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Saturday, August 23, 2014

आधुनिक आचरण

" बहुत बेशर्म हो जी |" मुझे गुस्सा आ गया और अनायास ही ये शव्द मेरे मुह से निकल पड़े | बगल में बैठी पत्नी भी घबड़ाते हुए पुछि -"_ क्या हो गया ? मै पत्नी के प्रश्नो का जबाब देता की वह युवा बोल उठा - " किसे बोल रहे है ? " 

उसके ऐसा कहते ही मै और भड़क गया | उसे डाटते हुए बोला - " गलती करते हो और सीना जोरी भी | सॉरी कहने के वजाय मुह लड़ाते हो ? यही शिष्टाचार सीखे हो ? थोड़ा भी संस्कार नहीं है और पूछते हुए शर्म नहीं आती है ? " अभी तक उस युवक को यह समझ नहीं आया की उसकी क्या गलती थी ? वह चुप हो गया | 
युवा का विपरीत वायु होता है | युवाओ को जोश में बुरे या अच्छे का ज्ञान नहीं होता |
मै पत्नी की तरफ देखते हुए बोला - " देखो जी इस भोजन के नजदीक पैर रख दिया | " अब क्या था पत्नी  भी उस युवक को खरी - खोटी सुनाने लगी | वह युवक निःशव्द हो गया | उसे अपने गलती का एहसास हो चुकी थी | उसने कहा - सॉरी अंकल | 

 उस दिन १९ जून २०१४ था और हम पवन एक्सप्रेस के दूसरी दर्जे के वातानुकूलित  कोच में यात्रा कर रहे थे | एक लोअर , एक उप्पर बर्थ हमारा था | बालाजी अलग साईड बर्थ पर थे | उस युवक का बर्थ हमारे विपरीत वाला ऊपर का था | मै दोपहर का भोजन कर रहा था | सभी खाने कि सामग्री लोअर बर्थ पर फैली हुयी थी | वह युवक टॉयलेट से आया और सीढ़ी से ऊपर बर्थ पर न जाकर  दोनों लोअर बर्थ के ऊपर पैर रखते हुए छलांग लगाया और अपने ऊपर के बर्थ पर चढ़ गया | ऐसा करते वक्त उसके एक पैर मेरे खाने के प्लेट से सिर्फ चार अंगुल दूर थे | इस गन्दी  हरक्कत को भला कौन बर्दाश्त कर सकता है ?

प्राचीन काल से इस आधुनिक युग कि तुलना काफी अलग है | शिक्षा के स्वरुप काफी विकसित और अभूतपूर्व है | उसके मुताबिक मनुष्य के रहन - सहन में काफी बदलाव आएं है | किन्तु इन सब के बावजूद  मष्तिष्क निधि के गिराव जोरो पर है | परमार्थ , हितकारी , मददगार , उपयोगी  शिष्टाचार जैसे गुड़ी शव्दो का कोई महत्त्व नहीं रहा | जिसके लिए हमारे पूर्वज जान भी दे देते थे |  

यही शायद असली कलयुग है | उच्च शिक्षा का मतलब यह कतई नहीं कि हम अपने सामाजिक कर्तव्य और शिष्टाचार को भूल जाय | शिष्टाचार का स्वरुप ऐसा हो कि हम जो भी कार्य करें उससे किसी को भलाई के सिवा कुछ न मिले | जो भी हो हमें समाज से सतर्क और समय से जागरूक होनी चाहिए | एक अनुशासित व्यक्ति , परिवार , समाज ,राज्य और देश के  स्वस्थ वातावरण को जीवित रख सकता है | सोंचने वाली बात है - क्या मै अनुशासित और शिष्टाचारी हूँ ? 

हमारे मनीषियों ने काल को कई खंडो में विभाजित किया है । आदि , वर्त्तमान या भविष्य जो भी हो एक विभिन्नता से भरपूर है । 
बलिया में उतरने के पूर्व - चलते - चलते कुछ सुझाव भी दे डाला | दुखी मत होवें हमेशा खुश रहे |  जीवन में कभी कोई गलती हो जाए  , तो मुझे याद कर लेना | हिम्मत और शक्ति मिलेगी |

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Monday, June 23, 2014

चार - चार चौदह

समय स्वतः ही एक  समाचार है । कौन है जो  आज  समाचार से ग्रस्त नहीं  है । हम भी इस  समाचार के एक पहलू है ।  समाचार कई तरह के हो सकते है जैसे - घरेलू , सामाजिक , देशिक,  प्रादेशिक या विश्वस्तरीय  वगैरह -  वगैरह  । रेल गाडी का  चलन भी एक समाचार से कम  नहीं है , तो इसे चलाने वाले चालक इससे परे क्यों रहे । देश में इलेक्शन का दौर शुरू हो गया  है । भारतीय नागरिको को अपने मताधिकार का सदुपयोग अप्रैल - मई २०१४ के महीने में करना है । सोलहवीं लोकसभा और पंद्रहवी प्रधानमंत्री का चुनाव वेहद ही लोकप्रिय बन गया है  , जब की बी जे पि ने अपने अगले प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी जी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दी है  । सारी राजनीतिक पार्टिया अपने बैचारिक भिन्नता को भुला , एक जुट हो - शाम ,  दाम -  भेद से बशीभूत हो , अपनी पूरी शक्ति श्री नरेंद्र मोदी को रोकने में लगा दी है । फिर भी अगर श्री नरेंद्र मोदी की जीत होती है , तो ये अपने - आप में व्यक्तिक जीत ही होगी । देखना है होता है क्या ?

चार -चार - चौदह । यानी चौथा अप्रैल २०१४ का दिन । कुछ अजीब सा रहा ।

घर में  टी. वीं पर नजर गयी । किसी स्टिंग का प्रसारण चल रहा था । सभी चैनल इसके प्रसारण में व्यस्त । इसके दिखाने का मकसद सिर्फ यही था कि बाबरी मस्जिद के विधवंश के पीछे बी जे पी के शीर्ष नेताओ के हाथ होने को पब्लिक के समक्ष प्रस्तुत कर बीजेपी को नुकशान पहुँचाया जाय  । साथ ही यह स्टिंग मतदान पर भी असर डाल सकती है । चौदह वर्ष पहले की स्टिंग और आज प्रसारण का मकसद क्या हो सकता है ? राजनीतिक लाभ / ब्लैकमेल /आर्थिक लाभ या और कुछ ? समय के साथ समाचार का काला युग ? मेरे विचार से ऐसे स्टिंगर और प्रसारण करने वालो को तुरंत गिरफ्तार कर लेना चाहिए क्योकि उस स्टिंग का इस समय कोई औचित्य नहीं था । अगर यह सही था तो मिडिया ने इसे चौदह वर्ष क्यों दबा कर रखा ? समयाभाव की वजह से पूरा प्रसारण  नहीं देख  पाया । राजकोट एक्सप्रेस को लेकर वाड़ी जाना था ।  डेढ़ बजने वाले थे । कड़ाके की धुप में घर से  निकल पड़ा ।समय पालन अतिआवश्यक जो है ।

गाड़ी आने की इंतजार में लॉबी के लॉन्ग में बैठा हुआ था । सहसा एक लोको पायलट मेरे तरफ मुड़े और अभिवादन करते हुए बोले - सर - आज  कल दिखाई नहीं दे रहे है ? उनके मुह से शव्दो के साथ थूक के छींटे मेरे हाथो पर गिर पड़े । वे बहुत ही क्लोज लोको पायलट है । इसका मुझे ख्याल ही न रहा और झिड़की देते हुए उनपर बरस पड़ा , बोला - " आप शव्दो के साथ थूक न फेंके जी । हाथ गन्दा हो गया । " उन्हें  मेरी भावनाओ की   कठोरता  महसूस नहीं  हुआ  । वे तुरंत मेरे हाथो को रुमाल से पोंछने लगे औरनम्रता से  बोलें - सॉरी सर । मेरे चेहरे  पर क्षमा सी मुस्कान खिल उठीं  । इसे कहते है पॉजिटिव ईमेज / एप्रोच  ।

 राजकोट गाड़ी आ चुकी थी । लॉबी से  निकलने का दिल नहीं कर  रहा था । ऐ.सी. की भीनी - भीनी ठंढक दिल को मोह रही थी । वध्यता थी निकलना ही पड़ा । गाड़ी दस मिनट लेट गुंतकल से रवाना हुई । गाड़ी नँचरला रेलवे स्टेशन को लूप लाइन से पास कर रही थी क्योकि  मेन लाइन में  इंजीनियरिंग काम चल रहा था गाड़ी की गति सिर्फ ३० किलोमीटर / घंटा थी । इंजीनियरिंग स्टाफ वालो ने वॉकी -टॉकी पर हमें अनुरोध के साथ सूचना दी कि लोको पायलट साहब कृपया गाड़ी को  धीमी गति से चलाते  हुए आगे बढे , कुछ हमारे इंजीनियरिंग स्टाफ दोपहर के खाने के पैकेट के साथ उतरना चाह रहे है । हम लोगो ने अभी तक भोजन नहीं किया है । स्वाभाविक है , अपने रेल  कर्मी थे और इस चिलचिलाती धुप में कठिन कर्मरत । मैंने गाड़ी की गति काफी  कम कर दी । सभी भोजन सामग्री के साथ उत्तर गए । उन्होंने वॉकी -टॉकी पर धन्यवाद कहा ।

सामने मलोगावलि स्टेशन  आने वाला था । गाड़ी १०० किलोमीटर / घंटे  गति से दौड़ रही थी । अचानक दो गायों की  झुण्ड  लाइन पर आ गई । जब तक गाड़ी की ब्रेक लगाते , दुरी कम और दोनों के चिथड़े उड़ गए । गाड़ी के दो कोचों के बीच ब्रेक पाईप अलग हो गए । गाड़ी रुक गई । कैसा संयोग था ? कैसी विडम्बना थी -मौत / यमराज की गति नँचरला में धीमी हुई और दोनों गायों की मौत मलोगावलि  में । हर जीव की मौत सुनिश्चित है । उनके  मालिको के प्रति दिल में दर्द उठा । अफसोस हजारो की नुकशान हो चुकी थी । काश अपने पशुओ की संरक्षा और सुरक्षा की ध्यान रखते ?

