का पात्र । कोई भी उसके तरफ ध्यान नहीं देते थे । होम वर्क नक़ल कर कक्षा  में ही  तैयार करना , शिक्षको की अनुपस्थिति में क्लास के  अन्दर शोर गुल का भागी दार बनना , उसे बेहद पसंद   था ।

कक्षा -6 , स्कूल के दुसरे मंजिल पर क्लास । उस दिन क्लास का आखिरी पीरियड , वह भी व्यायाम और उससे सम्बंधित । पशु  पति सिंह जी इसके शिक्षक थे  । भलामानस व्यक्तित्व वाले । समय - समय पर सामाजिक कार्यकलापो का जिक्र करने में माहिर । क्लास में आयें , किन्तु देर से । हम  सभी शांत मुद्रा में , अगले विषय के इंतज़ार में । क्लास में सन्नाटा । हम सभी की ओर उन्मुख हो उन्होंने अचानक एक प्रस्ताव रखा । उन्होंने कहा की -" इस दुसरे  मंजिल से निचे कौन कूद सकता है ? हाथ उठाये ?"
 
सभी के बीच सन्नाटा छा  गया । शिक्षक महोदय बारी - बारी से सभी की ओर देखने लगे । एक मिनट , दो मिनट और पांच  मिनट गुजर गए । आखिर में असहाय सा प्रतीत होते देख , एक बार फिर उन्होंने अपनी बात दुहरायी । और ये क्या ? सभी को आश्चर्य ...ही ..आश्चर्य । सभी के सामने ..बाबू लाल यादव ने अपने हाथ ऊपर उठायें । बाबू लाल ने कहा -सर मै  निचे कूद सकता हूँ । इधर आओं । पीपी सिंह जी बाबू लाल को अपने पास बुलाते हुए कहा  । सभी लड़को के बीच  फुसफुसाहट की ध्वनि गूंजने  लगी ।

 पीपी सिंह जी ने कहा - इसका फैसला कल प्रेयर के बाद होगा । दुसरे दिन ..सभी लडके - लड़कियों के बीच सिर्फ बाबू लाल यादव की ही चर्चा । इसके हाथ - पैर जरूर टूट जायेंगे । अपने को तीसमार खा समझता है । पछतायेगा । इसे इस तरह के जोखिम लेने की  क्या जरूरत थी ।..अब क्या होगा ? जानने के लिए सब उतसुक । प्रथम पीरियड ..पीपी सिंह जी का न हो कर भी वह ..कक्षा में आयें । उनके मुख पर मुस्कान की छटा । उन्होंने - बाबू लाल यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा -" इधर आओ ।" बाबू लाल उनके करीब जाकर खड़ा हो गया ।  दोस्तों के तरह - तरह की बातो को सुन वह सहम सा गया था । मुख पर सहमी सी मुस्कराहट । पीपी सिंह जी ने  एक बार फिर  बाबू लाल के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा  -" कूदने के लिए तैयार हो ?" बाबू लाल ने हां में सिर हिलाई ।

पीपी सिंह जी हँसे और अपने पाकेट से एक बाल पेन निकाल कर बाबू लाल को उपहार स्वरुप आगे बढ़ाये । उन्होंने कहा -  " बच्चो .. वास्तव में बाबू लाल लोहा सिंह है ।"

Wednesday, July 4, 2012

पढ़े लिखे अनपढ़

रेलवे हमें भारतीयता की पहचान  दिलाती है !रेल ही हमें एकता का सन्देश देती है ! यह देश के एक भाग से दुसरे भाग को छूती है , जोड़ती है ! एकता का ऐसा मिसाल शायद ही कोई होगा ! हमें सैकड़ो वर्षो तक गुलाम रहने पड़े ! फिर भी शासको को भारत की उन्नति की ओर ध्यान खींचता रहा ! इसकी एक मिसाल रेल और उसकी स्थापना है ! वृतानियो को अपने देश से रेल को आयातित करने पड़े ! तब  जाकर भारत में रेलवे की नीव पड़ी ! अकसर लोग कहते मिल जायेंगे कि देश में रेलवे को काफी आमदनी है ! रेलवे  चाहे तो सोने की पटरी बिछा सकती है ! बिलकुल सही - भावना ! दूसरी तरफ -लुटेरे इसे कंगाल बनाने में पीछे नहीं रहते ! वर्षो अंग्रेजो ने लूटा - अब भारतीय लूट रहे है ! लूटेरो की भीड़ इतनी बढ़ गयी है कि सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ! जो इमानदार है , उनकी कोई अस्तित्व नहीं !

बचपन में जब रेल गाड़ी की छुक - छुक या -भक - भक की आवाज सुनता तो इस कार्य को  करने की इच्छा मन में हिलोरे लेने लगती थी  ! कौन  ..जाने की  यह एक दिन  सच में बदल जाएगा ! गाँव या वनारस / बलिया जाने के लिए हावड़ा स्टेसन से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी ! उस  समय ट्रेनों में जनरल कम्पार्टमेंट ज्यादा और रिजर्व कम होते थे ! पढ़े-  लिखे लोगो की संख्या कम हुआ करती थी ! साधन संपन्न रिजर्व करके यात्रा करते थे ! साधनों की कमी ! यात्री ट्रेन पर चढने के पहले ,  कईयों से - बार बार पूछते थे की फलां  ट्रेन / यह ट्रेन कहाँ जा रही है  ! पूरी तरह चेतन होने के बाद ही ट्रेन पर चढते थे ! यात्रा के दौरान पूरी तरह से सजग ! घर से चलने के पूर्व ही घर के बुजुर्ग सन्देश हेतु कहते थे - किसी के हाथ का  दिया हुआ नहीं खाना  जी ! न जाने - क्या क्या मिला हुआ होता है ! यात्रा भी बड़े ही गंभीरता   के साथ गुजरती थी ! मजा भी था और यात्रा के समय अपनापन भी !

आज - कल कुछ बदला सा ! ट्रेनों की संख्या सुरसा के मुख की भाक्ति दिनोदिन और प्रति बजट में  बढ़ती जा रही है ! शिक्षा का समुद्र लहरे मार रहा है ! अनपढो की संख्या काफी कुछ कम हो गयी है ! ट्रेनों में कोचों की संख्या काफी बढ़ गयी है और बढ़ते जा रही है ! जनरल डिब्बो की संख्या कम हो गयी है ! उनकी जगह आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बो की संख्या की बढ़ोतरी ने ले ली  है ! जन सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है ! आरक्षण की अवधि एक सप्ताह से पखवाडा , पखवाडा से महीना   और महीना  से कई महीनो में बदल चूका है ! फिर भी तत्तकाल पर मारा-  मारी ! वह शांति दूत भारत , अब अशांत सा भागम- भाग में शरीक है ! भागने वाले को यह भी पता नहीं कि  वह किस जगह बैठा /  खड़ा / घुस चूका है ! एक छोटा सा उदहारण --

कल सिकंदराबाद से गरीब - रथ काम कर के आ रहा था ! नाम से परिलक्षित है की यह ट्रेन गरीबो द्वारा इस्तेमाल होती है ! किन्तु वास्तविकता कुछ और है ! इस ट्रेन को चलाने की मनसा... मंत्री जी के मन में क्या थी ? वह मै  नहीं कह सकता ! पर  इतना जरूर है , इसे साफ्ट वेयर इंजिनियर और एक बड़ा शिक्षित तबका जो मेट्रो पोलिटन शहरों में जीवन यापन कर रहा है / से जुड़े हुए है ..100% कर रहा है ! ऐसे लोगो से गलती की अपेक्षा भी करना जुर्म होगा ! किन्तु बार - बार ... प्रति ट्रिप ...चैन  खींचना कोई  इनसे सीखे ! जी हाँ .. यह बिलकुल सत्य है , हम लोको पायलट इन पढ़े लिखे  अनपढ़ लोगो से परेशान हो गए है ! आप पूछेंगे ..आखिर क्यों ?

