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Friday, January 22, 2016

कभी सोचा है आपने ।

आज का दिन और इस आक्रोश को शायद ही कोई भूल पायेगा । किसी ने नहीं सोच था कि रनिंग स्टाफ का परिवार मंडल रेल प्रबंधक को इस तरह बंधक बना लेगा । छोटे छोटे बच्चे और रंग विरंगी परिधान में सजी उनकी पत्निया चारो तरफ से मंडल रेल प्रबंधक को अपने घेरे में ले रखी थी । बच्चे पास में पड़े सोफे पर कूदने लगे थे । सभी का चेहरा  गुस्से से लाल । मंडल रेल प्रबंधक की हालत देखते बनती थी । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । हम सभी लोको चालक उन महिलाओ के चारो तरफ खड़े थे । सभी महिलाये कुछ न कुछ कहना चाह रही थी । शोर इतना बढ़ गया कि कुछ भी आवाज समझ से बाहर थी । डी आर एम् को सभी से प्रार्थना करना पड़ा कि कोई एक महिला आगे बढिए और सभी के तरफ से अपनी मांग मुझे बताये या कोई ज्ञापन हो तो दीजिये । सभी की आवाज एक साथ सुनना संभव नहीं है । 

हमें मालूम था ऐसा ही होगा अतः हमारे यूनियन के सचिव की पत्नी ही आगे बढ़ी और अपनी मांग डी आर एम् साहब के सामने परत दर परत खोलने लगीं । सुबह से लेकर पति के घर लौटने तक की अथक और अनगिनत  कहानी  सुन डी आर एम् साहब भी स्तंभित रह गए । वैसे सभी अफसरों को मालूम है कि लोको पायलटो की पत्निया एक अभूतपूर्व त्याग करती है । जिनके मूक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । करीब दो घंटे तक सभी महिलाये ऑफिस के अंदर डटी रही  और डी आर एम् साहब ने सभी की बातें ध्यान से सुनी । सभी महिलाये टस से मस नहीं हुई आखिर में  डी आर एम् को ये आश्वाशन  देना पड़ा कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी मांगो को निपटाएंगे ।जो उनके अधिकार क्षेत्र में होगा ।

जी हाँ , कभी सोचा है आपने कि लोको पायलटों की पत्निया कैसी जिंदगी जीती है । एक जमाना था की लोग ड्राइवर को अपनी बेटी देना ( शादी का बंधन ) पसंद नहीं करते थे । फिर भी पुत्री अपने को परिवेश में बदल लेगी के कायल हो समाज की अवधारणा बदलती गई । कौन पिता होगा जो अपने पुत्री को सुखी नहीं देखना चाहता ? सब कुछ ताक पर रख शादिया होती ही है । हर दुलहन शादी के पहले अपने एक सपनो की दुनिया बुन ही लेती है । नए संसार में प्रवेश के पहले दिल का धड़कन बढना वाजिब  है । ये करेंगे वो करेंगे । पति के साथ ज्यादा समय दूंगी । पति को अपने अंगुली पर नाचाऊंगी ।जब मन करे पिक्चर  जाउंगी । खाली वक्त सखियो  को बताउंगी कि शादी सुदा जीवन कैसे गुजर रहा है । वगैरह वगैरह । लेकिन कौन जानता था ये सिर्फ स्वप्न ही है क्योंकि उसकी शादी एक लोको चालक के साथ होने वाली है । जो कब घर में रहेगा और कब आएगा - भगवान को भी नहीं मालूम । मोनिका के साथ ऐसा ही तो हुआ था । जब वह शादी के बाद पहली बार ससुराल गयी थी । चार माह तक लगातार पति के साथ रही और ऊब गयी थी । मैके आते ही माँ के गोद में सिर रख रो दी थी । यहाँ तक की वह दुबारा जाने से इंकार कर दी । माँ को सब कुछ जानते हुए भी  सहज लहजे में सिर्फ इतना ही कहते बना - बेटी सब नसीब का खेल है । भगवान सभी की जोड़ा बना कर भेजते है । शायद तुम्हारे नसीब में यही था । मोनिका माँ की बातो को इंकार न कर सकी । बस रोते रही थी । 