राजकोट एक्सप्रेस के कोच में पानी मंत्रालयम स्टेशन में  भरा जाता है । नदी सुख गयी है अतः पानी कृष्णा स्टेशन  में भरा जायेगा | इसीलिए  मंत्रालयम स्टेशन में गाड़ी नहीं रुकी ।  कृष्णा रेलवे स्टेशन पर कोचों में पानी भरा जा रहा था | मै लोको में बैठा सिग्नल का इंतजार कर रहा था | तभी एक यात्री लोको के पास आया और लोको के नंबर प्लेट ( १६६७२ ) की तरफ इंगित करते हुए पूछा - " साहब क्या इस गाडी का नंबर यही है ? मैंने कहा - नहीं , ये मेरे लोको का नंबर है | वह कुछ देर तक शांत रहा | इधर - उधर देखा | फिर पूछ बैठा -तब इस गाडी का नंबर क्या है ? मैंने कहा -१६६१४ और उसे देखता रहा | उसके मुखमंडल पर रेखाएं दौड़ती नजर आयीं असंतोष के भाव  , शायद उसके मन में कोई उत्सुकता जगी जैसे और कुछ जानकारी  चाहता हो | मुझे देखते हुए फिर बोला - " सर रिज़र्वेशन किस नंबर का करेंगे ? मै थोड़े समय के लिए अवाक् रह   गया , कैसा अजनवी है जिसे रिजर्वेशन कैसे करते है , का भी ज्ञान नहीं है  |  इस आधुनिक युग के दौर में ऐसे लोग भी है ?

 इस व्यक्ति को इसकी  भाषा में समझाना जरूरी था | अतः मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की और कहा - " ये नंबर मेरे लोको का है यहाँ मै बैठता हूँ | आप कोच में बैठते है और उस गाडी का नंबर १६६१४ है , अतः आप को उसी नंबर का रिज़र्वेशन करना चाहिए , जहाँ आप बैठते है | मैंने अनुभव किया - अब वह समझ गया था | गाड़ी का सिगनल हो चूका था | सहायक ने सिटी बजायी | सभी लोग दौड़ - भाग कर कोच में चढ़ गए थे | गाड़ी आगे चल दी ।

आज जीवन के विचित्र अनुभव मिले थे | शायद जाने - अनजाने सभी के साथ ऐसा कुछ होता ही होगा ? बिरले ही हम सीरियसली लेते होंगे | दर्द को गहराई से सोंचने पर दर्द की विशालतम रूप दिखाई देती है अन्यथा हास्य | हम रहें या न रहें - गाड़ी की सिटी बजती ही रहेगी ? जो संभल गया वही मुकद्दर का सिकंदर अन्यथा मौत । 







Wednesday, May 29, 2013

ताप्ती गंगा एक्सप्रेस

 जिंदगी    एक सफ़र , है सुहाना    । जी हाँ ..जिंदगी सफ़र ही तो है ।  बिलकुल  जैसे ताप्ती - गंगा एक्सप्रेस । किसी भी गाडी के अन्दर प्रवेश करते ही हमें अपने सिट और सुरक्षा की चिंता ज्यादा रहती  है । गाडी में सवार होने के बाद ..ट्रेन समय से चले और हम निश्चित समय से गंतव्य पर पहुँच जाएँ इससे ज्यादा कुछ भी आस नहीं । किन्तु इन सभी  झंझटो को छोड़ दें तो कुछ और भी इस यात्रा में  है , जो  हमारे दिल पर सुनहरी छाप छोड़ जाते है ।  

आस -पास बैठे  सह यात्री भी वाकई दिलचस्प होते  है । इसी महीने मै ताप्ती -गंगा एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था , जो  छपरा से सूरत जा रही थी । थ्री  टायर कोच के एक कुप्पे  में अकेला ही बैठा था । मऊ  से एक जवान पति और पत्नी सवार  हुयें और साईड वाले वर्थ ग्रहण किये । शायद कुछ दिन पूर्व शादी हुयी हो । आजमगढ़ से एक विधवा , अपने जवान बेटी ( १ ८ ) के साथ आयीं । जौनपुर से एक पैसठ / सत्तर साल के दम्पति आयें । इस तरह ये कुप्पा भर गया । बुजुर्ग दम्पति ने सभी के साथ वार्तलाप की शुरुवात किये । विषय की कोई ओर छोर नहीं  । धार्मिक , समाजिक , पारिवारिक या राजनीतिक , शिक्षा या अनुशासन सारांश में कहे तो कोई भी क्षेत्र अछूता  नहीं बचा ।

यात्रा के अनुभव और  कुछ विचार जो सबसे अच्छे  लगे । प्रस्तुत है ---

१) मऊ के नव दम्पति --
उस नौजवान ने कहा की मै अपनी माँ का पैर रोज दबाता  हूँ । माँ ऐसा करने नहीं देती , पर मै नहीं मानता  । माँ को पत्नी के भरोसे नहीं छोड़ता । पास में बैठी पत्नी उसे घूरती रही , जिसे हम सभी ने भांप लिए । एक पत्नी के जाने से दूसरी पत्नी मिल जाएगी , किन्तु माँ नहीं मिल सकती । मै  किसी को सिखाने के पूर्व करने में विश्वास करता हूँ । समझदार खुदबखुद अनुसरण करने लगेंगे । 

२) बुजुर्ग दम्पति - 
अपने पतोह की बडाई करते नहीं थके क्योकि वे शुगर के मरीज थे और बहु काफी ख्याल ( खान-पान के मामले में ) रखती है । बहु को पहली संतान ओपरेसन के बाद हुआ है । फिलहाल उसे आराम की जरूरत  है । अतः इन्हें खान - पान की असुबिधा है । सहन करने पड़ते है । काफी समझदार लगे । पराये की बेटी की इज्जत , अपने बेटी जैसी होनी चाहिए । 

३) विधवा और उनकी बेटी - 
इनके पिता जी पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे । चालीस वर्ष पूर्व इन्होने बारहवी पास की थी । चाहती तो अच्छी नौकरी मिल सकती थी । पति के इच्छा के विरुद्ध नहीं गयी और घरेलू संसार में जीवन लगा दिया । आज दो बेटे नौकरी करते है । एक गाँव में रहता है । ये बेटी सीए की पढाई कर रही है । आज पिता और पति के ईमानदारी का सुख भोग रही है । बेटे के लिए बहु देखने जा रही है । बेटो को मुझपर ही भरोसा है । सभी संसकारी है । 

४ ) मेरे बारे में जानकर उन्हें काफी ख़ुशी हुयी और उनकी उत्सुकता रेलवे में हमारे कार्य के घंटे , दुरी और सुरक्षा के ऊपर अधिक जानकारी प्राप्त करने की ओर ज्यादा रही ।  यात्रा काफी आनंदायक  और मजेदार रही । समय कितना और कब व्यतीत हो गया , किसी को पता नहीं  चला ।  सभी भाऊक हो गए , जब मै  इटारसी में उतरने लगा । कितना अपनत्व था । जो पैसे से नहीं  मिलता , इसके लिए प्यार , दिल और आदर्श की जरूरत है । मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ उन सभी को अभिवादन किया और प्लेटफोर्म पर आ गया । 

गाडी आगे बढ़ गयी और मै देखते रह गया , उन तमाम शब्दों और तस्वीरों की छाया को । कितना  जिवंत और सकून  था  उन बीते दो क्षणों में । 

Saturday, May 18, 2013

मेरे नैना ...क्यू भर आयें ?