बात यह है की सिकंदराबाद - यशवंतपुर गरीब रथ 19.15 बजे सिकंदराबाद से चलती है और सिकंदराबाद -विशाखापत्तनम गरीब रथ ..20.15 बजे ! दोनों की दिशाएं भी अलग है ! समय से यशवंतपुर गरीब रथ चलती है और विशाखापत्तनम के यात्री इस ट्रेन में आ कर बैठ जाते है ! ट्रेन के चलने के बाद , जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण  भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ !  आप भी सोंचे ? इसे  क्या कहेंगे -आज का पढ़े लिखे अनपढ़ !

Thursday, June 28, 2012

सिल्वर जुबिली समारोह -1987 की मार्मिक यादें

जीवन में  संघर्ष और उल्लास का अंत नहीं है ! जो जीता वही  सिकंदर ! भावनाए उमड़ती है , स्वप्न आते है , परछाईया साथ देती है किन्तु स्पंदन के साथ ही परिवर्तित हो जाती है ! हवा स्पर्स करती हुयी आगे बढ़ जाती है ! पीछे मुड़  कर नहीं देखती ! वस् यादें रह जाती है ! संजोये रखने के लिए ! कभी - कभी चेहरे  की झुर्रिया देख मन व्याकुल हो जाता है !


25 जून और 26 जून 2012 , मेरे लिए बहुत कुछ लेकर आया ! 25 जून को लोको पायलटो और उनकी परिवार के सदस्यों ने मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के समक्ष धरना दिया ! जो मूल भुत सुबिधाओ और अनुशासन की मांग पर केन्द्रित था ! वही यह दिन मेरे कैरियर के पच्चीसवे वर्ष का अंतिम दिन था ! एक  लम्बी अंतराल और देखते - देखते दिन  निकल गए  ! सोंचने पर मजबूर होना पड़ा , क्या खोया और क्या पाया !

मेरे बैच  के दोस्तों ने सिल्वर जुबिली मनाने का प्रस्ताव रख दिए ! फिर क्या था -26 जून 2012 को इस प्रोग्राम को अंजाम मिल गया ! दो -तीन साथियो  की कड़ी मेहनत के बाद रेलवे इंस्टिट्यूट में इस प्रोग्राम को सफलता पूर्वक आयोजित किया गया ! यह प्रोग्राम सुबह आठ बजे से शुरू होकर रात्रि के साढ़े दस बजे समाप्त हुआ !

हमसभी 1987 में अपरेंटिस फायर मेन " ये " ग्रेड में ज्वाइन किये थे ! उस समय स्टीम  लोको चलती थी ! नए - नए थे ! सभी के अन्दर उल्लास भरे हुए थे ! जिधर छुओ उधर कालिख , तेल ! दो वर्ष ट्रेंनिंग करनी पड़ी थी ! इसी दौरान सभी स्टीम लोको धीरे - धीरे गायब हो गए ! पहले तो ऐसा लगा की नौकरी छोड़ कर भाग जाए , किन्तु ड्राईवर बनने की तमन्ना दिल में उछाले ले रही थी ! प्रायः सभी साथी  पदोन्नति करते हुए लोको इंस्पेक्टर / क्रू कंट्रोलर /ऑफिस मैनेजर /लोको पायलट ( मेल / एक्सप्रेस) वगैरह तक कार्यरत  है ! किसी ने भी ऑफिसर बनने की इच्छा नहीं जताई और न बने  ! उसमे मै  भी एक हूँ !

सभी को समय रहते ही निमंत्रित कर दिया गया था ! हम कुल 34 थे !  20 साथी ही अपने परिवार के साथ शामिल हुयें ! दो साथी इस दुनिया में नहीं रहे ! उनके याद में, श्रधांजलि हेतु ,  दो मिनट का मौन  रखा गया ! सुबह की शुरुआत   दक्षिण भारतीय इडली , दोसे , वडा  चटनी और  साम्भर के नास्ते  से शुरू हुआ ! दोपहर का मेनू बड़ा ही स्वादिस्ट - चिकन , मटन,  रोटी  हलीम , ब्रिंजल करी , रायता , ice  cream ,सलाद तले  हुए  चावल ,  वेज कुरमा  वगैरह - वगैरह ! सभी की हालत देखते बनती थी  , क्या खाएं न खाए की चिंता !सब कुछ स्वादिस्ट ! रात का भोजन बिलकुल शाकाहारी ! रोटी चावल दाल रसम साम्भर पापड़ दही केला  आदी ! मनोरंजन के लिए आर्केस्ट्रा का इंतजाम ! बच्चे और कई साथियों ने नृत्य कर इसके लुत्फ लिए !छोटा सा शहर , किन्तु मेट्रोपोलिटन के इंतजाम , किसी को किसी तरह की कमी महसूस नहीं हुयी !


 जो भी हो यह सिल्वर जुबिली एक याद ले कर आई और यादगार बन कर चली गयी ! 25 को पच्चीसवे का अंत और 26 को छब्बीसवे की शुरुआत अपने आप में एक अर्थ छोड़ चली गयी  !सभी परिवार एक दुसरे से मिलकर अत्यंत खुश थे !सभी साथियों ने अपने - अपने अनुभव बाँटें ! जो सुन और देख परिवार के सदस्य अचंभित थे !बच्चो को  कभी भी स्टीम लोको देखने को नहीं  मिली थी , वे मंच पर लगे फ्लक्स के तस्वीर से संतुष्ट लग रहे थे ! कईयों ने इसके कार्य पद्धति पर कई प्रश्न पूछ डाले !स्टीम लोको में कार्य करना कठिन , किन्तु बहुत ही स्वास्थ्य बर्धक !
परिवार और छोटे - बड़े बच्चो को देख ऐसा लगा  जैसे  - इंजन के पीछे रंग - विरंगे डब्बे ! एक  और अनेक में परिवर्तित ! सभी इस   अनोखी समागम को देख दंग ! हमारे पीछे इतनी बड़ी संख्या ! कल क्या होगा ?अब वह दिन दूर नहीं जब हमें बच्चो के शादी - व्याह के मौके पर शरीक होना होगा ! इस समूह में लड़कियों की संख्या ज्यादा और लड़को की कम थी !इस समारोह के मुख्य अतिथि सीनियर मंडल यांत्रिक इंजिनियर और उनकी टीम थी ! उन्होंने अपने अविभाषण  में सभी की मंगल की कामनाये करते हुए  बधाई दी ! संध्या के समय  सहायक  मंडल यांत्रिक  इंजिनियर के कर कमलो से सभी साथियों को मोमेंटो प्रदान की गयी ! जो हमेशा इस सुनहरे दिन की याद दिलाता रहेगा !  इस तरह से रेलवे के अंतिम और आखिरी   स्टीम लोको के साक्षियों की सिल्वर जुबिली 26 जून 2012 को हर्षौल्लास के साथ संपन्न हुआ !

