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Thursday, April 14, 2016

सर्प दंश

सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार । जमीन या पेड़ या घरो में रहने वाले सर्प बहुत ही नुकसान देह होते  है । 

वैसे तो सर्प  के बारे में पूरी दुनिया में कई किस्से मशहूर है   किताबो से ज्यादा चलचित्र में । नाग और नागिन पर आधारित चलचित्र मनोरंजन के प्रमुख साधन है । चलचित्र में नाग या नागिन द्वारा अपने दुश्मन से बदला लेने की कला सबको चकित कर देती है । मन में ये दृश्य ऐसे समा जाते है जैसे सच में  भी यह संभव है । चलचित्र की कहानिया सही हो या न हो पर  वास्तविक जीवन में कुछ घटनाये गहरी दर्द दे जाती है । कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हें याद करते ही शारीर में सिहरन दौड़ जाती है । मैं खुद और मेरे परिवार के लोग कई बार सर्प से सामना कर चुके है ।  यहाँ तक की एक बहुत ही पुराना सर्प मेरे घर में वर्षो से निवास कर रहा था और इसकी भनक किसी को नहीं । भगवान की दया है की कोई नुकशान नहीं झेलने पड़े ।

एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी  भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।

सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।


सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के  पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।

भारती  की नजर  उस सर्प पर  पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर  को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।

कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर  यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या  किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने  लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी  कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।

जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।

Monday, August 20, 2012

छिपकली - डूबते को तिनके का सहारा



थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी  । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।  

ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै  तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का -  कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।


उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल  लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा  - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर  गया है । दाल मथना बाकी है ।

अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर  देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ ।  सभी  के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ  देता  था और आज हम सभी लोको पायलट  विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।

फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल  दिया गया और नए सिरे से तैयारी  की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।


Friday, March 16, 2012

....... माँ का आंचल ......



माँ पलंग  से उतर  ..तुरंत अपने अंक में भर ली  ! मेरी कपकपी दूर हो गयी ! माँ के आंचल से बड़ा सुख , इस दुनिया के किसी  तम्बू में नहीं है ! वह घबडा गयी ! वह घबरायी हुयी - अमला  ( मेरी छोटी बहन ) से बोली --"  जा ..बेटी  जरा मिर्ची  या काली मिर्च लाओ !" बहन  ने माँ के आज्ञा का तुरंत  पालन किया और  तुरंत हाजीर  हो गयी और माँ के हथेली पर रख दी ! माँ  मेरे तरफ मुखातिब हो बोली - " लो बेटा इसे खाओ !" मैंने न में सिर हिलाई , आनाकानी की  किन्तु माँ नहीं  मानी ! जबरन मुझे काली मिर्च खानी ही पड़ी ! तब तक छोटी दादी , चाची और कई लोग आँगन के प्रांगन  में हाजिर हो गए थे ! मेरे आंख में आंसू आ गए  ! काली  मिर्च काफी तीता लग रहा था ! 

माँ ने पूछा - " कैसा लग रहा है ? "   ....." बहुत तीता !" मैंने अपने हाथो से आँख के पोरों पर लुढ़क रहे आंसू के बूंदों को पोंछते हुए कहा ! फिर माँ बोली -" कुछ नहीं हुआ ! वहां  क्यों गए थे ? उस तरफ नहीं जाना था !" और माँ मेरे आंसुओ को  अपने साड़ी के आँचल से पोछने लगी ! मेरा दिल भी हल्का हो गया ! मैंने देखा , माँ के आँखों में भी आंसू भर आयें थे ! जो मौन मूक थे ! छोटी दादी  और सभी ने कौतुहल वस्  पूछ बैठे - " आखिर ऐसा  क्या  हो गया जी ? जो इतनी घबडाई हो !" 
"  इसी से पूछ लीजिये  ! " - माँ ने कहा और सबकी नजर मेरे तरफ ! 
" मेरे पैर के नजदीक से बड़ा  सांप गुजर गया था ! और क्या ? " मैंने  भी संक्षेप में ...अनमनी - शरारती   अंदाज में उत्तर दे दिया  ! आखिर बचपना जो था ! उस समय सांप या किसी जहरीले जंतु से बड़ा भय लगता था ! सभी के मुख से बस एक ही आवाज - "  वापरे ..वाप !" गोरखनाथ बहुत नसीब वाले हो ! सभी मेरे मुख को देखते रह गए !