जीवन से मृत्यु का सफ़र सभी के लिए खुशनसीब नहीं होतें । संघर्ष भरी कड़ी का अंत ही तो मृत्यु  है । इन्होने जीवन को  एक कर्मयोगी की तरह जी थी । ऐसे पुरूष विरले ही देंखे थे , जिन्हें कभी गुस्सा आया हो ? किसी को भी मुस्कुराकर स्वीकार करने की शक्ति इनमे थी । बच्चे हो या नौजवान या हमउम्र ...सभी से हंसते हुए व्यवहार ..गजब से थे । ह्रदय में गुस्से की प्रतिशत नाममात्र भी नहीं । मैंने अपने जीवन का बचपन इनके आगोश में ही  विताएं । मुझे  याद है , एक ..... बस एक  बार थप्पड़ मारे थे , वह भी स्कूल जाने के लिए । पिताजी ऐसे थे , जिन्हें एक भी शत्रु नहीं थे । उनकी सक्सियत विरले ही मिलेगी । खुद हम भी उनके कदमो  पर चलने में असमर्थ है । 

पढ़े नहीं । स्कूल नहीं गए थे । रामायण की चौपाई या दोहें सामने बैठे बच्चो को प्यार से सुनाते  थे । किताबे धीरे - धीरे पढ़ लेते थे । कागजातों पर हिंदी में अपनी हस्ताक्षर कर लेते थे । गाँधी जी को देंखे थे हमें उनके बारे में भी बताते थे । उन्होंने कभी भी पैसे नहीं पूछे । निस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी । उन्हें गाय - गरू और खेती बहुत प्रिय थे । जब -तक शरीर में दम थे ,खेती को नहीं छोड़ें । 
उनकी बराबरी करने की शक्ति हम दोनों भाईयो में नहीं है । 

पिछले एक वर्ष से वे कमजोर हो गए थे । दावा -दारू चल रहा था । विस्तर पकड़ लिए थे ।  दिनांक ८ अप्रैल २ ० १ ३ को मेरे दादा जी के छोटे भाई का देहांत हो गया । पिताजी ने  घर के अन्दर से ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय देखा । वे भाव - विह्वल हो गए ।  " काका मुझे छोड़ कर चले गए । "- कह -कह कर रोने लगे थे । इसके उपरांत पिताजी की तबियत और ख़राब होने लगी । खान - पान बंद होने लगे । सभी को आशा की किरण कम नजर आने लगी । मुझे इसकी सूचना मिली । 2 3 अप्रैल 2 0 1 3 को बछिया के पूंछ पकडाने और उसको ब्राह्मण को दान देने की विधि संपन्न कराई गयी । इसके बाद उनकी आँखे और बात - चित बंद हो गयी । 

इस गंभीर समाचार के बाद मैंने अपनी यात्रा शुरू कर दी । 2 5 अप्रैल 2 0 1 3 को ट्रेन पकड़ी । गुंतकल से बलिया जाने में कम से कम 4 8 घंटे लगते है । इधर सभी परेशां थे क्यूंकि उनके काकाजी का क्रियाकर्म 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को होनी थी । डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे । यात्रा के दौरान हर घडी की खबर मुझे दी जा रही थी । 2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को इलाहबाद पहुंचा । देखा -मोबाईल का स्क्रीन क्रैक हो गया था । मन में डर पैदा हो गया । वातानुकूलित डिब्बे में अपने बर्थ में मुंह छुपा कर रो दिया था । 

शाम को साढ़े छह बजे बलिया पहुंचा । मेरे बहनोई मुझे लेने के लिए आयें । घर पहुँचाने में बस आध घंटे की दुरी बाकी थी । तभी बहनोई की मोबाईल बजी । बहन का फोन था । फोन रखते ही उनकी आँखे भर आई । माजरा समझते देर न लगी । पिताजी जी मुझसे मिले वगैर प्रस्थान कर चुके थे । रात का अँधेरा , चारो तरफ फैला हुआ था । जो उत्तर - प्रदेश की उन्नति का गवाह था । घर में कदम रखते ही माँ , बहन और अन्य सभी रो पड़े । मै  पिताजी के पार्थिव शरीर से चिपक कर रोने लगा । माँ सुध खोये जा रही थी । अपने ऊपर कंट्रोल किया और माँ को सान्तवना दी की आप के सामने अभी मै हूँ । आप निः फिक्र रहे । 

कितनी विडम्बना थी की 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को जब -तक उनके काकाजी का क्रिया कर्म और भोज की प्रक्रिया चली  , उनके प्राण नहीं निकलें ।शायद  पिताजी की आत्मा अपने काकाजी  के रस्म में खलल नहीं डालनी चाहती थी  । सभी कह रहे थे की अंतिम क्षणों में तीन बार भगवान का नाम लिए थे । दुसरे दिन 2 7 अप्रैल 2 0 1 3 को पिताजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपूर्त कर दिया गया । कईयों की इच्छा गंगा में परवाह करने की थी । किन्तु माँ ने इच्छा जाहिर कि  की  हमारे पुरखे जिस जगह अग्नि को सुपुर्द हुए है  , वही इनका भी संस्कार होगा । माँ की इच्छा भला कौन टाले  ?  ज्येष्ठ पुत्र के नाते मुझे ही मुखाग्नि देनी पड़ी । बाकी सभी क्रिया कर्म गरूण पुराण के अनुसार पूर्ण हुए । 

कुछ सार्थक मुहूर्त होते है । जो कुछ न कुछ कह जाते है । सभी को इस मृत्यु रूपी सच्चाई का सामना करना है । दुनिया से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ ? बस अपने कर्मो के पद छाप छोड़ जाते है । 


                                             मेरी रेलवे की नौकरी दिनांक - 2 6 जून 1 9 8 7 । 
                                             मेरे दादाजी की मृत्यु दिनांक - 2 6  जून 1 9 9 6 । 
                                            मेरे पिताजी की मृत्यु दिनांक -2 6 अप्रैल 2 0 1 3 । 
                                             "--------------------------- "-2 6 .                    ?

जीवन की सबसे बहुमूल्य समय गवा दिया था । पिताजी का अंतिम आशीर्वाद से वंचित रहा । यह हमेशा ही खलेगा । मेरे नैना  फिर भर आयें ....फिर भर आयें ......



Wednesday, June 13, 2012

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल है !

वह कभी बेंच पर बैठता , तो कभी उठ जाता  ! बिलकुल बेचैन ! घबराहट में चहलकदमी , आगंतुक सा राह  को निहारते हुए ! समझ में नहीं  आ रहा था की क्या करे ? माथे पर सिकन भरी ! होठ सुखते जारहे थे ! हर आने वाले से यही पूछता की डॉक्टर साहब कब आ रहे है ? कोई उन्हें जल्दी बुलाओ ना ? नर्सो से बार - बार , एक ही सवाल ..डॉक्टर साहब आ रहे है या नहीं ? नर्सो के सकारात्मक उत्तर भी नकारात्मक सा लग रहे थे ! सहसा एक व्यक्ति का आगमन होते दिखा  ! ड्यूटी पर उपस्थित नर्स ने  इशारे से कहा - वो .. डॉक्टर साहब आ रहे है !

वह व्यक्ति आपे से बाहर ! उसे समझ में नहीं आया की वह किससे तर्क करने जा रहा है और बोल बैठा -" आप ऐसे ही लेट  आते है क्या ? आप को जरा भी सेन्स नहीं है ! मेरा बच्चा सर्जरी के लिए कब से आपरेसन  थियेटर में पड़ा हुआ है ! वह खतरे से खेल रहा है  और आप है जो ..थोड़ी भी समझ नहीं है ..." वह व्यक्ति एक साँस में बोले जा रहा था !

डॉक्टर  मुस्कुराया और बोला --" मै  आप का क्षमा प्रार्थी हूँ ! मै  अस्पताल में नहीं था ! मुझे जैसे ही नर्स की कॉल मिली , भागे - दौड़े  आ रहा हूँ !"  - डॉक्टर अभी अपने सर्जरी  लिबास में भी नहीं था ! दिखने से लग रहा था की वह पहनावे की फिक्र किये बिना ही आ गया था !

" चुप रहो ,,आप के बेटे  के साथ  ऐसा होता , तो खामोश बैठते क्या ? आप का बेटा इस हालत में मर जाए तो क्या करते ?" उस  बच्चे का पिता  गुस्साए हुए भाव से पूछ बैठा ! डॉक्टर ने मायूस स्वर में कहा - " मेरा जो धर्म है . करूँगा ! हम सब मिट्टी  के बने है और एक दिन मिट्टी  में मिल जायेंगे ! भगवान पर भरोसा रखे .सब ठीक  हो जायेगा ! जाईये  बेटे के  लिए भगवान से प्रार्थना  करें ! " इतना कह और देर न करते हुए .. डॉक्टर आपरेसन थियेटर के अन्दर चला गया !

करीब एक घंटे से ज्यादा ..सर्जरी की प्रक्रिया चली ! डॉक्टर  थियेटर से  तेजी से बाहर  निकला और तेज कदमो से  आगे जाते हुए बच्चे के पिता की ओर( जो बेंच पर घबडाये हुए बैठा था ) मुखातिब हो कहा - " life saved  भगवान का शुक्र है ! अगर कोई बात हो तो नर्स से पूछ लेना !" और तेज कदमो में आँखों से ओझल हो गया !