Sunday, May 20, 2012

बंगलुरु में सिसकती रही जिंदगी ......

थोड़ी सी बेवफाई ....के बाद आज आप के सामने हाजिर हूँ  ! स्कूल के बंद होने और यात्राओ पर  जाने के  दिन  , शुरू हो गए है ! ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ! नागपुर गया वाराणसी गया , बलिया गया और बंगलुरु की याद और संयोग वापस खींच ले आई ! कारण  ये थे की लोको चालको की उन्नीसवी अखिल भारतीय अधिवेसन , जो बंगलुरु में  सोलह और सत्रह मई को निश्चित था , में  शरीक होना था   ! पडोसी जो ठहरा ! एक तरह से वापसी अच्छी ही रही !  माथे  की गर्मी और  पसीने से निजात  मिली ! उत्तर और दक्षिण भारत के गर्मी में इस पसीने की एक मुख्य भूमिका  अंतर  के लिए काफी है !

                                                ज्ञान ज्योति आडिटोरियम / बंगलुरु
बंगलुरु जैसे मेगा सीटी में इस अधिवेशन का होना , अपने आप में एक महत्त्व रखता है ! देश के -कोने - कोने से सपरिवार लोको चालको का आना स्वाभाविक था  और इससे इस अधिवेशन में चार चाँद लग गए ! इसके सञ्चालन की पूरी जिम्मेदारी दक्षिण-पच्छिम रेलवे के ऊपर थी और दक्षिण तथा दक्षिण मध्य रेलवे की सहयोग  प्राप्त थी !

इस अधिवेशन में चर्चा  के  मुख्य विषय थे  --
1) अखिल भारतीय कार्यकारिणी का नए सिरे से चुनाव
2) पिछले सभी कार्यक्रमो की समीक्षा
3)लंबित समस्याओ के निराकरण के उपाय
4)संगठनिक कमजोरी / उत्थान के निराकरण / सदस्यों में प्रचार
5) छठवे वेतन आयोग के खामियों के निराकरण में आई कठिनाईयों और बाधाओं का पर्दाफास
6)सभी लोकतांत्रिक शक्तियों के एकीकरण के प्रयास में आने वाली बाधाओं पर विचार
7)नॅशनल इंडस्ट्रियल त्रिबुनल और अब तक के प्रोग्रेस .
8) चालको के ऊपर दिन प्रति दिन  बढ़ते . दबाव और अत्याचार
वगैरह - वगैरह ..

                                                        आडिटोरियम का मंच 
इस अधिवेशन को  उदघाटन  कामरेड  बासु देव आचार्य जी ने अपने भाषणों से किया ! उन्होंने कहा की सरकार श्रमिको के अधिकारों के हनन में सबसे आगे है ! आज श्रमिक वर्ग चारो तरफ से , सरकारी  आक्रमण के शिकार हो रहे  है ! उनके अधिकारों को अलोकतांत्रिक तरीके से दबाया जा रहा है ! अधिवेशन के पहले दिन विभिन्न संगठनो के नेताओ  ने अपने विचार रखे ! सभी नेताओ ने सरकार की गलत नीतियों की बुरी तरह से आलोचना की ! चाहे महंगाई हो या रेल भाड़े की बात , पेट्रोल की कीमत हो या सब्जी के भाव ! 99% जनता त्रस्त  और 1% के हाथो में दुनिया की पूरी सम्पति ! गरीब और गरीब , तो अमीर और अमीर !

 दोपहर भोजन के बाद बंगलुरु रेलवे स्टेशन से लेकर ज्ञान ज्योति आडिटोरियम तक मास रैली निकाली  गयी , जिसमे हजारो सदस्यों  ने भाग लिया !

                                        बंगलुरु स्टेशन से आगे बढ़ने के लिए तैयार रैली !

                                    रैली के सामने कर्नाटक के लोक नर्तक , अगुवाई करते हुए !

राजस्थान से आये इप्टा के रंग कर्मियों ने भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित अंधेर नगरी , चौपट राजा  के तर्ज पर - आज के रेलवे की हालत से सम्बंधित नाटक का प्रदर्शन किया ! 


दुसरे दिन डेलिगेट अभिभाषण में चालक सदस्यों ने  कुछ इस तरह के मुद्दे सामने  प्रस्तुत किये , जो काफी सोंचनीय है --

(1)  लोको चालको को  इस अधिवेशन से दूर रखने और भाग न लेने के लिए , भरसक हथकंडे अपनाये गए ! कईयों की  डेपो में  मुख्य कर्मीदल निरीक्षक के द्वारा छुट्टी पास  नहीं  हुयी  !

(2)  कई डेपो में लोको चालको को साप्ताहिक रेस्ट नहीं दिया जा रहा है , क्योकि गाडियों को चलाने  के लिए  प्रशासन के पास अतिरिक्त चालक नहीं है ! बहुतो को लिंक रेस्ट भी डिस्टर्ब हो जाते है ! कारण गाड़िया तो नहीं रुक सकती ! माल गाडी के चालको को पंद्रह से   बीस घंटो तक कार्य करने पड़ते है ! समय से कार्य मुक्त नहीं हो पाते  है ! कईयों को रिलीफ पूछने पर चार्ज सीट के शिकार होने पड़े है ! अफसरों की मनमानी चरम सीमा पर है ! चालको के परिवार एक अलग ही  घुटन भरे जीवन जी रहे  है ! घर वापस आने पर बच्चे सोये या स्कूल गए मिलते है ! पारिवारिक / सामाजिक जीवन से लगाव  दूभर हो गए है ! "  पापा कब घर आयेंगे ? " - पूछते हुए बच्चे माँ के अंक में सो जाते है ! चालको की पत्त्निया हमेशा ही मानसिक और शारीरिक बोझ से  दबी रहती है ! घर में  सास - ससुर और बच्चो की परवरिश की जिम्मेदारी इनके ऊपर ही होती है ! अजीब सी जिंदगी है !

