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Thursday, April 14, 2016

सर्प दंश

सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार । जमीन या पेड़ या घरो में रहने वाले सर्प बहुत ही नुकसान देह होते  है । 

वैसे तो सर्प  के बारे में पूरी दुनिया में कई किस्से मशहूर है   किताबो से ज्यादा चलचित्र में । नाग और नागिन पर आधारित चलचित्र मनोरंजन के प्रमुख साधन है । चलचित्र में नाग या नागिन द्वारा अपने दुश्मन से बदला लेने की कला सबको चकित कर देती है । मन में ये दृश्य ऐसे समा जाते है जैसे सच में  भी यह संभव है । चलचित्र की कहानिया सही हो या न हो पर  वास्तविक जीवन में कुछ घटनाये गहरी दर्द दे जाती है । कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हें याद करते ही शारीर में सिहरन दौड़ जाती है । मैं खुद और मेरे परिवार के लोग कई बार सर्प से सामना कर चुके है ।  यहाँ तक की एक बहुत ही पुराना सर्प मेरे घर में वर्षो से निवास कर रहा था और इसकी भनक किसी को नहीं । भगवान की दया है की कोई नुकशान नहीं झेलने पड़े ।

एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी  भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।

सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।


सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के  पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।

भारती  की नजर  उस सर्प पर  पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर  को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।

कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर  यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या  किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने  लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी  कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।

जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।

Thursday, May 14, 2015

अनहोनी

13 मार्च 2015 । अलार्म बजने लगा था । तुरंत उठ गया और पास में सोये हुए जुबेदुल्ला जी को भी उठाया । शायद गुंतकल आने वाला था । अलार्म भी इसीलिए तो सेट किया था । हम दोनों बैठ गए । तभी जुबेदुल्ला जी का मोबाइल बज उठा । उन्होंने काल रिसीव किया । कुछ हलकी सी बाते हुयी । मैंने पूछा - किसका काल था ? ऐसेमेल राम का । फिर उदासी भरे लहजे में बोले - एक और spad हो गया । कहाँ ? अचानक मेरे शव्द निकले । उन्होंने कहा - इसी ट्रेन का यानि गरीब रथ एक्सप्रेस का और इसके लोको पायलट शेर खान । मेरे मुह खुले रह गए । आश्चार्य और दुःख , विषाद चेहरे पर फ़ैल गया ।कुछ विश्वास नहीं हो रहा था । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग रही थी । हमने लोको के नजदीक जाने की तैयारी की जिससे इस ट्रेन के लोको पायलट से कुछ जानकारी ली जा सके ।

हम लोको के पास पहुंचे । यह क्या ? ट्रेन का लोको पायलट कोई और था । अब किसी अविश्वास की कोई गुन्जाईस  नहीं थी । हमने इस लोको पायलट से पूछा ? उसने भी घटना को सही बताया । लोको पायलट के जीवन की सबसे दुष्कर वक्त इससे ज्यादा कोई नहीं है । Spad के बाद वह असहाय हो जाता है । कोई भी उसकी हमदर्दी में सहयोग नहीं देता । सिवा कुछ लोको पायलटो के अपने संघठन के । इसी लिए सर्वथा कहते सुना जाता है की एक लोको पायलट हजारो की जाने बचा सकता है पर हजार एक साथ मिलकर एक लोको पायलट को जीवन दान नहीं दे सकते । ये कैसी विडम्बना है ?