" वाह .. कितना गुस्से में है ...एक क्षण रूक कर मेरे बेटे के बारे में नहीं बता सकता  क्या ? "- वह व्यक्ति फुसफुसाया ! तब तक नर्स उसके सामने आ चुकी थी और वह  उसके शव्दों को सुन ली थी ! वह व्यक्ति नर्स की तरफ देखा ! नर्स की आँखों में आंसू की लडिया बहे जा रही थी ! व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया ! वह घबडाये  सा उसे देखने लगा ! नर्स ने कहा -"  डॉक्टर के  बेटा  का शव ..श्मसान घाट में उनका इंतजार कर रहा है ! कल सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी थी ! जिस समय उन्हें कॉल मिली उस समय वे उसके अंतिम संस्कार में   व्यस्त थे  ! किन्तु संस्कार की प्रक्रिया बिच में ही छोड़ सर्जरी करने के लिए आ गए !"

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल  है !

( सौजन्य - डॉक्टर श्री मुकुंद सिंह / शिर्डी ..जो सत्य घटना पर आधारित है ! अगर कोई सुधि पाठक उनसे बात करना चाहता है , तो मै  उनका मोबाईल संख्या दे सकता हूँ !)

Sunday, June 3, 2012

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ ! मनुष्य दुनिया में सबसे सर्वोत्तम प्राणी के श्रेणी में गिना जाता है !विचार , रहन - सहन ,पराक्रम और बुद्धि में अंतर स्वाभाविक है ! यही मनुष्य को अलग - अलग चोटियों पर ले जाते है ! कुछ गिर जाते है , कुछ सम्हल जाते है  तो कुछ ऐसी स्थान प्राप्त कर लेते है , जहाँ सबके पहुँचने की  आस कम ही होती है !

आखिर ये सब कैसे और क्यूँ होता है ? 

दुनिया में आने और जाने के रास्ते तो एक जैसा ही है ! बीच  में इतने अंतर क्यूँ ? क्या ये सब हमारे मुट्ठी में बंद तकदीर का कमाल है या कोई आप रूपी  शक्ति कंट्रोल करती है ! जो भी हो मै तो तक़दीर और अंगुलियों के सतरंगी ध्वनि  पर ही विश्वास करता हूँ ! हम अपने अंगुलियों के कर्म रूपी शक्ति से तक़दीर रूपी घरौंदे का निर्माण करते है ! सभी के तकदीर सुनिश्चित है ! इसमे फेर बदल हमारे कर्मो पर निर्भर है ! अगर ऐसा नहीं होता तो आकाश में फेंकी हुई पत्थर इधर - उधर न गिर , हमारे निशान पर ही गिरते !




कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस  जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक  ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है !  जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद  हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4)  एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से  स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के  जॉब से मुक्त है !(7)  एक लोको पायलट काटपादी  गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !  


 अभी बहुत से उदहारण मेरे पास  है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य  स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले  का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र  बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !


( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)

Sunday, April 1, 2012

सहमी सी जिंदगी !

आज - कल एक तरफ अन्ना , तो दूसरी तरफ रामदेव और तीसरी तरफ -हम नहीं बदलेंगे ! दुनिया में आन्दोलन होते रहते है और अनर्थकारी अपने हरकतों से बाज नहीं आते ! पिछले तीन   दिनों में जो  कुछ भी महसूस किया , वह मन को उद्वेलित कर गयी ! त्तिरछी नजर ---

१) गोरखपुर सुपर फास्ट एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! ट्रेन दोहरी लाईन पर दौड़ रही थी ! एक कुत्ता दौड़ते हुए दोनों पटरियों के बीच में आया और राम-राम सत्य ! कुछ गड़बड़ की आभास ...

२) उसी दिन - कुछ और आगे जाने के बाद  देखा एक बुजुर्ग...धोती कुरते में था ..आत्म हत्या वश , तुरंत पटरी पर सो गया ! मेरे होश उड़ गए ! ११० किलो मीटर की रफ्तार से चलने वाली गाडो कब रुकेगी ? किन्तु जिसे वो न मारे , भला दूसरा कैसे मारेगा ? उस व्यक्ति का बाल न बाका हो सका ! है न आश्चर्य वाली बात ! मुझे हंसी भी आ रही है ! क्यों की वह जल्दी में दूसरी लाईन पर जा कर सो गया ! हम सही सलामत अपने रास्ते आगे बढ गए !

३) तारीख ३१-०३ -२०१२ , दिन शनिवार  ! पुरे देश में नवमी की तैयारी ! वाडी जाने के लिए घर से लोब्बी में गया ! जो समाचार मिला वह विस्मित करने वाला था ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर (पावर ) को रंगे हाथो विजिलेंस वालो ने पकड़ लिया था ! सुन कर बहुत दुःख हुआ क्यों की उनसे  हमेशा मिलते रहा हूँ ! वह साहब ऐसा भी कर सकते है , वह मैंने कभी नहीं सोंचा था ! हाँ एक बार मैंने उन्हें सजग भी किया था की ऐसी गतिबिधियो से सतर्क रहे ! क्यों की जिनकी दाल नहीं गलेगी वे तरह - तरह के हथकंडे अपना कर बदनाम करने की कोशिश करेंगे ! मेरे विचार में यहाँ भी यही हुआ लगता  है !

आज उनके घर की राम नवमी मद्धिम हो गयी है ! नियति के खेल निराले ! परिवार वालो पर क्या गुजरेगी ? पत्नी के दिल पर क्या गुजरती होगी ? सपने अपने होंगे या अधूरे ?  और  भी बहुत कुछ ..मै  महसूस कर सिहर उठता हूँ ! तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कोई भी बलवान या धनवान नहीं बन सकता ! फिर भाग -दौड़ क्यों ? सत्यमेव जयते !


Monday, March 26, 2012

शैतान की पीड़ा !


हमें जन्म से मृत्यु तक कभी भी शांति नहीं मिलती  ! अशांति का मुख्य जड़ स्वार्थ और बिवसता है ! स्वार्थ बस  हाथ हिलाते है और विवस हो पैर स्वतः  रुक  जाते है ! मनुष्य  इन्ही उधेड़ बुन में फँस कर , जो भी कृत्य कर बैठता है वही उसके कर्मो के फलदाता बन जाते है ! अर्थार्थ जैसी करनी , वैसी भरनी ! अतः मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है !
हमारे शरीर में मन का बहुत बड़ा स्थान / देन है ! मन की बातों को कोई भी न समझ सका ! इसकी गहराई समुद्र से भी गहरी होती है ! हम मन के नाव  पर बैठ सारी दुनिया की भ्रमण कर आते है ! तो क्या  हमें मन की चंचलता  स्वप्न में भी जगाती है ? हम स्वप्न क्यों देखते है  ? आखिर वह कौन सी दुनिया है , जिसमे सोने के बाद तैरने लगते है ? सोये हुए बिस्तर पर बकना , चिल्लाना , रो पड़ना , डर जाना वगैरह - वगैरह क्रियाये क्यों होती है ? अगर किसी को जानकारी हो तो मेरे जिज्ञासा की पूर्ति करें !

अब आयें एक घटना की जिक्र करें ! उस समय मै सहायक लोको पायलट के पद पर कार्य रत था ! मॉल गाड़ी में कार्य करता था !  मै उस दिन नंदलूर आराम गृह में ठहरा हुआ था ! वापसी के लिए ट्रेन काफी देर से आने वाली थी ! अतः कुछ लोको पायलट और सहायक लोको पायलट मिल कर सिनेमा देखने चले गएँ ! पिक्चर तेलुगु भाषा में थी  ! जिसका अनुबाद हिंदी में भी हो गया है ! शायद - " जुदाई " जिसमे अनिल कपूर , श्रीदेवी और एक हिरोईन है , नाम याद नहीं आ रहे है ! कथानक यह है की - पत्नी अपनी शानशौकत के लिए पति को भी बेच देने के लिए राजी हो जाती है ! अंत में तरह - तरह के परेशानियों से गुजरती है ! देखने वाले चौक जाते है - यह भी एक अजीब  सी लेखक के दिमाग की पैदायिस थी ! फ़िल्म काफी हिट हुई थी ! हिंदी बाद में बनी ! पर तेलगू फ़िल्म की कथानक और सेट अच्छी लगती है !

अब आयें विषय पर लौटे --
फ़िल्म देख बारह बजे रात के करीब लौटे ! आते ही हम सभी रेस्ट रूम में अपने बिस्तर पर सो  गए ! दिन भर की थकावट और देर तक फ़िल्म देखने की वजह से  नींद  तुरंत आ गयी ! 

 नींद के बाद की  वाक्या - 
ओबलेसू जो उस समय रेस्ट रूम का वाच मैन था , अब टी.टी हो गया है , बरांडे  में बैठा पेपर पढ़ रहा था ! वह   मुझे जोर से झकझोरने लगा ! मेरी नींद टूट गयी ! उसने पूछा - "  क्या हो गया जी , इतनी जोर से चिल्ला रहे हो  ?"