अणिमा दास  ( स्वर्गीय एस. के . धर , भूतपूर्व सेक्रेटरी जनरल /ऐल्र्सा की पत्नी सभा को संबोधित करते ह !)  इन्होने लोको चालको के पत्नियो से आह्वान किया की वे अपने पति के मानसिक तनाव को समझे तथा सहयोग बनाये रखे !

(3 अस्वस्थता की हालत में रेलवे हॉस्पिटल के डाक्टर चालको को मेडिकल छुट्टी पर नहीं रख रहे है ! उन्हें जबरदस्ती वापस विदा  कर देते है ! परिणाम -कईयों को ड्यूटी के दौरान मृत्यु /ह्रदय गति  रुकने से मौत तक हो गयी है ! डॉक्टर घुश खोर हो गए है !

(4) चालको के डेपो इंचार्ज ...मनमानी कर रहे है , उनके आवश्यकता के अनुसार  उनकी बात न मानने पर , तरह - तरह के हथकंडे अपना कर परेशान  करते है ! इस विषय पर एक कारटून प्रदर्शित किया गया था -जैसे =
" सर दो दिनों की छुट्टी चाहिए !" - एक लोको चालाक मुख्य कर्मीदल निरीक्षक से आवेदन करता है ! करीब  सुबह के नौ बजे !
" दोपहर बाद मिलो !" निरीक्षक के दो टूक जबाब !
लोको चालक दोपहर को ऑफिस में गया और अपनी बात दोहरायी !
" शाम को 5  बजे आओ !" निरीक्षक ने संतोष जताई !
बेचारा लोको चालक 5 बजे के बाद ऑफिस में गया ! निरीक्षक की कुर्सी खाली  मिली !
ये वास्तविकता है !

(5) चालको के अफसर भी कम नहीं है ! अनुशासित को दंड और बिन - अनुशासित की पीठ थपथपाते है ! अलोकतांत्रिक रवैये अपना कर ,चार्ज सीट दे रहे है ! छोटे - छोटे गलतियों के लिए मेजर दंड दिया जा रहा है !  डिसमिस  / बर्खास्त  उनके हाथ के खेल  हो गए है ! कितने तो पैसे कमाने के लिए चार्ज सीट दे रहे है !

(6) सिगनल लाल की स्थिति में पास करने पर ..सीधे चालको को बर्खास्त किया जा रहा है ,बिना सही कारण जाने हुए ! जब की कोई भी चालक ऐसी गलती नहीं करना चाहता  ! इसके पीछे कई कारण होते है ! अपराधिक क्षेत्र में सजा के अलग - अलग प्रावधान है , पर चालको के लिए कारण जो भी हो , सजाये सिर्फ एक --बर्खास्त / डिसमिस  ! सजा का एक घिनौना रूप !


(7) कई एक रेलवे में लोको चालको को बुरी तरह से परेशान  किया जा रहा है ! बात - बात पर नोक - झोंक !

(8) रेलवे में घुश खोरी अपने चरम पर है ! अफसर बहुत ही घुश खोर हो गए है ! उनके पास रेलवे से एकत्रित की गयी अकूत सम्पदा है ! सतर्कता विभाग लापरवाह है ! घुश खोरी का मुख्य मार्ग ठेकेदारी है , जिसके माध्यम से घुश अर्जित किये जाते है ! यही वजह है की ठेकेदारी जोरो पर है !

(9) अस्पतालों,रेस्ट रूम और खान-पान व्यवस्था बुरी तरह से क्षीण हो चुकी है ! लोको चालक इनसे बुरी तरह परेशान है ! शिकायत कोई सुनने वाला नहीं है ! शिकायत  सुनने वाला  घोड़े बेंच कर सो रहा है !

(10) रेलवे का राजनीतिकरण हो गया है ! राज नेता इसे तुच्छ स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगे है ! कुछ दिनों में इसकी हालत इन्डियन वायु सेवा  जैसी हो जाएगी ! यह एक गंभीर समस्या है !

  और भी बहुत कुछ भारतीय व्यवस्था के ऊपर करारी चोटें   हुयी , जो सभी को रोजाना प्रत्यक्ष दिख रहा है !

सभी के प्रश्नों का जबाब देते हुए काम. एम्.एन. प्रसाद सेक्रेटरी जनरल ने कहा की आज सभी श्रमिक वर्ग को सचेत और एकता बनाये रखते हुए ...आर - पार की लडाई लड़नी  पड़ेगी   !

अधिवेशन  के आखिरी में नए राष्ट्रिय कार्यकारिणी का चुनाव हुए ! जिसमे एल.मणि ( राष्ट्रिय अध्यक्ष ),एम् एन प्रसाद (राष्ट्रिय सेक्रेटरी ) और जीत  सिंह टैंक ( राष्ट्रिय कोषाध्यक्ष ) निर्विरोध चुने गए !
                                                   सजग प्रहरी एक चौराहे पर  



Wednesday, February 15, 2012

नीयत में खोट !

                                                            इन्द्रधनुष  के सात रंग

दुनिया के इतिहास में ....चौदह फरवरी का दिन बहुत ही मायने रखती है ! बच्चो  से लेकर... क्या बुड्ढ़े  ?  सभी अपने - आप में मस्त , प्रायः पश्चिमी देशो में ! कोई भी त्यौहार ..हमें भाई चारे और सदभावनाए  बिखेरने  , एक दुसरे को प्यार से गले लगाने या इजहार करने के सबक देते है ! किसी भी तरह के त्यौहार / पर्व में हिंसा का कोई स्थान नहीं है ! चाहे वह किसी भी जाति /धर्म /मूल /देश - प्रदेश के क्यों न हों !  आज - कल हम  इस क्षेत्र में कहाँ तक सफल हो पाए है . यह सभी के लिए चिंतनीय और विचारणीय विषय है ! आये दिन -सभी जगह हिंसा और व्यभिचार अपना स्थान लेते जा रहा है !

अब आयें विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! कहते है  जो जैसा  बोयेगा , वो  वैसी  ही फसल कटेगा ! जैसा अन्न - जल खायेंगे , वैसी ही बुद्धि और विचार भी प्रभावित होती है ! ! जैसी राजा , वैसी प्रजा ! जैसी ध्यान वैसी वरक्कत ! यानी व्यक्ति का गुण ... हमेशा  उसके प्रकाश / बिम्ब को ...दुसरे के सामने प्रकट कर ही देता है ! हर व्यक्ति में एक छुपी हुयी आभा होती है ! जो उसके स्वभाव को प्याज के छिलके के सामान ...उधेड़ कर प्रदर्शित करती है ! 

कल प्यार  और मिलन का दिन बीत गया ! वह भी अजीब सी थी ! मै कल ( १४-०२-२०१२ ) सिकंदराबाद में था ! सुना था और आज साक्षी पेपर में छपा हुआ मिला - की हमारे मंडल का  एक कर्मचारी संगठन ( दक्षिण मध्य रेलवे एम्प्लोयी यूनियन ) ने मंडल रेल मैनेजर के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था ! उनकी मांग यह थी की रायल सीमा एक्सप्रेस , जो रोजाना - तिरुपति से हैदराबाद जाती है... को लिंक संख्या -२ में जोड़ दिया जाय ! यह ट्रेन फिलहाल लिंक संख्या -४ में है ! लिंक संख्या दो - सुपर फास्ट ट्रेनों की लिंक है , जो वरिष्ठ लोको पायलटो के द्वारा कार्यरत है ! रायलसीमा एक्सप्रेस फास्ट पैसेंजर ही समझे !
अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों ? 