हम यहाँ किसे दोष दे ? रेलवे प्रशासन को या उस लोको चालक को जो कोल्हू की तरह पिसता रहता है । खुद को रेल सेवा में समर्पित । लोको चालक दुधारी तलवार पर लटकता रहता है । उसकी पूरी जिंदगी रेलवे प्रशासन द्वारा गन्ने की जूस की तरह चूस ली जाती है । गन्ने रूपी लोको चालक को सुरक्षित और सींचने का कार्य उसकी पत्नी करती है । लोको पायलटो की पत्नियो के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । रात हो या दिन समय पर भोजन तैयार करना । पति को मंगल कामनाओ के साथ भोजन का कैरियर हाथो में पकड़ा कर बिदा करना ।सकुशल लौटने की दुआ भगवान से करना । पति की अनुपस्थिति में सास ससुर  और अपने बच्चों की परवरिश करना । दुःख दर्द में भी मर्द का फर्ज सिर आँखों पर रखना । बाजार से लेकर स्कूल तक की भाग दौड़ कितना बताऊँ । कोल्हू की बैल की तरह 24×7 पिसती रहती है । धन्य है ये पत्निया जिनके कार्य की मूल्यांकन किसी के बस की नहीं।

आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग  किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल  मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया  सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं  और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।

सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी  । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य   बनाये रखे की  प्रेरणा दी थी ।

उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत  करती है जैसे  इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब  तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।



( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा  की स्रोत है । )



Saturday, August 24, 2013

एक लघु कथा - पिघलती ममता

मुंशी प्रेमचंद पुस्तकालय -अपने  आप में एक अलग ही महत्त्व रखता है । इस पुस्तकालय में  एक साथ  पचासों लोग  बैठ सकते है । शिप्रा एक विदुषी महिला  थी । सामाजिक , राजनितिक , आर्थिक और देश -विदेश की समस्याओ में विशेष रूचि । इस पुस्तकालय के  सभी पाठको में बहुत लोकप्रिय । वह अपने एकलौते पांच वर्षीय पुत्र के  साथ नियमित पुस्तकालय में शरीक होती थी । बहुत ही मृदुल भाषी , शांत स्वाभाव वाली ।  उसका पुत्र भी सभी का प्यारा था । 

एक दिन हरीश ने उनके   पुत्र के सिर पर टोपी  रखते हुए -" टोपी " कह  दिया । शिप्रा के मुख की रेखाए तन गयी । माँ का कोमल दिल , पुत्र के प्रति इस्तेमाल  विशेषण के शव्द से आहत हो गया ।  मर्माहत सा टोपी को दूर फेंकते हुए ,पुस्तकालय से बाहर निकल  गयी । हरीश समझ न सका ? सन्न रह गया । समझ नहीं पाया कि उससे कौन सी गलती हो गयी   है । वैसे टोपी सिर की शोभा और  इज्जत बढाने वाली वस्तु  है । पैर पर थोड़े ही रखी जाती है ? एक माँ की ममता को ठेस पहुंचे , ऐसी  हरीश की इच्छा नहीं थी , महज प्यार से कह दिया था । एक इत्तेफाक था । 

पुस्तकालय में शिप्रा की उपस्थिति दिन प्रतिदिन कम होने लगी । सभी को उसकी कमी खलने लगी थी  । हरीश ने तय किया कि अवसर मिलने पर शिप्रा से गलती के लिए खेद प्रकट करेगा । वह अवसर की  ताक में था । आज पुस्तकालय के सभागार में एक समारोह का आयोजन किया गया था । शायद पुस्तकालय के एक  वार्षिक मैगजीन की लोकार्पण होने वाली थी । हरीश भी उपस्थित था । मैगजीन को आम पब्लिक हेतु लोकार्पित  किया गया । हरीश मैगजीन का मुखपृष्ट देख आश्चर्य चकित हो गया -" मुखपृष्ट पर शिप्रा के पुत्र की तश्वीर छपी थी । "