कहते है तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता । वाकई सही है । कल ही सिकंदराबाद रनिंग रूम में हम एक साथ चाय पिए थे । बातो - बातो में मैंने शेरखान से पूछ था की कब पार्टी दे रहे हो ? उन्होंने अत्यधिक ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा था । पार्टी जरूर दूंगा वह भी इसी माह में । ओफ्फिसियल पत्र जल्द आने वाला है । हमने भी ख़ुशी जताई ।

शेरखान लारजेश स्किम के तहत रिटायर होने वाले थे । वह भी इसी माह में क्योकि उनके बेटे का चयन की परिक्रिया पूरी हो गयी थी । शेरखान के बेटे की बहाली सहायक लोको पायलट के रूप में होनेवाली तय  थी और उन्हें वीआरएस । शेरखान के लिए अब सारे सपने अधूरे शाबित होंगे यदि रेलवे प्रशासन कठोर कार्यवाही करती है । आज कल spad की घटनाओ में लोको पायलट को सर्विश से हाथ धोना पड़ता है । ऐसी कठोर सजा और कहीं नहीं मिलती ।

लोको पायलट का जीवन कोल्हू के बैल जैसा है । रेलवे उसे मनमानी ढंग से उपयोग करती है । न रात को चैन न ही दिन में । बिना मांगे साप्ताहिक अवकाश भी दूर । तीज त्यौहार की क्या कहने ।आप अपने बर्थ पर आराम से सोते है । लोको पायलट रात भर पलक झपकाये बिना आप को आपके मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाते है । और भी बहुत कुछ जो छुपी हुयी है । क्या आपने कभी लोको पायलटो के जीवन में झांकने की कोशिश की है ? अगर नहीं तो हर व्यक्ति को जाननी चाहिए ? एक बार सोंच कर तो देंखे यदि आप एक लोको पायलट होते ?

आज शेरखान ससपेंड है । विभागीय ऑफिसर से मिला और शेरखान के केश को सहानुभूति पूर्वक संज्ञान में लेने की अनुरोध भी कर चूका हूँ  । विभागीय अफसर से सकारात्मक उत्तर मिला  है । प्रशासनिक कार्यवाही जारी है । देखना है समय की छड़ी किस आवाज से पुकारती है  ।

हम लोको पायलटो की संवेदना उनके साथ है । हम लोको पायलट कर्मठ भी और असुरक्षित ।

Wednesday, September 24, 2014

कोई शक्ति है ।


कहते है समय बलवान होता है । कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं होता । कोई तो है ; जो हमारी सांसो को कंट्रोल करता है । उसके मर्जी के बिना कुछ सम्भव नहीं है । गाड़िया चलती है तभी जब चलाने वाला हो ।
उस दिन ऐसा ही कुछ होने से रह गया । दिनांक 20 जून 2014 को सपरिवार शादी में  शरीक होने जा रहा था । झिम झिम बारिस पड  रही थी । बस स्थानक में खड़े थे । बसे उस स्थानक पर नहीं रुकती है । कुछ समय के बाद एक बस आई और हमने रुकने के लिए हाथो  से इसरा किया ।
बस रुकी और हम जल्दी से उसके अन्दर प्रवेश किये ।बस  चल दी । कुछ दूर बढ़ने के बाद खलासी ने ड्राईवर को रुकने के लिए कहा । ड्राइवर ने बस तुरंत रोक दी ।खलासी बस से उतरा और पीछे की और गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । देखा की -पीछे के चक्के के पुरे नट बाहर निकलने वाले थे ।
फिर क्या था तुरंत अपने औजारों से टाइट किया । बस फिर गंतव्य की ओर रवाना हो गयी । कंडक्टर ने कहा -आज सबकी जान बच गयी अन्यथा एक्सीडेंट होने वाला था ।नटो के बाहर निकलते ही चक्के बाहर आ जाते थे । शुक्र है समय से लिया गया निर्णय सभी को सुरक्षित रखा ।
कहते है -एक छोटा छिद्र नाव को डुबो देता है । कही यह भी सही है की एक धर्मात्मा की वजह से असंख्य की जान बच  जाती है । कोई तो है जो सब कुछ जानता है । कब और क्या करना है ?