जी हाँ  ! बिलकुल सही और सत्य घटना है , जब एक दफा , एक लम्बा सांप  , मेरे पैर के  बहुत करीब से गुजर गया था !
 घटना  कुछ  इस प्रकार है --
 मई के महीने थे  ! स्कुलो में छुट्टिया हो गयी थी ! अतः  पिताजी सपरिवार कोलकाता से गाँव आ गए थे ! उस समय कुछ संभ्रांत परिवारों को छोड़ , किसी के भी घर में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! स्त्री हो या पुरुष ..सभी को शौच के लिए गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! फिर भी किसी की ये हिम्मत नहीं होती थी कि किसी के भी बहु -बेटियों को छेड़े ! 

कारण एक संस्कार और सभी की इज्जत कि भावना जिन्दा थी ! सभी रीति और रिश्ते की भैलू समझते थे ! सभी के दिलो में बड़ो के प्रति इज्जत और छोटो के प्रति प्यार भरा था ! जिसकी आज - कल की आधुनिकता की होड़ वाली दुनिया में आभाव  ही आभाव नजर आता है ! जो समाज में ब्याभिचार को जन्म देने के लिए काफी है !


! दोपहर का समय ! मुझे शौच लगा ! मेरी उम्र करीब तेरह वर्ष की  होगी ! मै अकेले खेतो की तरफ निकल पड़ा ! शहर में रहने की वजह से - खुले मैदान में शौच की आदत नहीं थी ! शर्म की वजह से एक गन्ने के खेत में जा बैठा ! कुछ देर बाद मुझे सरसराहट की आवाज सुनाई दी ! गन्ने के पत्ते हिलने लगे , जो जमीन पर पड़ी हुयी थी ! मुझे सियार या भेडिये का शक हुआ ! बैठे - बैठे ही  सिर आस - पास घुमा कर  देखने लगा ! कुछ भी नजर नहीं आया ! अचानक पैर के करीब नजर गयी ! देखा एक बड़ा ( करीब दो मीटर का होगा ) और मोटा सांप रेंगते हुए मेरे सामने से पीछे की ओर जा रहा है ! मेरे खून सुख गए ! जरा भी हिला नहीं ! उसके चले जाने तक स्थिर बैठा रहा ! कुछ क्षण रुक कर भाग खड़ा हुआ ! शरीर कांप रहे थे ! जैसे - तैसे घर आया और सारी घटना , माँ को कह सुनाई ! 


कहते है - जिसे सांप काट लेता है , उसे मिर्च या काली मिर्च की तीतापन महसूस नहीं होता ! यह कहाँ तक सही है , मै भी नहीं समझता ! शायद इसी से अभिभूत हो माँ ने मुझे काली मिर्च खाने को दी थी ! 

इस घटना को सुन सभी दंग रह गए ! माँ से ज्यादा संतान का दुःख किसी को नहीं महसूस होता ! माँ और उसका भय   वाजिब था ! दूसरी माँ मिल सकती है , पर माँ का दूध नहीं मिल सकता ! माँ के ऊपर  अपने सारे प्यार और सभी सुख ... न्योक्षावर कर देने पर भी  ...हम उसके  दूध की कर्ज....   अदा नहीं कर सकते  !    माँ तो माँ होती है !
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Tuesday, August 30, 2011

तिरछी नजर


जादुई छड़ी को कुछ समय के लिए निलंबित कर , सोंचा कुछ चटपटी सी हो जाये ! हमेशा अवसाद , संस्मरण और विवादों से दूर ...कुछ हंसी - मजाक भी होने चाहिए ! अन्यथा मन उबाऊ हो जाता है ! चलिए इस कड़ी में एक नजराना पेश है --तिरछी नजर - कमाल कर गयी !



सुबह का समय , मुम्बई का आर्थर जेल ! जेलर साहब अपने वर्दी में डंडे भांजते हुए , जेल के कैदियों के मुआयने करने निकले ! कसाव को देखते हुए - उसके कमरे से आगे बढे ! उन्हें देख कसाब जोर से हंसा ! जेलर के पाँव रुक गए ! पूछे ? अबे इतना क्यों हँसता है ? 

 कसाव हंसते हुए कहा - " इस लिए की इण्डिया दुनिया का सबसे सुरक्षित जगह है ! अब तक तो पाकिस्तान  में मर गया होता ! हमारे यहाँ अब तक अपने ही  मार डालते थे ! "  जेलर  गुस्से से तिल- मिलाया ! बोला -  " तू मेरा वी.आई .पी.है ! अपने से आया है - हमारे इजाजत  से जायेगा ! बकरीद आने दे ! " फिर पैर पटकते हुए - जेलर   डंडे को कांख में दबाये आगे बढ़ गया , शोले के आसरानी जैसा  !