भीड़ में उसे शिप्रा दिखी । क्षमा हेतु इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है  । हरीश ने तपाक से कहा - " आप एक श्रेष्टतम माँ है ।" और शिप्रा कुछ कहे , तब - तक वह  आँखों से ओझल हो गया । एक माँ का कोमल मन हर्षित हो उठा ।  शिप्रा के मन में अमृत का संचार हो चूका था । एक माँ की ममता पिघलने लगी थी । वह पुस्तकालय फिरसे गुंजित होने लगा । 

एक शब्द कडुवाहट ,नफ़रत और  प्यार  को  फ़ैलाने के लिए काफी होते है । अंतर उसके उपयोग में है  । इसकी पीड़ा सभी नहीं , कोई माँ  ही समझ सकती  है । 

Tuesday, August 30, 2011

तिरछी नजर


जादुई छड़ी को कुछ समय के लिए निलंबित कर , सोंचा कुछ चटपटी सी हो जाये ! हमेशा अवसाद , संस्मरण और विवादों से दूर ...कुछ हंसी - मजाक भी होने चाहिए ! अन्यथा मन उबाऊ हो जाता है ! चलिए इस कड़ी में एक नजराना पेश है --तिरछी नजर - कमाल कर गयी !



सुबह का समय , मुम्बई का आर्थर जेल ! जेलर साहब अपने वर्दी में डंडे भांजते हुए , जेल के कैदियों के मुआयने करने निकले ! कसाव को देखते हुए - उसके कमरे से आगे बढे ! उन्हें देख कसाब जोर से हंसा ! जेलर के पाँव रुक गए ! पूछे ? अबे इतना क्यों हँसता है ? 

 कसाव हंसते हुए कहा - " इस लिए की इण्डिया दुनिया का सबसे सुरक्षित जगह है ! अब तक तो पाकिस्तान  में मर गया होता ! हमारे यहाँ अब तक अपने ही  मार डालते थे ! "  जेलर  गुस्से से तिल- मिलाया ! बोला -  " तू मेरा वी.आई .पी.है ! अपने से आया है - हमारे इजाजत  से जायेगा ! बकरीद आने दे ! " फिर पैर पटकते हुए - जेलर   डंडे को कांख में दबाये आगे बढ़ गया , शोले के आसरानी जैसा  !

.......हां ...हां ..हा..हां ..हां

Thursday, June 30, 2011

लघु कथा --वीर मेरे अंगना

शादी की तैयारी जोरो पर थी ! आज बारात आने वाली थी ! श्याम सुन्दर जी  दौड़ -दौड़ कर सभी को कह रहे थे - देखो जी कोई कसर न रह जाए , अन्यथा लडके वाले  नाराज हो जायेंगे ! गाँव का माहौल  ...फिर भी शहर से कम रौनक नहीं थी ! जहां  देखो - वही चहल पहल  ! लौड़ स्पीकर बज रहे थे ! हलवाई तरह - तरह के व्यंजन बनाने में मशगुल !  कहार पानी भरने में ब्यस्त ! द्वार पर हित - नाथ आने लगे थे ! बच्चे शामियाने में खेल- कूद में मग्न ! पंडित जी आ गए थे ! सत्यनारायण भगवान  की पूजा शुरू  होने वाली थी ! नाउन चौक पूर रही थी ! शकुन्तला देवी घर के भीतर के सभी इंतजाम में ब्यस्त ! आँगन पूरी तरह से भर गया था ! आखिर इतनी भाग दौड़ क्यों ?, चुकी निर्मला की शादी जो थी , जानी मानी टी.वि.चैनल की एंकर  , वह भी ..शहरी लडके और शान - शौकत वाले से  ,  उस पर   एकलौती बेटी ! श्याम सुन्दर जी माध्यम वर्गीय ! बहुत कुछ दान - दहेज़ में दिया था !