मै सकपका गया ! कुछ समझ में नहीं आया ! बिस्तर पर पड़े हुए ही बोला -" न जाने कौन मेरे  सीने पर बैठ , गले को जोर से दबा रहा था , ताकि मेरी  मौत हो जाए ! उसके सिर  और दाढ़ी के बाल लम्बे - लम्बे थे ! भयानक सा दिख रहा था !"" फिर रुक कर बोला - " मदद हेतु स्वप्न में  चिल्ला रहा था ! शायद यही शोर तुम्हे सुनाई दी हो !" इतना कह  उठ बैठा ! शरीर में डर समां गया ! कुछ और सह-कर्मी उठ बैठे ! सभी ने कहना शुरू की यह बिस्तर ठीक नहीं है ! जो भी सोता है , उसके साथ यही होता है ! रात्रि- लैम्प क्यों बंद कर दिए हो ? इसे जला कर सो जाओ !

जी हाँ 
क्या इस आधुनिक ज़माने के लोग इसे विश्वास करेंगे ? अगर नहीं - तो ऐसी घटनाये आखिर क्यों होती है और ये  क्या है ? अगर किसी को कोई लिंक की  सूचना / जानकारी हो तो मुझे/मेरी शंका का समाधान करें ?(  नोट -किसी अंधविश्वास से प्रेरित कथा सर्वथा न समझे , यह ब्लॉग स्वयं में  सत्य पर आधारित है !)

Sunday, September 25, 2011

सिग्नल ---


कल की बात है ( २४ सितम्बर २०११).
गुंतकल से वाडी जंक्सन के लिए चेन्नई सुपर को लेकर जा रहा था ! मेरी ट्रेन प्लेटफोर्म संख्या - पांच पर खड़ी थी !  प्रायः सभी ट्रेन यहाँ पंद्रह मिनट तक रुकती है ! ताकि रेलवे ट्रेन की बोगियों की साफ - सफाई कर सके ! स्टार्टर पीला संकेत बताने लगा  था ! हमने अपने गार्ड साहब से ट्रेन स्टार्ट करने की अनुमति मांगी ! उन्होंने कहा की सफाई वाले खतरे की बोर्ड रखे हुए है ! अभी सफाई का काम  पूरा नहीं हुआ है ! एक - दो मिनट और इंतजार करे ! 

तब - तक गुंतकल केबिन ( बायीं पास ) के स्टेशन मास्टर जोर - जोर से हमें पुकारना शुरू कर दिए , जिससे की हम तुरंत  ट्रेन स्टार्ट कर ले ! कुछ समय बाद हमारे गार्ड साहब ने हरी झंडी दिखाई ! हमने सिटी दी और ट्रेन चल पड़ी ! इंटर मिडियत स्टार्टर , बायीं पास स्टार्टर को हम उचित सिगनल से पास कर गए ! अब हमारे सामने लास्ट स्टॉप सिगनल आने वाला था ! वह हरी लाइट( प्रोसेड़ ) बता रहा था ! हम नजदीक आने वाले ही थे की वह लाल बत्ती( खतरा ) बताने लगा !

तुरंत आकस्मिक ब्रेक लगाने पड़े ! ट्रेन तो रुक गयी , पर कई बार पुकारने के वावजूद भी बायीं पास मास्टर ने कोई जबाब देना उचित नहीं समझे ! ट्रेन पांच मिनट  तक रुक गयी ! फिर ग्रीन लाइट आने के बाद हम आगे की तरफ प्रस्थान कर गए ! इसकी सूचना मेरे सहायक ने सेल फोन के द्वारा , मुख्य शक्ति नियंत्रक को दे दी ! वाडी जाने के बाद , इसकी शिकायत मैंने - शिकायत पुस्तिका में भी लिख दी !

पर क्या कुछ , कार्यवाई हुयी ? अभी तक तो जीरो !  आये ऐसी कुछ परिस्थितियों पर नजर डालें- जो खतरनाक साबित हो सकती है ! 
१) लाल बत्ती की अवस्था में ट्रेन आगे ले जाने पर - लोको पायलट को डिसमिस या बर्खास्त किया जा सकता   है  !  इस घटना में किसी की नाजुक गलती - लोको पायलट के लिए खतरनाक  साबित हो सकती है ! 
२) इस अवस्था में आगे बढ़ने पर कोई अंजान दुर्घटना के भी अंदेशा से नहीं मुकरा जा सकता है !
३)  सिगनल की खराबी - बड़े खतरों को निमंत्रित कर सकती है ! 
४) मास्टर की लापरवाही भी इसमे शामिल है ! 
५) इस तरह की घटनाये , ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण भी है ! 
६) और बहुत कुछ ....................और 
७) सब तो ठीक है ---जो भी होगा देखा जायेगा , अंत में लोको पायलट को बलि का बकरा बनना पड़ेगा  ! 
मेरे गार्ड साहब -एस.आर.नायक ., मेरा सहाय - एस चाँद बाशा , मेरा लोको संख्या -११३४७ / पुणे बेस !

 यहाँ सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह है की मैंने समय रहते हुए -इस गलती को प्रशासन के सम्मुख रख दिया है ! इस तरह की कई घटनाओ को प्रस्तुत कर चूका हूँ ! फिर प्रशासन उचित कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है ? क्या नए दुर्घटनाओ का इंतजार है ! अभी - अभी पता चला है की अरक्कोनाम  टक्कर ( दो ट्रेन के बीच - जिसमे दस से ज्यादा लोगो की जान गयी ) में भी सिगनल के खराबी का अंदेशा किया जा रहा है ! व्यवस्था  या दुर्व्यवस्था ! कब तक लोको पायलट और यात्री मरते रहेंगे ? 
 ( सौजन्य - जोइंट जनरल  सेक्रेटरी / ऐल्र्सा / दक्षिण मध्य रेलवे )

Wednesday, September 7, 2011

बुझ गयी जिंदगी !

  "" दुर्घटना स्थल पर जांच किया और पाया की जीवन समाप्त हो गयी है "    लाल रंग के स्याही से रेलवे डाक्टर ने इस बात की पुष्टि की ! जी हाँ जिस महीने में सारी दुनिया मजदूर दिवस मनाने में मशगुल थी , उसी माह में ऐसी दर्द नाक दुर्घटना होगी - किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था ! सहायक लोको पायलट - एन.एस .प्रबोध की तिरुनेलवेली यार्ड में -एक ट्रेन के रेक को पीछे धकेलते समय - यार्ड में ,धक्का लगाने से  रात्रि के दो बज कर पैतालीस मिनट पर, तारीख ३० मई २०११ को - दुर्घटना का शिकार हो गए ओर तुरंत मृत्यु हो गयी  ! जिसकी पुष्टि रेलवे डाक्टर ने लाल स्याही में कर दी थी  ! असावधानी ही जीवन ले ली  !
                                                                      एन.एस.प्रबोध

शायद इसी लिए लोको पायलटो की पत्निया हमेश एक इंतजार की घडी में ही जीती है ! वह इंतजार भी अपने - अपने इष्ट देव की पूजा और अर्चना में व्यतीत हो जाती है , जिससे की उनके पति सकुशल घर वापस लौटे ! एन.एस.प्रबोध को दो बेटे है ! सात वर्ष का सिद्धार्थ और दो वर्ष का सचिन  ! पत्नी मंजू इस युवा अवस्था में ही अपने पति से बिछड़ गयी , जो काफी असहनीय है ! उसके कंधे पर दो बच्चो की परवरिश और सास -ससुर की देख भाल की जिम्मेदारी आ पड़ी है !

   एन.एस.प्रबोध हमारे असोसिएसन का एक अनुशासित  कार्यकर्ता थे ! आप दिनांक - २५-०९-२००० में रेलवे में सहायक लोको पायलट के रूप में ज्वाइन किया था  ! शुरुवाती पोस्टिंग दक्षिण रेलवे  के इरोड डिपो  में हुयी थी ! इन्होने पालघाट , एरनाकुलम और अंत में अपने पैत्रिक नगर कुईलों में कार्य किया ! इनके अनुशासित रवैये से बहुतो को अपने हाथ सेकने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था और बहुत कुछ !

        दिनांक ०३-०६-२०११ को कुईलों में आल  इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ  एसोसिएसन ने एक शोक -सभा का आयोजन किया और इस एसोसिएसन के तरफ से पांच लाख पच्चीस हजार रुपये  का एक सहायता चेक , उनके धर्मपत्नी को भेंट किया गया !  आल  इण्डिया  लोको रुन्निंग स्टाफ एसोसिएसन गहरा दुःख ब्यक्त करते हुए ,  भगवान से प्रार्थना करता है - की उनके शोक संतप्त परिवार को धैर्य और साहस दे , ताकि वे इस गम को सह  और भुला सके ! पुरे  लोको पायलटो की ओर से  स्वर्गीय एन.एस.प्रबोध को भाव भीनी श्रद्धांजलि ! भारतीय रेलवे के लोको पायलट रोजाना एक नयी जीवन पाते है ! कब क्या हो जाये किसे पता ?

Saturday, August 13, 2011

मुझसे क्या भूल हुई , जो ये सजा मुझको मिली ?