 उपरोक्त यूनियन कांग्रेस समर्थित है ! लिंक संख्या दो में ज्यादातर उसके समर्थक नहीं है ! रायलसीमा को गुंतकल से हैदराबाद लेकर जाना काफी कष्ट प्रद है ! वह ( यूनियन ).. अन्य यूनियन के  समर्थको को सबक सिखाना चाहती है ! उसने अपने पेपर स्टेटमेंट में कहा है- की हमने लिंक दो में रायलसीमा को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर किये थे , फिर यह लिंक चार में कैसे जुट गया ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर लापरवाह हैं ! वह अपनी मर्जी को कर्मचारियों के ऊपर थोप रहे हैं !....वगैरह - वगैरह !

लिंक क्या है ? 
 कई ट्रेन के समूह को संयोजित रूप में इकट्ठा कर - इस तरह से सजाया जाता है की लोको पायलट को यह ज्ञात हो की कब कौन सी ट्रेन लेकर कहाँ तक जानी है और वहां से कौन सी ट्रेन लेकर वापस आनी  है ! इससे प्रशासन और लोको पायलट दोनों को ही लाभ होते है ! इसे तैयार करते समय सभी मूल भूत नियम और कानून को ध्यान में रखा जाता है ! इस लिंक को वरिष्ट लोको इंस्पेक्टर तैयार करते है ! इसे तैयार करते समय बहुत ही माथापच्ची करनी पड़ती है ! जिससे लोको पायलट को पूर्ण रात्रि विश्राम / साप्ताहिक विश्राम वगैरह सठिक रूप से मिले ! इस तरह से भारतीय रेलवे में प्रायः दो तरह के लिंक होते है १) साप्ताहिक ट्रेनों की और २ ) रोजाना ट्रेनों की ! कौन सी ट्रेन को किस लिंक में शामिल किया जाय - इसके लिए कोई प्रावधान /कानून नहीं है ! बस स्वतः सेट अप पर निर्भर करता है !

किसी भी यूनियन को क्या करनी चाहिए ?
प्रत्येक यूनियन को  कर्मचारियों के बहुआयामी  हित को ध्यान में रख कर - निर्णय लेने चाहिए ! उनके सामने सभी कर्मचारी बिना भेद - भाव के सामान होते है ! उन्हें ओछे हरकतों और कार्यो से बाज आनी चाहिए , जिसमे कर्मचारियों के हित कम और नुकशान ज्यादा हो ! इनके नेताओ को और भी जागरुक और सतर्क रहनी चाहिए ,जिससे की कोई उन पर अंगुली न दिखाए ! और भी बहुत कुछ ...
उपरोक्त यूनियन  ने क्या किया ? 
इस लिंक से उस लिंक की मांग कर अपने सम्यक धर्म को ताक पर रख दिया है ! जो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था ! इन्हें तो समस्याओ को निदान करने के तरीके धुंधने चाहिए ! कोई भी लिंक हो ...एक ..दो...या तीन ..सभी को एक लोको पायलट ही कार्यान्वित करता है ! यहाँ  इस यूनियन ने ....एक लिंक  को  समर्थन कर -- दुसरे लिंक के समस्या को बढाने का कार्य कर रही  है !  यह यूनियन  अपने धर्म को तक पर रख , स्वार्थ में वशीभूत हो ..अनाप - सनाप बयान बाजी और आरोप लगाये जा रही है !  शायद खानदानी असर है ! यह... एक ओछे ज्ञान की पूरी  पोल खुलती नजर आ रही है   ---हाय रे  विवेक हिन् यूनियन !
प्रशासन का खेल ....
 रेलवे प्रशासन मौन मूक है !  लड़ाओ और राज करो - के तारे नजर आ रहे है !  क्या प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभा पाने में असमर्थ है ? जब की मै भी अपने इंजिनियर साहब  से मिला था और विस्तृत बात हुयी थी ! समस्याओ को उजागर किया था !  उसके निदान के लिए बिना किसी नंबर को उधृत किये हुए ..समस्याओ के निदान की सलाह भी  दी थी ! इंजिनियर साहब ने आश्वासन भी दिया था ! उनके इमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता , पर उच्च  पद का दबाव  और शक्ति कई बार मनुष्य को लाचार  बना देती है ! वह  असहाय हो जाता है !
समीक्षा  ---
 और कुछ नहीं , बस इनके नियत में खोट है ! कोई भी यूनियन आँख बंद कर कोई हस्ताक्षर नहीं करती ! अगर कर भी दिए तो जल्द बताते नहीं ! इनकी नेताओ की कारगुजारी सामने आ गयी है ! जिसकी कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए !  इन्होने अपने  प्यार का इजहार आरोप - प्रत्यारोप में किया , वह भी प्यार के दिन ! मुह में नमक हो तो मिठाई मीठी नहीं लगती ! इसीलिए तो दो नंबर ही पसंद है --है तो दो नम्बरी !  इन्हें एक नम्बरी /  एक याद नहीं आती ! इन जैसी लोलुप और चाटुकार.... वंशी यूनियनों की जीतनी भी भर्त्सना की जाय , वह कम ही है !  कुछ भला  करते हुए और जीवन जियें ....जिससे की  दुनिया याद करे ! नतमस्तक करे ! वह जीवन ..जीवन  नहीं ,    जिसकी कोई कहानी न हो !  कुछ मर के  भी सदैव जिन्दा रहते  है और  कुछ रोज मर-मर  के  जीवन जीते  है ! 
                       पतझड़ में भी फूल खिलते है - पलास के ....आशा अभी भी  जिन्दा है ! !

Tuesday, January 17, 2012

आधी रात और हप्ता


आज आधी रात दौड़ जंक्सन ,  . में लगभग 30-50 रुन्निंग  स्टाफ (लोको पायलटों) ने ( १६/१७-०१-२०१२ , सोलापुर डिवीजन के अंतर्गत). ट्रेनों की आवाजाही .. लगभग २ से ३ घंटे तक . बंद कर दिया (नांदेड़ एक्सप्रेस , राजकोट एक्सप्रेस  आदि) , सभी ने ऐसा अपने क्षेत्र के गुंडा गर्दी के बिरोध में किया ! श्री सुशील कुमार / ALP  से पैसे के लिए स्थानीय  गुंडे हप्ता मांग रहे थे ! इसका बिरोध करने पर उनकी बुरी तरह से पिटाई उन गुंडों ने की ! वह अब अस्पताल में है ! डीआरएम / ए.डी.आर.एम्.के  हस्तक्षेप , और ADME / इंस्पेक्टर रेलवे सुरक्षा बल / जीआरपी- इंस्पेक्टर /स्टेशन मैनेजर -  दौड़ के द्वारा ,   लेखन में संयुक्त रूप से आश्वासन देने के बाद , गाडियों की आवाजाही शुरू हुई !,

लाल सलाम दौड़ डिपो के सभी रुन्निंग कर्मचारियों को .!
(मध्य रेलवे के शोलापुर मंडल )

(एक 10 साल के बच्चे ने रोक दिया बड़ा रेल हादसा- इसे पढ़ने के लिए  ' न्यूज़ '  में जाएँ )!