धीरे - धीरे समय घहराया और गाँव के गोयड़े पर बरात आकर रुक गयी थी ! बाजे की शोर गुल सुन बच्चे उधर भागे ! श्याम सुन्दर जी द्वारपूजा के लिए , हजाम को खोज रहे थे , तभी वह आ धमाका ! उसने श्याम  सुन्दर जी के कानो में कुछ कही ! उसकी बातें सुन - श्याम सुन्दर के कान खड़े हो गए ! घर में भागे ! आंगन में शकुन्तला मिल गयी !" शकुन्तला गजब हो गया !" उन्होंने पत्नी को संबोधित कर कहा ?

पत्नी घबडाई सी -" अजी ऐसा क्या हो गया ? इस शुभ घडी में !" रुवासे सी आवाज में श्याम सुन्दर जी ने कहा - " दुल्हे   के पिता  ने   - अभी तुरंत दो लाख रुपये मांगे है ! नहीं देने की हालत में बरात वापस लेकर चले जायेंगे ! " शकुन्तला के मुह से निकला - " हे भगवान ये कैसी अग्निपरीक्षा ! इतना सारा रुपया कहाँ  से लावें ! जो था सभी दे दिए !" फिर उनके तरफ मुड कर बोली ! एक बार जाकर तो देखिये ! मन्नत - विनती से काम चल जाए !

श्याम सुन्दर गम की मुद्रा में उठे और  चल दिए ! आस - पास के हित - नाथ और औरतो में यह बात ,  जंगल की आग की तरह फैल गयी !   यह बात चारो तरफ फैलने भी  लगी ! श्याम सुन्दर जी ने बहुत  चिरौरी विनती की , पर दुल्हे के घर वालो पर कोई फर्क नहीं पडा ! बारात लौटने लगी ! श्याम सुन्दर जी के प्राण ही निकल जायेंगे वैसा लग रहा था ! तभी एक युवक भीड़ से बाहर आया और श्याम सुन्दर जी से कुछ कहा !

श्याम सुन्दर जी उस युवक को लेकर घर आयें और उस कमरे की तरफ गए ,  जहां  उनकी वेटी को सजाया जा रहा था ! सभी सखी - सहेलियों को  एक मिनट के लिए बाहर जाने को कहा और  उनहोने सभी घटनाओं को बिस्तार से  अपनी वेटी को बतला   दिए ! पुत्री ने एक टक पिता की ओर देखि  और  उस युवक के साथ  एकांत में ... बात- विमर्श किया , फिर  शादी के लिए तैयार हो गयी !

उसी मंडप में  निर्मला की शादी ,  उस युवक से कर दी गयी ! वह युवक उसी गाँव का रहने वाला था , जिस गाँव से बारात आई थी ! सुबह माड़ो में  दुल्हन और दुल्हे  को बैठाया गया था ! गाँव की औरते इस वीर पुरुष को देखने के लिए झुण्ड के झुण्ड जुटने लगी थी ! चारो तरफ उसके गुण - गान किये जा रहे थे ! तभी निर्मला की एक सहेली ने पूछ दिया - पहले वाले तो सोफ्ट वेयर इंजिनियर थे , ये वाले क्या है ?

 " लिख लोढा पढ़ पत्थर  " निर्मला ने जबाब दिया ! जो सत्य था !
 " यानी एल.एल.पि.पि."- किसी  सहेली ने चुटकी ली !
हाँ .. उस पढ़े -लिखे और सभ्य दुनिया  से बहुत अच्छा है ! " निर्मला ने कहा !