                                   एस.मनोहर लोको पायलट /रेनिगुन्ता (बिना चश्मे की आँखे )

दुनिया में  सबसे बड़े लोकतंत्र के मायने में , हमारे देश की गरिमा सर्वोपरी है ! यही लोकतंत्र बड़े को बड़ा और छोटे को छोटा भी बना देता है ! देश में तरह - तरह के आन्दोलन और धरने रोजाना देखने को मिल जायेंगे !       इन आन्दोलनों / धरनों से देश और समाज को काफी नुकशान उठाने पड़ते है ! इन धरनों की सफलता सामने वाले की सकारात्मक चिंतन पर निर्भर करती है ! इस समय असामाजिक तत्व अपने   हाथ  सेंकने    से   नहीं    चुकते !     कईयों   की जाने  व्  घायल होना तो स्वाभाविक ही है ! लेकिन बिना आन्दोलन और  धरने के किसी को घायल करना ,पागलपन ही तो है


      अब आये -एक दर्द भरी- पीड़ा आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ! भारतीय रेल के चालक - ड्राईवर कहलाते थे ! अब रेलवे ने इसे संवार  कर लोको पायलट का नाम  दे दिया है ! तारीख २० जून २०१०, .रेनिगुन्ता का एक लोको पायलट जो हमारे एसोसिएसन का मेंबर भी है , नाम -श्री एस. मनोहर  ( उम्र -३८ वर्ष ), ट्रेन संख्या -१७२०९ (बंगलुरु से काकीनाडा ) को जोलर पेत्तायी  से लेकर रेनिगुन्ता को आ रहे थे ! यह ट्रेन काट पाडी ,पाकला और तिरुपति होकर रेनिगुन्ता को जाती है ! इन कि ट्रेन काट  पाडी से पौने छ बजे रवाना हुई और रामापुरम की तरफ बढ़ रही थी ! ट्रेन की गति करीब ८५ किलो मीटर के आस - पास थी ! अचानक किसी बाहरी व्यक्ति ने एक पत्थर दे मारा ! वह पत्थर लोको के सामने वाली शीशे को तोड़ती हुई ,एस. मनोहर के सीर  पर लगी ! ट्रेन की गति और वह पत्थर , किसी बन्दुक के गोली से कम नहीं थी ! वे ट्रेन को न संभाल  ,  दर्द से कैब में ही गीर  पड़े ! सहायक ने आकस्मिक ब्रेक  लगा कर ट्रेन  को तुरंत रोक दिया ! देखा उसके लोको पायलट के चहरे खून से लत -फत! दोनों आँखों को हाथ से पकडे हुए ! 

 मनोहर ने कहा - मेरे आँख बुरी तरह से जख्मी  हो गए है ! मै ट्रेन आगे नहीं चला सकता ! मेडिकल सहायता जरुरी है ! इसकी सूचना ट्रेन गार्ड   को मिल चुकी थी ! उसने कंट्रोल कार्यालय को सूचना दे दी ! ट्रेन को धीमी गति से चला कर सहायक रामपुरम तक ले आया !

  एक दुसरे ट्रेन के लोको पायलट की (उस ट्रेन को आगे ले जाने के लिए) व्यवस्था किया गया ! रामपुरम के  आस-पास कोई डाक्टर नहीं है ! अतः मनोहर को काटपाडी  वापस भेजा गया ,जहा रेलवे डाक्टर पहले से तैयार थे! 

तब-तक रात के नौ बज रहे थे ! रेलवे डाक्टर ने घाव की जाँच की -पर वह उसके वश का नहीं था ! दुसरे दिन  यानी २१ जून २०१० को एस.मनोहर को क्रिश्चन मेडिकल कोलेज ( सी.एम्.सी ) वेल्लोर को रेफर किया गया ! जहा आँख के स्पेशलिस्ट  अपनी गहन जाँच के बाद इस नतीजे पर पहुंचे की मनोहर के बाएं आँख की कोर्निया और नेचुरल   लेंस  क्षतिग्रस्त हो गए है ! सर्जरी जरुरी है ! दाहिने आँख को भी साधारण चोट लगी है ! सी.एम्.सी.के डाक्टरों  ने सर्जरी सफलता पूर्वक किये और २५ जून को मनोहर को डिस्चार्ज कर दिया गया !


 शंकर नेत्रालय चेन्नई और दक्षिण भारत में बहुत ही प्रसिद्द अस्पताल है ( नेत्र के इलाज और  आपरेशन के लिए ) , एक महीने बाद रेलवे मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अनुमति से एस.मनोहर इस अस्पताल में ऋ -चेक के लिए गए ! डाक्टरों ने सुझाव दिया की रेतईना डिटैच पोजीसन  में है ! फिर आपरेशन  करना पडेगा !


फिर पेरम्बूर रेलवे हॉस्पिटल ने इसकी अनुमति दी ! शंकर नेत्रालय में डाक्टरों ने आपरेशन की और रेतईना को फिर अटैच कर दिए ! इतना ही नहीं उन्होंने सुझाव दिया की प्रति माह चेक -अप करने होंगे और सिक्स माह के बाद फिर एक आपरेशन करने पड़ेंगे !


   इस तरह से एस. मनोहर पुरे उपचार के बाद अपने रेलवे हॉस्पिटल को रिपोर्ट किये ! उन्होंने  इस लोको पायलट श्री एस.मनोहर को - ट्रेन चलने के कार्य से  मेडिकली अन -फिट कर दिया है ! अब एस. मनोहर ट्रेन नहीं चला सकते ! इस दुर्घटना ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया ! वह आजाद पक्षी अब उड़ नहीं सकता ! मुझे  इस घटना की पूरी रिपोर्ट , उस समय ही मील गयी थी ! लेकिन पूरी जानकारी नहीं थी ! जब मै उनसे ग्यारह अगस्त को रेनिगुनता रेस्ट रूम में मिला तो उन्होंने उपरोक्त  पूरी जानकारी दी !
 
लोको पायलटो के दुखो और निदानो से सदैव लड़ते आया हूँ ! इस व्यथा को सुन दिल कह उठा - मुझसे क्या भूल हुई  जो ये सजा मुझको मिली ! रेलवे पथ  के किनारे खड़े व्यक्ति के एक छोटे पत्थर ने आज एस.मनोहर के जीवन को झक-झोर कर रख दिया है ! आखिर इन्होने  किसी का  / उसका क्या बिगाड़ा था ? आज रेलवे  इन्हें अपाहिज नहीं किया , बल्कि सुयोग्य पद के तलाश में है ! फिर भी इन्हें प्रति माह करीब दस-पंद्रह हजार  के नुकशान सहन करने पड़ेंगे ! 
     ( अगली पोस्ट -बालाजी के जन्म दिवस -२७-०८-२०११ के पहले  = प्यारा सर्प ,मेरी पत्नी और बालाजी )

         बालाजी द्वारा -राष्ट्रीय  ध्वज को नमन -स्वतंत्रता दिवस पर 

Sunday, July 31, 2011

चलना ही जीवन है ! ( शीर्षक --डॉ मोनिका शर्मा जी )

कल रेनिगुंता में था !बारिश की फुहार पड़ रही थी ! हौले - हौले ! न जाने कितनी पानी की बुँदे ,जैसे दर्द बन कर गीर रही थी ! टप- टप ! लगता था जैसे सारा वातावरण रो रहा हो ! उमस के बाद ठंढी मिली थी ! बड़ी सुहावन लगी ! जल ही जल ! इसी लिए कहते है - जल ही जीवन है ! बूंद टूटा आसमान से ! धरती पर गीरा ,बहते हुए कुछ मिटा ,कुछ खिला और कुछ अपने अस्तित्व को बचा लिया ! यही तो जीवन है ! इसमे न पहिया है , न तेल ! बिलकुल चलता ही रहता है ! अजीव है यह जीवन ! कितना प्यारा ! कितना दुलारा ! सब चीज का जड़ ! क्या काटना अच्छा होगा ? या संवारना ? 

 सभी को अपने प्राण प्यारे होते है ! थोडा ही सही , किन्तु बहुत प्यारे ! आईये देखते है , वह भी बिना टिकट के ! आज की बात है ! जब मै रेनिगुंता से चेन्नई - दादर सुपर फास्ट लेकर चला ! मेरे साथ हवा चली ! लोको चला और पीछे यात्रियों से भरा कोच ! सभी अपने में मग्न ! मै भी , प्राकृतिक छटाओ को निहारते ,सिटी बजाते , जंगल के मध्य बने दो पटरियों पर , लगातार बढ़ते जा रहा था ! जब ट्रेन जंगल से गुजरती है तो बहुत ही मनोहारी दृश्य देखने को मिलते है ! आप को कोच से जीतनी सुहानी लगती है , उससे ज्यादा हमें ! कभी मोर दिखे तो कभी कोई हिरन छलांग लगा दी !