Wednesday, January 4, 2012

सूरज की आखिरी किरण

संसार में जीवो में  जीव महामानव ....मानव ही है ! दुनिया की गन्दगी इसी में है ! थोड़े समय के लिए सोंच लें -अगर मानव के शारीर में पेट नहीं होता , तो वह परिस्थितिया कैसी होती थी ? क्या जीवो के अन्दर हिंसा या अहिंसा होती ? क्या हम सभी लोग आपस में सामाजिक और सम सामायिक  समस्याओ से घिरे होते ? आज दुनिया में आर्थिक राजनीतिक ,सामाजिक और आधुनिक जंग छिड़ी हुयी  है ! कोई भी किसी के सामने झुकने को तैयार नहीं ! इस पेट की आग ऐसी लगी है , जो मरते दम तक बुझ नहीं सकती ! दुनिया के सारे  अनर्थ का अर्थ  यही है !

मै पिछले  वर्ष और दिसंबर के आखिरी माह में  , अपने रिफ्रेशर  ट्रेंनिंग के दौरान  काजीपेट स्टेशन के आस - पास टहल रहा था ! हम कुल तीन थे ! संध्या वेला ! हमने देखा एक तीन वर्ष का लड़का - अंगार के ऊपर मक्के को सेंक रहा था ! बिलकुल काम में  तल्लीन ! मैंने तुरंत उसके फोटे ले लिए  और उसे दिखाया ! वह बहुत खुश हुआ ! उस ख़ुशी  में निश्छल मुस्कराहट छिपी हुयी थी !  मेरे फोटो लेने का अभिप्राय क्या था ? उसे कुछ भी नहीं मालूम ! वह हँसता रहा और पंखे को जोर से झटकते हुए बोला -एम् कवाली ( क्या चाहिए ? ) मुझे उसके परिस्थिति को देख दया आ गई  ! पर वेवस - मेरे पास कोई जादुई चिराग तो  नहीं की उसके जीवन को बदल दूँ ! हमने उससे तीन मक्के खरीद लिए और रोज आने की वादा कर ..आगे बढ़ गए ! जब तक वहा थे - रोजाना मक्का ख़रीदे और मक्के के लुत्फ उठाये  !
 कुछ तस्वीर प्रस्तुत है -
                                                    कल  की लगन और जलते अंगारे !
                                        इनके आँखों में भी एक सुनहरा भारत है ! बेबस
                                  चमकीली आँखें और सुनहले भविष्य ! भारत का एक कोना !  
वैसे मुझे चलते - चलते कहीं भी , तस्वीर लेने की आदत सी पड़ गयी है ! यह उसी का एक अंग है ! आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे  लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !

Tuesday, November 29, 2011

ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

 ब्लॉग जगत एक समुद्र है ! इसमे तैरने के बाद , जो मिला वो विस्मित कर देता है ! आप भी पढ़े महेंद्र श्रीवास्तव जी का  " आधा सच "

 http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

Thursday, 14 July 2011


ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

मित्रों  

आज बात तो रेल हादसे पर करने आया था, लेकिन मुंबई ब्लास्ट का जिक्र ना करुं तो लगेगा कि मैने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। मुंबई में तीन जगह ब्लास्ट में अभी तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन कई लोग गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ब्लास्ट दुखद है, हम सभी की संवेदना उन परिवारों के साथ है, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है। लेकिन ब्लास्ट के बाद सरकार के रवैये पर बहुत गुस्सा आ रहा है।

बताइये किसी देश का  गृहमंत्री यह कह कर सरकार का बचाव करे कि 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। इसे अपनी उपलब्धि बता रहा है। इससे ज्यादा तो शर्मनाक कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का है। वो कहते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। ऐसे बयानों से तो इनके लिए गाली ही निकलती है, लेकिन ब्लाग की मर्यादा में बंधा हुआ हूं। फिर इतना जरूर ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि आगे जब भी ब्लास्ट हो, उसमें मरने वालों में मंत्री का भी एक बच्चा जरूर हो। इससे कम  से कम ये नेता संवेदनशील तो होंगे। चलिए अब मैं आता हूं अपने मूल विषय रेल दुर्घटना पर...


 बीता रविवार मनहूस बनकर आया। मेरे आफिस और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, लिहाजा घर में आमतौर पर सुबह से शुरू हो जाने वाली भागदौड़ नहीं थी। आराम से हम सब ने लगभग 11 बजे सुबह का नाश्ता किया और लंच में क्या हो, ये बातें चल रही थीं। इस बीच आफिस के एक फोन ने मन खराब कर दिया। चूंकि आफिस में मैं रेल महकमें जानकार माना जाता हूं, लिहाजा मुझे बताया गया कि यूपी में फतेहपुर के पास मालवा स्टेशन पर हावडा़ कालका मेल ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। मुझे इतना भी समय नहीं दिया गया कि मैं दुर्घटना के बारे में आगे कोई जानकारी कर सकूं और मेरा फोन सीधे एंकर के साथ जोड़ दिया गया। 

चूंकि कई साल से मैं रेल महकमें को कवर करता रहा हूं और कई तरह की दुर्घटनाओं से मेरा सामना हो चुका है, लिहाजा सामान्य ज्ञान के आधार पर मैं लगभग आधे घंटे तक दुर्घटना की बारीकियों यानि ऐसे कौन कौन सी वजहें हो सकती हैं, जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, ये जानकारी देता रहा। बहरहाल मैने आफिस को बताया कि थोड़ी देर मुझे खाली करें तो मैं इस दुर्घटना के बारे में और जानकारी करूं। आफिस में हलचल मची हुई थी, कहा गया सिर्फ पांच मिनट में पता करें, आपको दुबारा फोन लाइन पर लेना होगा।

बहरहाल मैने रेल अफसरों को फोन घुमाना शुरू किया। अब इस बात पर जरूर गौर कीजिए.. पहले तो दिल्ली और इलाहाबाद के कई अफसरों ने  फोन ही नहीं उठाया, क्योंकि छुट्टी के दिन रेल अफसर फोन नहीं उठाते  हैं। इसके अलावा सात आठ अधिकारियों को रेल एक्सीडेंट के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने उल्टे  मुझसे पूछा कि क्या यात्री ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई है या मालगाड़ी। अब आप समझ सकते हैं कि देश में रेल अफसर ट्रेन संचालन को लेकर कितने गंभीर हैं। 