.......हां ...हां ..हा..हां ..हां

Wednesday, August 24, 2011

प्यारा सर्प ,मेरी पत्नी और बालाजी

                         उस पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला मंदिर स्थित है !रेनिगुनता से ली गयी तस्वीर !
अक्षराज जी को कोई संतान न थी ! एक दिन सुक जी ने उन्हें सुझाव दिया की महाराज - आप पुत्र -कमेष्टि यज्ञं  करे तथा खेत में हल चलाये ! अक्षराज जी ने ऐसा ही किया ! खेत में हल चलाते  वक्त ,एक संदूक मिला ! उन्होंने देखा की उस संदूक में एक लड़की है ! अक्षराज ने उस लड़की को पल-पोस  कर बड़ा किये ! लड़की का नाम पद्मावती   रखा  गया !


  अक्ष राज ने पद्मावती की विवाह के लिए योग्य वर की तलास शुरू की ! वृहस्पति और सुक महर्षि से राय -विमर्श किये ! श्रीनिवास को इसके लिए  सुयोग्य करार दिया गया ! विवाह पक्की हो गयी ! श्रीनिवास के पास शादी के  लिए धन का आभाव था ! ब्रह्मा और महेश ने कुबेर से उधार  लेने का प्रस्ताव रखा ! कुबेर उधार देने के लिए   राजी हो गए ! ब्रह्मा और महेश  ने अस्वाथ  बृक्ष के निचे पत्र  पर गवाह  के तौर पर हस्ताक्षर किये ! ब्रह्मा महेश और सभी देवो के उपस्थिति में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह संपन्न हुए ! इस तरह से यह भू - लोक , देव लोक में बदल गया ! शादी के बाद सुक  महर्षी  और लक्ष्मी देवी कोल्हापुर को चले  गएँ  !

        अब बकाया धन - कुबेर को वापस करने की बारी आई ! पद्मावती ने लक्ष्मी जी को बुलाने के लिए कहा ! अतः श्रीनिवास जी कोल्हापुर गए ! वहा लक्ष्मी जी न मिली ! श्रीनिवास जी ने कमल का फूल रख तपस्या और लक्ष्मी जी को ध्यान करनी शुरू की ! लक्ष्मी जी उसी कमल के फूल से  कार्तिक पंचमी को ( कार्तिक  पंचमी को लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है ) बाहर निकली ! श्रीनिवास ,ब्रह्मा और महेश के सुझाव पर लक्ष्मी जी आनंदानिलय को प्रवेश की ! इस प्रकार लक्ष्मी जी धन और समृधि  की दात्री  बन गई ! इनके मदद से श्रीनिवास जी ने कुबेर के कर्ज को अदा करना शुरू किये ! लक्ष्मी जी जब जाने लगी तो - श्रीनिवास जी ने उनसे आग्रह किया की आप यही रहे ! आप की मदद से मै कलियुग तक कुबेर के कर्ज को वापस कर दूंगा ! 


 इसी आस्था के अनुरूप -आज भी भक्त -गण तिरुपति के बालाजी / श्रीनिवास मंदिर में दान देने से नहीं हिचकिचाते क्यों की श्रीनिवास जी उन्हें सूद के साथ वापस दे देंगे ! जो गरीब है वे पैसे न होने की परिस्थिति में अपने सीर के बाल  , मुंडन हो, दे  देते है ! सभी की यही आस रहती है की जितना ज्यादा हुंडी में डालेंगे - उतना ही ज्यादा बालाजी देंगे ! यह धारणा , आज तक चली आ रही है ! इसीलिए यह मंदिर भारत का एक अजूबा ही है ! जिन खोजा , तिन पाईय ! जैसी सोंच , वैसी मोक्ष !


मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला  डिपो   में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में   कार्य  किया था ! पकाला से काट  पाडी , धर्मावरम   और तिरुपति  तक  ट्रेन   लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह   नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और  उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा,  न ही अब तक पाया   है !


इस  पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय  पर लौटें  ! मै धर्मावरम  से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास  पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल  देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई  और  चाय देते हुए कहने लगी -- " आज  मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
 इसके जबाब में  पत्नी जी ने क्या कहा ?  आप उनके शब्दों में ही सुने - 





" मै  सोनू  ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते  थे   )  को  स्कुल में खाना खिलने के बाद  (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा  ! तुरंत शरीर  में , काठ समा  गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा   सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ  मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी  ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )


                                                      मंदिर के पुजारी और रामजी !
 पुजारी  और  उनके  सभी   लडके  दौड़े आये !  तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है !  लड़को ने पूछा  - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने  सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने  चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं  बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा !  पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही  उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय  ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा  दूँ !"
    पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन  शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो  नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प  मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान  नहीं किया था !