लेकिन आज जो मै देखा , वह एक अजीब सी लगी ! उस बिन टिकट यात्री को ! जो मेरे लोको के अन्दर चिमट कर बैठ  गयी  थी  ! हम  पूरी ड्यूटी के दौरान ,कई बोतल पानी गटक गए ! रास्ते में कहीं गर्मी तो कही बादल ! रेनिगुंता से गुंतकल की दुरी ३०८ किलोमीटर ! वह बिना पानी और भोजन के एक कोने में सिमटी हुयी जिंदगी की आस में उछल - कूद किये जा रही थी ! जब मेरी नजर उस पर पड़ी ! मै  उसे देखते रह गया ! इतनी सुन्दर  चित्रकारी और बेजोड़ कलाकारी ,वाह ! बार - बार ध्यान से देखा ! अपने सहायक को देखने के लिए विवस किया ! वह भी मुह खोले रह गया  ! इश्वर ने क्या चीज बनायी है !

छोटी सी दुनिया , इतनी खुबसूरत ! आज मेरे लोको में यात्री थी ,बिना टिकट के ! २७५ किलोमीटर तक मेरे साथ रही ! न पानी पी न भोजन  ! उसकी दशा  देख  , मुझे  तरस आ गयी  ! मैंने उससे कह दी तू गूत्ति आने के पहले अपने दुनिया में चली जा ! कब तक बिन खाए पीये  यहाँ पड़ी रहेगी ! शायद वह मेरे मन की बात समझ गयी ! गूत्ति आने के पहले ही वह फुर्र हो गयी ! क्योकि चलना ही जीवन है ! अगर वह और कुछ घडी रुक जाती , तो मौत  निश्चित थी ! मैंने उसमे जुरासिक पार्क के डायनासोर देखें! अब आप भी देंख लें -
 बिन टिकट यात्री !शीशे के पास दुबकी हुयी !
 ट्रेन की गति कम होने पर , जीवन की एक कला   !
 अपनी दुनिया के लिए बेचैन !
ध्यान से देंखें - उसके पंख पर डायनासोर ही तो है !इस्वरीय करामात !
यह तितली अपने को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखते हुए यात्रा करती रही ! ट्रेन के रुकने पर पंख को फैलाना  और तेज गति के समय सिकोड़ लेना , जीवन की बुद्धिमता ही तो है ! हम भी इस मायावी संसार में फैलने और सिकुड़ने में व्यस्त है ! आखिर एक दिन सभी को बिन टिकट यात्रा करनी पड़ेगी ! यही तो कह गयी यह मेरी  प्यारी तितली !

Thursday, July 21, 2011

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )



इश्वर  ने  हमें  वह  सब  कुछ  दिया  है  , जो  सृष्टि  के किसी  प्राणी  को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने  के लिए आँख , सुनने के लिए  कान  , खाने के लिए  मुंह  ..आदी  ! इसमे सबसे योग्य  हमारा  मष्तिक है , जो हमसे  सब कुछ करवाने  के लिए , मार्ग  दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की  पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब  तक  पहचान  होती  है , बहुत  देर  हो  चुकी   होती   है  ! धर्म और कर्म का बहुत ही  बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के  शुद्ध कर्म नहीं ! बिन  कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है ! 

मै  लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ?  क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा   ! " सर  आज  उस अफसर ( नाम  बताया ) के वेटे का देहांत  हो गया  है  !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे  दुःख  व्यक्त  करूँ ,और  कुछ   कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण  भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा 
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात  पर  किसी को  भी  चार्ज सीट  दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की -  " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये  है  क्या ?"

जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत  दिनों  तक अपोलो अस्पताल में भरती  रही  और इस दुनिया को छोड़ चली गयी  ! उसके शव को  दूर  शहर  में  हाथ  देने  वाले कोई  नहीं  थे , फिर  भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस  शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये  थे !वह अपनी  करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने  नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर   उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज  उसकी दुनिया से  उसका   एकलौता  वेटा  भी उसे  छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी  के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है ! 

( सत्य  पर आधारित  घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम  छुपा दिए गए है ! ) 





Sunday, July 10, 2011

परिणाम

                   मै  और बालाजी गंगा जी में स्नान करने जाते हुए !


परिणाम  - पिछले पोस्ट - " आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?" के प्रयास स्वरुप मुझे कई रोचक और सार्थक सुझाव मिले , जो टिपण्णी के साथ मौजूद है ! सभी को मेरी बधाई !उसे एक बार उधृत करना चाहूँगा !

  1.  
१) श्री सुरेन्द्र सिंह "झंझट "= खतरों से खेलती जिंदगी ! 

२) श्री राकेश कुमार जी =सर्प में रस्सी ! 

३) श्री विजय माथुर जी =जाको राखे साईया मार सके न कोय ! 

४) डॉ  मोनिका शर्मा जी =  चलना ही जीवन है ! 

५) सुश्री  रेखा जी = सतर्कता हर जगह ! 

६) श्री सुधीर जी =खतरे में आप और सांप ! 



७ ) श्री संजय @मो सम कौन ? = कर्मचारी अपने जान के खुद जिम्मेदार है ! और  

८) श्री दिगंबर नासवा =जीवन के अनुभव ! 

यहाँ नंबर एक ही सर्वश्रेष्ट है अर्थात श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " के सुझाव अत्यंत योग्य लगे ! क्योकि सर्प और लोको पायलट , दोनों की जिंदगी एक सामान है !  दोनों ही अपने क्षेत्र में खतरों से खेलते है ! यह लेख भी सर्प और लोको पायलटो के जिंदगी के इर्द - गिर्द ही सिमटी हुई थी ! बाकी सभी 7 सुधि पाठको के विचार भी योग्य है ! भविष्य में , मै इन शीर्षकों से सम्बंधित पोस्ट लिखूंगा और आप सभी के शीर्षक ही विचारणीय होंगे !  


अभी मै दक्षिण सम्मलेन में व्यस्त हूँ , जो तारीख - २०-०७-२०११ को गुंतकल में ही आयोजित की गयी है ! जिसमे दक्षिण रेलवे , दक्षिण - पश्चिम  रेलवे और दक्षिण - मध्य रेलवे के लोको पायलट भाग ले रहे है ! इसके  संचालन , व्यवस्था  और देख -भाल की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है ! अतः १०  / १२ दिनों तक ब्लॉग जगत से दुरी बनी रहेगी ! ब्लॉग पोस्ट पढ़ने और टिपण्णी देने में भी असमर्थ ! 


                  अब आज के विचार-


  जब हम निस्वार्थ भाव से नदी के पानी में डुबकी लगाते है ,  तो हमारे सिर के ऊपर हजारो टन पानी ..होने के वावजूद भी , हमें कोई बोझ मालूम नहीं होता ! किन्तु उसी नदी के पानी को स्वार्थ में वशीभूत होकर , जब घड़े में लेकर चलते है , तो बोझ महसूस होती है ! अतः स्वार्थी व्यक्ति इस दुनिया में सदैव बोझ से उलझते रहते है और निस्वार्थ लोग सदैव मस्त !

Sunday, May 1, 2011

..उसकी अस्मिता लूटती रही और मेरा दृढ निर्णय ...

                           जीवन में हर मोड़ पर ..किसी न किसी निर्णय को लेना या करना पड़ता है !राम ने पिता के आज्ञा को पालन करने का निर्णय लिया था !दसरथ ने कैकेयी के वर और अपने वचनों के पालन का निर्णय लिया था ! लक्षमण  ने राम के साथ वन जाने का निर्णय लिया था ! सीता ने पति धर्म निभाते हुए ...पति के साथ वनवास जाने का निर्णय लिया था ! रावण ने सीता का अपहरण करने का निर्णय लिया और यह एक घोर और भीषण लडाई का कारण बना था !बिभीषण ने न्याय का पक्ष लेने का निर्णय किया और घर के भेदी जैसे शुभ नाम से जाना जाने लगें ! राम भक्त हनुमान ने अपने ईस्ट देव / प्रभु राम का साथ देने का निर्णय किया !

                         महाभारत में देंखे तो युधिष्ठिर ने लडाई से परे रहने का निर्णय लिया ! दुर्योधन ने एक इंच भी जमीन पांडवो को न देने का निर्णय किया और एक लम्बी युद्ध को निमंत्रण दे बैठा ! कृष्ण ने पांडवो का पक्ष लिया , यह भी एक योग रूपी निर्णय था !
              हर निर्णय को देंखे तो हमें  दो रूप ही दिखाई देते है ! 
              पहला - परोपकार हेतु निर्णय और 
              दूसरा- स्वार्थ  वश !

              इसी धुरी पर केन्द्रित निर्णय ..हमें रोज जीवन में लेने पड़ते है ! भुत , वर्त्तमान और भविष्य ...कोई भी काल क्यों न हो हमेशा एक न एक निर्णय के साए में ही ...फला और पनपा है ! सभी दृस्तियो में निर्णय  ही भावी रहा है !