खैर बाद में रेलवे के एक दूसरे अफसर से बात हुई। मोबाइल उन्होंने आंन किया, लेकिन वो रेलवे के फोन पर किसी और से बात कर रहे थे, इस दौरान मैने इतना भर सुना कि सेना को अलर्ट पर रखना चाहिए, क्योंकि उनके आने से क्षतिग्रस्त बोगी में फंसे यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने में आसानी होगी। ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए,  क्योंकि ये साफ हो गया कि एक्सीडेंट छोटा मोटा नहीं है। बहरहाल इस अधिकारी ने इतना तो जरूर कहा कि महेन्द्र जी बडा एक्सीडेंट है, लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता, कोशिश है कि पहले कानपुर और इलाहाबाद की एआरटी (एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन) जल्द घटनास्थल पर पहुंच जाए। 

अफसर का फोन काटते ही मैने आफिस को फोन घुमाया और बताया कि दुर्घटना बड़ी है, क्योंकि सेना को अलर्ट किया गया है। बस इतना सुनते ही आफिस ने फिर ब्रेकिंग न्यूज चला दी और मेरा फोन एंकर से जोड़ दिया गया। इस ब्रेकिंग को लेकर मैं काफी देर तक एंकर के साथ जुडा रहा और ये बताने की कोशिश की किन हालातों में सेना को बुलाया जाता है। चूंकि रेल मंत्रालय सेना को बुला रहा है इसका मतलब है कि कुछ बड़ी और बुरी खबर आने वाली है। खैर कुछ देर बाद ही बुरी खबर आनी शुरू हो गई और मरने वाले यात्रियों की संख्या तीन से शुरू होकर आज 69 तक पहुंच चुकी है। 

ट्रेन हादसे की वजह

ट्रेन हादसे की वजह को आप ध्यान से समझें तो आपको पत्रकारों के पागलपन को समझने में आसानी होगी। हादसे की तीन मुख्य वजह है। पहला रेलवे के ट्रैक प्वाइंट में गड़बड़ी। ट्रैक प्वाइंट उसे कहते हैं जहां दो लाइनें मिलतीं हैं। कई बार ये लाइनें ठीक से नहीं जुड़ पाती हैं और सिगनल ग्रीन हो जाता है। इस दुर्घटना में इसकी आशंका सबसे ज्यादा जताई जा रही है। दूसरा रेल फ्रैक्चर । जी हां कई बार रेल की पटरी किसी जगह से टूटनी शुरू होती है और ट्रेनों की आवाजाही से ये टूटते टूटते इस हालात में पहुंच जाती है कि इस तरह की दुर्घटना हो जाती है। इसके लिए गैंगमैन लगातार ट्रैक की पेट्रोलिंग करते हैं, पटरी टूटने पर वो इसकी जानकारी रेल अफसरों को देते हैं और जब तक पटरी ठीक नहीं होती, तब तक ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही बंद रहती है। तीसरी वजह कई बार इंजन के पहिए में  दिक्कत हो जाती है इससे भी ऐसी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। 

ट्रेन के ड्राईवर ने अफसरों को बताया है कि वो पूरे स्पीड से जा रहा था, अचानक इंजन के नीचे गडगड़ाहट हुई, और इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता ट्रेन दुर्घटना हो चुकी थी। बताया जा रहा है कि ट्रैक प्वाइंट आपस में ठीक तरह से नहीं जुड पाया और तकनीकि खामी के चलते सिग्नल ग्रीन हो गया। कालका मेल अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर बढ रही थी,  एक झटके में वो पटरी से उतर गई और उसके कई डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ गए। 
दुर्घटना सहायता ट्रेन
हां दुर्घटना के बाद राहत का काम कैसे चला इसकी बात जरूर की जानी चाहिए। मित्रों ट्रेनों का संचालन मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रुम से किया जाता है। जैसे ही कोई ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, उसके आसपास के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सायरन बजाए जाते हैं, जिससे रेल अफसर, डाक्टर और कर्मचारी बिना देरी किए एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन (एआरटी) में पहुंच जाते हैं। इस एआरटी में एक उच्च श्रेणी का मेडिकल वैन भी होता है, जिसमें घायल यात्रियों को भर्ती करने का भी इंतजाम होता है। सूचना मिलने के बाद 15 मिनट के भीतर कानपुर और इलाहाबाद से एआरटी को घटनास्थल के लिए रवाना हो जाना चाहिए था और 45 मिनट से एक घंटे के भीतर इसे मौके पर होना चाहिए था। लेकिन रेलवे के निकम्मेपन की वजह से ये ट्रेन चार घंटे देरी से घटनास्थल पर पहुंची। सच ये है कि अगर रिलीफ ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो मरने वालों की संख्या कुछ कम हो सकती थी। 
पत्रकारों का पागलपन
जी हां अब बात करते हैं पत्रकारों के पागलपन की या ये कह लें उनकी अज्ञानता की। रेलवे के अधिकारी अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए अक्सर कोई भी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी ड्राईवर पर डाल देते हैं। जैसे एक ट्रेन दूसरे से टकरा गई तो कहा जाता है कि ड्राईवर ने सिगनल की अनदेखी की, जिससे ये दुर्घटना हुई। रात में कोई ट्रेन हादसा हो गया तो कहा जाता है कि ड्राईवर सो गया था, इसलिए ये हादसा हुआ। मित्रों आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए, अगर कोई एक्सीडेंट होता है तो सबसे पहले ड्राईवर की जान को खतरा रहता है, क्योंकि सबसे आगे तो वही होता है। लेकिन निकम्मे अफसर ड्राईवर की गल्ती इसलिए बता देते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में ड्राईवर की मौत हो जाती है, उसके बाद जांच का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता। 

ऐसी ही साजिश इस दुर्घटना में भी की गई। कहा गया कि ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, इसकी वजह से दुर्घटना हुई। अब इनसे कौन पूछे कि अगर इमरजेंसी ब्रेक इतना ही खतरनाक है तो इसका प्रावीजन इंजन में क्यों किया गया है। इसे तो हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन नहीं, पागलपन की इंतहा देखिए, पत्रकारों ने घटनास्थल से चीखना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई और ये क्रम दूसरे दिन भी जारी रहा। 

हकीकत ये है दोस्तों को अफसरों को लगा कि इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है ड्राईवर की मौत हो गई होगी, लिहाजा उस पर ही जिम्मेदारी डाल दी जाए। लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन तब तक पत्रकारों ने माहौल तो खराब कर ही दिया था। 
  

25 comments:

संध्या शर्मा said...
ट्रेन हादसा तो हो ही गया और ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. जो बातें सामने आती हैं उसे पत्रकारों का पागलपन कहें या अज्ञानता या फिर रेलवे के अधिकारियों का निकम्मापन लोग तो मारे जाते हैं और सारे सफाई देते रह जाते हैं, क्या ये दुर्घटनायें रोकी नहीं जा सकती... सार्थक विचार...
अरुण चन्द्र रॉय said...
महेंद्र जी जब हम पढ़ रहे थे पत्रकार बनना एक सपना हुआ करता है... समर्पित हुआ करते थे लोग सपने के लिए.. भाषा और विषय पर पकड़ हुआ करती थी... अब तो विषय और भाषा पर पकड़ ही नहीं है... बस चीखना चिल्लाना है.. कई मेरे स्ट्रिंगर मित्र मुझ से स्क्रिप्ट लिखवाते हैं फिर फ़ोनों करते हैं.... क्या पत्रकार मित्र इसको समझेंगे कि बिना तैयारी के रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए...
mahendra srivastava said...
अरुण जी, आप तो स्ट्रिंगर की बात कर रहे हैं, मैन जो उल्लेख किया है, वो दिल्ली और लखनऊ के पत्रकारों का हाल है। विषय की जानकारी के बगैर कुछ भी आंय बांय शांय बोलते रहते हैं।
Suman said...
इस हादसे को टी वी पर देखकर बड़ा दुःख हुआ ! बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार आपका !
मनोज कुमार said...
आपकी रिपोर्टिंग ग़ज़ब की है। घटना की तह में जाकर आपने कई ऐसी जानकारी दी है जो हमारे लिए नई थी। चाहे वह आपके पत्रकार बिरादरी की ही बात क्यों न हो। ऐसी निष्पक्ष रिपोर्टिंग कम ही देखने को मिलती है।
Kailash C Sharma said...
आज कल घटना की तह में न जाकर केवल sensational reporting करना टी वी चंनेल्स में आम बात होती जा रही है. आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग का जो रूप प्रस्तुत किया है वह काबिले तारीफ़ है..आभार
रविकर said...
धीरज रखें || हमेशा ऐसा नहीं होगा || हम जरुर सुधरेंगे || हर-हर बम-बम बम-बम धम-धम | थम-थम, गम-गम, हम-हम, नम-नम| शठ-शम शठ-शम व्यर्थम - व्यर्थम | दम-ख़म, बम-बम, तम-कम, हर-दम | समदन सम-सम, समरथ सब हम | समदन = युद्ध अनरथ कर कम चट-पट भर दम | भकभक जल यम मरदन मरहम || राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
रविकर said...
पकडे गए इन दुश्मनों ने, भोज सालों है किया | मारे गए उन दुश्मनों की लाश को इज्जत दिया || लाश को ताबूत में रख पाक को भेजा किये | पर शिकायत यह नहीं कि आप कुछ बेजा किये --- राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || रेल के घायल कराहें, कर्मियों की नजर मैली | जेब कितनों की कटी, लुट गए असबाब-थैली | तृन-मूली रेलमंत्री यात्री सब घास-मूली संग में जाकर बॉस के कर रहे थे अलग रैली | राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || नक्सली हमले में उड़ते वाहनों संग पुलिसकर्मी | कूड़ा गाडी में ढोवाये, व्यवस्था है या बेशर्मी | दोस्तों संग दुश्मनी तो दुश्मनों से बड़ी नरमी || राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही ||
Rajesh Kumari said...
Mahendra ji aapka bahut bahut dhanyavaad aapne baat ki tah tak panhuch kar ye jaankari di hai.isi tarah agar sabhi apni jimmedari sahi dhang se nibhayen to ye haadse hi na ho.aur humaare desh ki security kitni majboot hai yeh to main haal me hi dekh chuki hoon.
रविकर said...
ड्राइवर को दोषी बता, बचा रहे थे जान, जान नहीं पाए उधर, जिन्दा है इंसान | जिन्दा है इंसान, थोपते जिम्मेदारी, आलोचक की देख, बड़ी भारी मक्कारी | कह रविकर समझाय, निकाले मीन-मेख सब- मुंह मोड़े चुपचाप, मिले उनको जिम्मा जब ||
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
सही कहा आपने। पत्रकार कब किस चीज को किस रूप में प्रस्‍तुत कर दें, कहा नहीं जा सकता। ------ जीवन का सूत्र... लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?
ZEAL said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा ! लोग अपनी गलतियों की जिम्मेदारी दुसरे पर आसानी डाल देते हैं ! ड्राईवर की कोई गलती न होते हुए भी इल्जाम मढ़ा जा रहा था ! पूरे प्रकरण में राहुल गांधी का बयान बेहद भद्दा , बचकाना और गैरजिम्मेदाराना है. शर्मनाक !
रेखा said...
आपने बहुत सारी जानकारी दी है जो हमें पता ही नहीं थी ......इन नेताओं के बयानों को सुनकर कभी -कभी खुद को ही शर्म आने लगाती है
Babli said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा जिसमें मासूम लोगों की जान चली गयी! बहुत दुःख हुआ देखकर! आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
inqlaab.com said...
:)
Maheshwari kaneri said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा...बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा ।नेताओं के बयानों को सुनकर शर्म आती है...
निर्मला कपिला said...
दर्दनाक हादसे का कडवा सच जान कर दुख हुया। पता नही हमारा मीडिया कब सुधरेगा। आभार।
Vivek Jain said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay said...
बहुत अच्छा लिखा है .जैसा दिखाया जाता है समाचारों में वो आधा सच ही होता है .लेकिन आपको पढ़कर बहुत कुछ साफ-साफ समझ में आता है..
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
शालिनी पाण्डेय जी - जागरण जंक्शन में बहुत कम मिलते हैं हम ...?? अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५ लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती।
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
प्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी क्षमा करियेगा ऊपर की टिपण्णी हटा दीजियेगा कुछ भूल .. अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी सादर वंदेमातरम् ! ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन आपकी ऊर्जावान लेखनी से निकले अन्य आलेखों की तरह ही प्रभावशाली है । अपराध की हद तक ग़ैरज़िम्मेवाराना हरक़तें करते टुक्कड़खोर पत्रकार जो कह-लिख-कर जाए वो कम … … … और… मुंबई ब्लास्ट की ताज़ा घटना हर सच्चे भारतीय को आहत कर रही है , वहीं इस नपुंसक-नाकारा सरकार की बेशर्मी आग में घी का काम कर रही है … - ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। - 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। उत्तरदायित्वों को निभाने में सर्वथा असफल रहने के बावजूद भी ऐसे कायरतापूर्ण और बेशर्मी भरे बयान देने वाले नेताओं को चुल्लू पानी में डूब मरना चाहिए … आतंक और आतंकियों के संबंध में मैंने लिखा है - अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ ! नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !! दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार ! फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !! मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम ! ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !! इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार ! वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !! शस्वरंपर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है … हमेशा ही आवश्यक विषयों पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आपका आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं ! -राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनीता शानू said...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
Rachana said...
mahendra ji aapne to aankhen hi hol din itni gahri baat batai ab kya kahun desh bhi apna aye yahan ke log bhi .bahut dukhta hai dil aap ka abhar rachana
वर्ज्य नारी स्वर said...
सही और सार्थक आलेख