१९९९ दिसंबर में  मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला  से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ !  वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल  में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए  गाँव  से यहाँ आई हुयी थीं  ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर  निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने   भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी ! 

 जी हाँ , बिलकुल ठीक  ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने   भी विचार   किया की इस  पुत्र का नाम - साँपों  की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय     ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !


     कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को  उपयुक्त  करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में  और बहुत कुछ , हमने देखा  था और अनुभव किया  है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !

                                          नाग देव को नमन
 ( अगली पोस्ट -- जादुई  छड़ी !)


Sunday, July 10, 2011

परिणाम

                   मै  और बालाजी गंगा जी में स्नान करने जाते हुए !


परिणाम  - पिछले पोस्ट - " आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?" के प्रयास स्वरुप मुझे कई रोचक और सार्थक सुझाव मिले , जो टिपण्णी के साथ मौजूद है ! सभी को मेरी बधाई !उसे एक बार उधृत करना चाहूँगा !

  1.  
१) श्री सुरेन्द्र सिंह "झंझट "= खतरों से खेलती जिंदगी ! 

२) श्री राकेश कुमार जी =सर्प में रस्सी ! 

३) श्री विजय माथुर जी =जाको राखे साईया मार सके न कोय ! 

४) डॉ  मोनिका शर्मा जी =  चलना ही जीवन है ! 

५) सुश्री  रेखा जी = सतर्कता हर जगह ! 

६) श्री सुधीर जी =खतरे में आप और सांप ! 



७ ) श्री संजय @मो सम कौन ? = कर्मचारी अपने जान के खुद जिम्मेदार है ! और  

८) श्री दिगंबर नासवा =जीवन के अनुभव ! 

यहाँ नंबर एक ही सर्वश्रेष्ट है अर्थात श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " के सुझाव अत्यंत योग्य लगे ! क्योकि सर्प और लोको पायलट , दोनों की जिंदगी एक सामान है !  दोनों ही अपने क्षेत्र में खतरों से खेलते है ! यह लेख भी सर्प और लोको पायलटो के जिंदगी के इर्द - गिर्द ही सिमटी हुई थी ! बाकी सभी 7 सुधि पाठको के विचार भी योग्य है ! भविष्य में , मै इन शीर्षकों से सम्बंधित पोस्ट लिखूंगा और आप सभी के शीर्षक ही विचारणीय होंगे !  


अभी मै दक्षिण सम्मलेन में व्यस्त हूँ , जो तारीख - २०-०७-२०११ को गुंतकल में ही आयोजित की गयी है ! जिसमे दक्षिण रेलवे , दक्षिण - पश्चिम  रेलवे और दक्षिण - मध्य रेलवे के लोको पायलट भाग ले रहे है ! इसके  संचालन , व्यवस्था  और देख -भाल की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है ! अतः १०  / १२ दिनों तक ब्लॉग जगत से दुरी बनी रहेगी ! ब्लॉग पोस्ट पढ़ने और टिपण्णी देने में भी असमर्थ ! 


                  अब आज के विचार-


  जब हम निस्वार्थ भाव से नदी के पानी में डुबकी लगाते है ,  तो हमारे सिर के ऊपर हजारो टन पानी ..होने के वावजूद भी , हमें कोई बोझ मालूम नहीं होता ! किन्तु उसी नदी के पानी को स्वार्थ में वशीभूत होकर , जब घड़े में लेकर चलते है , तो बोझ महसूस होती है ! अतः स्वार्थी व्यक्ति इस दुनिया में सदैव बोझ से उलझते रहते है और निस्वार्थ लोग सदैव मस्त !

Tuesday, July 5, 2011

आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?....... शीर्षक = खतरों से खेलती जिंदगी ( श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " )

लोको पायलट भारतीय  रेल  के रीढ़ की हड्डी है ! इनके लिए न कोई त्यौहार है , न ही उत्साह ! बस दिन - रात चलते रहते है , उस ट्रेन के चक्के के साथ ! यु कहे की ये एक तरह से कोल्हू के बैल की तरह है ! दिन हो या रात ..चलते ही रहना है ! रुक गयी तो परेशानी ही परेशानी !  जीवन चलने का नाम है ! इनके जीवन में  , एक चीज बहुत ही महत्त्व पूर्ण है ! वह है रात की नींद ! इन्हें सौभाग्य से  ही , एक पूरी रात सोने के लिए  मिलती  है ! अतः रात में काम और दिन में खूब सोना  जिंदगी का रूटीन सा हो गया है !!जब भी अवसर मिला ...सोने में मस्त !