              ज्यादा शब्द बोझ न देते हुए ...संक्षेप में इस कड़ी को पूरी करना चाहता हूँ !
              मै दोपहर को सो कर ही उठा था और टी.वि.देख रहा था , तभी बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की जल्द चार पास पोर्ट साइज़ फोटो  लेकर ऑफिस में आ जाईये !  
            मैंने पूछा -क्यों ?
           "अरे यार आओ ना " चुकी बैच  मेट है , इसीलिए उन्होंने भी सहज रूप में जबाब दिया ! मै थोड़ा घबरा सा गया ! आखिर कौन सी बात आ टपकी ! सर्टीफिकेट का मामला हो सकता है - मैंने सोंचा ! उन्होंने जिद्द कर दी ,अतः मै चार फोटो के साथ ऑफिस में चला गया ! 
            फोटो देते हुए फिर पूछा -"  सर मेरे प्रश्न का जबाब नहीं मिला है ? 
         ' यू आर सलेक्टेड फॉर जी .एम्. अवार्ड ! उन्होंने तुरंत जबाब दिया !
         " मै नहीं मानता ,भला मुझ जैसे निकम्मे को जी.एम्. अवार्ड कौन देगा ? " - मैंने ब्यंगात्मक भाव से पूछा !        " बिलकुल सच ,यार !" जबाब  मिला !. यह घटना मार्च माह के प्रथम वीक की है ! 

                   तारीख ०८-०४-२०११ को मै रेनिगुन्ता से सुपर -१२१६४ काम करके आया और आगे जाने वाले लोको पायलट को ट्रेन का कार्यभार सौप रहा था! देखा - बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर श्री मुर्ती जी चले आ रहे है ! वे मुझसे उम्र में बड़े है तथा नौकरी में भी बरिष्ट ! आते ही मुझे - " congratulation "  कहा !
                मैंने पूछा - किस बात का सर ?
             आप का नाम जी.एम्.अवार्ड के लिए अनुमोदित हो गया है ! १३ अप्रैल / ११ अप्रैल को दिया जाएगा !  मैंने कुछ नहीं कहा ,सिर्फ धन्यबाद के !

               मैंने इस बात की जानकारी अपने मुख्य कर्मी दल नियंत्रक  श्री जे.प्रसाद को दी ! इसके बाद से ही मेरे प्रति षडयंत्र शुरू ! दुसरे दिन मेरे लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन ने बताया की - " दुःख के साथ कहना पड रहा है की आप का नाम  जी.एम्.अवार्ड से बंचित हो गया ! इसके पीछे साजिश काम कर गया !" मुझे भी इस समाचार को सुनकर दुःख हुआ !

              मै १२६२८ कर्नाटका एक्सप्रेस तारीख १३-०४-२०११ को काम करके आया था और स्नान वगैरह कर सोने की तैयारी में था , तभी गदिलिंगाप्पा ( मुख्य कर्मीदल नियंत्रक / गुड्स ) का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की आज डी.आर.एम्.अवार्ड रेलवे इंस्टिट्यूट में दिया जाएगा और आप का भी नाम शामिल है !मैसेज संख्या -१३ /०४ /२५ है ! आप इंस्टिट्यूट में जाकर इसे ग्रहण करें ! 

               मैंने कहा -ओ.के .और फ़ोन रख दिया !  रात भर ट्रेन चलाने की वजह से नींद आ रही थी अतः सो गया !             यह निर्णय कर की -मै इस अवार्ड को बहिष्कार करूंगा !

              जी हाँ ,उस दिन मै सो नहीं सका क्यों की बार - बार सभी लोको इंस्पेक्टरों  की रेकुएस्ट भरी फ़ोन आती रही की आप आओ और इस अवार्ड को ग्रहण करें ! मैंने जिद्द कर ली थी और उन लोगो को कहला दिया की मै अवार्ड का भूखा नहीं हूँ ! कृपया मुझे माफ करें! मेरे सर्टिफिकेट को लोब्बी में रख दे तथा जो कैश है उसका स्वीट खरीद कर गरीबो में बाँट दे !

            साजिस = जैसे ही कुछ लोको इंस्पेक्टरों और मुख्य शक्ति नियंत्रक को मालूम हुआ की मुझे जी.एम्.अवार्ड मिलने वाला है , त्यों ही उन्होंने एक यूनियन की मदद से उसे तुरंत खारिज करवा दिए ! इस तरह से उस अवार्ड की अस्मिता लूट गयी ! इन भ्रष्ट लोको इंस्पेक्टरों और यूनियन   के समूह ने मिल कर इस अवार्ड को मौत के घाट उतार दिया !वह मेरी न हो सकी !उससे मै बंचित रह गया !उसकी अस्मिता वापस लाने के लिए ,डी.आर.एम्.ने तारीख १३-०४-२०११ को रेलवे इंस्टिट्यूट में बुलवाएँ !

              इस घिनौनी हरकत और अन्धो के बीच अपनी नाक कटवा दूँ ! यह मुझे गवारा नहीं था ! अतः मैंने इसे लेने से इनकार कर दिया ! आज - कल ..सरकारी क्षेत्र में अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए ...वैभव और स्वर्ण वेला के लिए , मौन मूक तड़प रही है ! ठीक चातक की तरह ...इसी आस में की अमावश की रात कटेगी   और पूर्णिमा की चाँदनी रात जरुर आएगी ! 
   
             मेरे इस निर्णय को पूरी तरह से सराहा गया ! यह मेरे जीवन की अविस्मर्णीय घटना बन गयी है ! चोरो का मुह काला हो गया है !

Monday, April 18, 2011

मौत का अनूठा चांस ...

हम लोको पायलट   जीवन में अजीव सी जिंदगी जीते है ! वह भी ड्यूटी के वक्त .! जीवन चलने का नाम है  और चलती का नाम गाड़ी  ! रेलवे की ट्रेन चौबीसों घंटे चलती और दौड़ती रहती है ! इस दौड़ में दर्शक......ये  यात्री और उनकी गवाह ...  ये लोको पायलट ही होते है ! ट्रेन  नदियों- नालो ,जंगलो -झाडो  , पर्वत - पहाड़ो से गुनगुनाती हुई निकलती रहती है और ये लोको पायलट ...सजग और होशियारी पूर्वक ...समय के साथ ..जीवन की गीत गाते हुए ...सभी को उस पार ....  दूर  नियत स्थान पर ले जाकर सुरक्षित छोड़ देते है ! उतरने वाले ..एक टक भी इनके तरफ   नहीं देखते,  कितनी आत्मीयता है !
               सिटी बजी ...और फिर यह गाड़ी चल दी ! उसी धुन और राग को अलापते ! जीवन भी तो एक गाडी ही है ! इसे जैसे चाहो ...चलाओ ! उस पर भी इस लोकतंत्रीय भारत वर्ष में ! लोक - तंत्र सबके लिए ..समानता का अधिकार देता  है , पर असलियत दूर ! किसी के पास अरबो की सम्पति है ,तो कोई दाने - दाने के लिए मोहताज है ! ये कैसी व्यवस्था  ?
              अब आये विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! हम लोको  पायलट  ट्रेन की भागम - दौड़ में ..इन दो रेल की पटरियों ( या जीवन की सुख - दुःख ) के बीच ..बहुतो को आत्महत्या या मरे हुए देखा है ! मरने वाले इंसान  हो या जानवर या पशु - पक्षी ...सभी घटनाए   अपने - आप में कुछ शब्द छोड़ जाती है , जिन्हें व्यक्त करना या शब्दों में बांधना ...बड़ा ही कठिन जान पड़ता है ! यह तो सच है की हमें किसी ने बनाया है ! माता - पिता हो या भगवान ...जो भी मान ले ! उसी तरह मृत्यु भी ..इस सृष्टी की एक अजूबा है !   जो सत्य है  ! सभी महसूस  करते है ! जानते है ! फिर भी बेवजह , जबान पर भी लाने से  डरते है ! किन्तु इससे कोई भी नहीं बचेगा ! बचेगा सिर्फ  हमारे कर्म और धर्म से कमाई हुयी ..सम्पति !
            जी ,आज  ( १८-०४-२०११ ) मै ट्रेन संख्या - १२१६३ एक्सप्रेस  ( दादर -चेन्नई सुपर ) वाडी जंक्शन  से लेकर गुंतकल आ रहा था ! यात्रा के दौरान  एक अजीव घटना घटी ! जिसे मैंने व्याख्या कर यही पाया की मौत भी सभी को बचने का चांस देती  है ! ठीक उसी तरह  जैसे  - मृत्यु दंड के अपराधी को ..देश के राष्ट्रपति का स्वर्ण चांस  !  
                     हुआ यूँ की  एक कुत्ता ( मटमारी - मंत्रालयम स्टेशन के बीच ) अचानक दो पटरी के बीच आया ! उसे जब ट्रेन के आने की आभास हुआ, वह तुरंत पटरी से बहार गया ! बाहर जाकर फिर ..पटरी के बीच में आया !  बाहर गया और  फिर ...वापस पटरी के बीचो-बीच आया  ! सामने दौड़ाने लगा ! तब - तक ट्रेन नजदीक   और वह एक जोर झटके के साथ ...मृत्यु लोक को सिधार गया !
             क्या  इस घटना से  ऐसा नहीं लगता की मृत्यु भी ...सभी को एक चांस   जीने के लिए देती है ?