कभी आधी रात को ड्यूटी में जाना पड़ता है ,  तो कभी पूरी रात के लिए ! रात में ड्यूटी के वक्त .. एक सेकेण्ड के लिए भी पलक झपकाना , खतरे से खाली नहीं ! अजीव सा जीवन है !  आप एक सेकेण्ड के लिए , लोको पायलट बन कर( सभी चीजो की ) अनुभूति कर सकते है ! किन्तु बहुत ही शानदार जीवन है , यहाँ आप को एक अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है ! बिना अनुशासन के जीवन दूभर हो जाता है !

बात तारीख ०१-०७-२०११ की है ! मै सोलापुर आराम गृह में  अच्छी नींद में सो हुआ  था ! साधे ग्यारह बजे रात को काल बॉय मुझे उठाया , चुकी ट्रेन संख्या -१२६२८ ( नयी दिल्ली से बंगलुरु एक्सप्रेस ) समय से चल रही थी ! मै पूरी तरह से तैयार होकर डायनिंग रूम में  आकर सोफे पर बैठ गया और सहायक के आने की इंतज़ार करने लगा !  कुछ लोको पायलटो को बरांडे में शोर - गुल करते देखा ! मुझे ज़रा खीज भी आई ! इसलिए की ..सोने  के ac समय , ये लोग इधर - उधर टहल रहे है ! बहुमूल्य वक्त खराब कर रहे है !ये लोग  सो क्यो नही जाते ?

खैर , थोड़े समय बाद कूक चाय का प्याला मेरे सामने रख गया ! मै चुसकी ले ही रहा था की युनुस ( रेस्ट रूम का केयर टेकर )  मेरे सामने एक बोतल ला कर , तिपाई पर रख दिया !बोला सर - देखिये ? 
मैंने जो  देखा ..आप भी देंखे ? 
जी हाँ बोतल में सर्प ! मैंने युनुस से पूछ बैठा ! ये कैसे ? उसने कहा -  यह बाहर से आकर ..आप के रूम के तरफ जा रहा था ! यह तो ठीक हुआ की  मैंने देख लिया  अन्यथा  किसके पलंग या बैग में घुस जाता , किसी को नहीं मालूम ? मैंने उसे शाबासी दी और कहा - बहुत अच्छा काम किये जी ! इसे अपने अफसर लोगो को दिखाओ ? इस हालत में रेस्ट रूम कितना सुरक्षित है ? अब तो इस रेस्ट रूम में जल्द नींद भी नहीं आएगी ? संयोग अच्छा था जो तुमने इसे पकड़ लिए ? इसके बाद मैंने और दो तस्वीर लिए वह भी देंखे -

                                           युनूस बोतल को पकडे हुए !

                                  रेस्ट रूम कूक बोतल को खडा किये हुए !

दो जुलाई को ..मै गुंतकल आ गया ! फिर तारीख ०३ -०७-२०११ को ट्रेन संख्या -१२१६३ (दादर से चेन्नई ) को लेकर रेनिगुंता गया ! वहा भी शाम पांच बजे , जब रेस्ट रूम में गया , तो  देखा .. वाच मैन  एक सर्प को मार रहा था ! देंखें -

                                                     वाच मैन डंडे के साथ 
वाच मैन ने सर्प को मार कर बीच में जख्मी कर दिया था ! वह सर्प एक अमरूद के तने  के एक  खोह में छिपा हुआ था ! पौधों में जल डालते समय , माली ने सर्प को देखा था !

 इन घटनाओं को देखने से ऐसा लगता है की आज - कल हमारे रेस्ट रूम सजावट की वजह से सुरक्षित नहीं है ! रेलवे प्रशासन ने रेस्ट रूम के चारो तरफ छोटे - छोटे पौधों को लगा रखा है , जो मच्छर और इन निरीह जन्तुओ के आश्रय बन जाते है ! गाहे - बगाहे अगर किसी ने गलती कर दी तो परिणाम भुगतने पड़ जाते है !उपरोक्त घटनाए कोई नई नहीं है ! इस तरह की कई घटनाए मेरे जेहन में  बहुत सी  है , जिन्हें मै बाद में समयानुसार पोस्ट करूंगा ! उन्हें सोंच कर रोंगटे खड़े हो जाते है ! मैंने इन तस्वीरो को डी.आर.एम्./सोलापुर और गुंतकल मंडल को इ- मेल कर दी है !

आप सभी से निवेदन है की एक सुन्दर शीर्षक सुझाए ! अगली पोस्ट लिखने के पूर्व ही पसंदीदा शीर्षक (.आप के नाम के साथ ).ऊपर पोस्ट कर दूंगा ! कोशिश  करके देंखें !