Saturday, August 23, 2014

आधुनिक आचरण

" बहुत बेशर्म हो जी |" मुझे गुस्सा आ गया और अनायास ही ये शव्द मेरे मुह से निकल पड़े | बगल में बैठी पत्नी भी घबड़ाते हुए पुछि -"_ क्या हो गया ? मै पत्नी के प्रश्नो का जबाब देता की वह युवा बोल उठा - " किसे बोल रहे है ? " 

उसके ऐसा कहते ही मै और भड़क गया | उसे डाटते हुए बोला - " गलती करते हो और सीना जोरी भी | सॉरी कहने के वजाय मुह लड़ाते हो ? यही शिष्टाचार सीखे हो ? थोड़ा भी संस्कार नहीं है और पूछते हुए शर्म नहीं आती है ? " अभी तक उस युवक को यह समझ नहीं आया की उसकी क्या गलती थी ? वह चुप हो गया | 
युवा का विपरीत वायु होता है | युवाओ को जोश में बुरे या अच्छे का ज्ञान नहीं होता |
मै पत्नी की तरफ देखते हुए बोला - " देखो जी इस भोजन के नजदीक पैर रख दिया | " अब क्या था पत्नी  भी उस युवक को खरी - खोटी सुनाने लगी | वह युवक निःशव्द हो गया | उसे अपने गलती का एहसास हो चुकी थी | उसने कहा - सॉरी अंकल | 

 उस दिन १९ जून २०१४ था और हम पवन एक्सप्रेस के दूसरी दर्जे के वातानुकूलित  कोच में यात्रा कर रहे थे | एक लोअर , एक उप्पर बर्थ हमारा था | बालाजी अलग साईड बर्थ पर थे | उस युवक का बर्थ हमारे विपरीत वाला ऊपर का था | मै दोपहर का भोजन कर रहा था | सभी खाने कि सामग्री लोअर बर्थ पर फैली हुयी थी | वह युवक टॉयलेट से आया और सीढ़ी से ऊपर बर्थ पर न जाकर  दोनों लोअर बर्थ के ऊपर पैर रखते हुए छलांग लगाया और अपने ऊपर के बर्थ पर चढ़ गया | ऐसा करते वक्त उसके एक पैर मेरे खाने के प्लेट से सिर्फ चार अंगुल दूर थे | इस गन्दी  हरक्कत को भला कौन बर्दाश्त कर सकता है ?

प्राचीन काल से इस आधुनिक युग कि तुलना काफी अलग है | शिक्षा के स्वरुप काफी विकसित और अभूतपूर्व है | उसके मुताबिक मनुष्य के रहन - सहन में काफी बदलाव आएं है | किन्तु इन सब के बावजूद  मष्तिष्क निधि के गिराव जोरो पर है | परमार्थ , हितकारी , मददगार , उपयोगी  शिष्टाचार जैसे गुड़ी शव्दो का कोई महत्त्व नहीं रहा | जिसके लिए हमारे पूर्वज जान भी दे देते थे |  

यही शायद असली कलयुग है | उच्च शिक्षा का मतलब यह कतई नहीं कि हम अपने सामाजिक कर्तव्य और शिष्टाचार को भूल जाय | शिष्टाचार का स्वरुप ऐसा हो कि हम जो भी कार्य करें उससे किसी को भलाई के सिवा कुछ न मिले | जो भी हो हमें समाज से सतर्क और समय से जागरूक होनी चाहिए | एक अनुशासित व्यक्ति , परिवार , समाज ,राज्य और देश के  स्वस्थ वातावरण को जीवित रख सकता है | सोंचने वाली बात है - क्या मै अनुशासित और शिष्टाचारी हूँ ? 

हमारे मनीषियों ने काल को कई खंडो में विभाजित किया है । आदि , वर्त्तमान या भविष्य जो भी हो एक विभिन्नता से भरपूर है । 
बलिया में उतरने के पूर्व - चलते - चलते कुछ सुझाव भी दे डाला | दुखी मत होवें हमेशा खुश रहे |  जीवन में कभी कोई गलती हो जाए  , तो मुझे याद कर लेना | हिम्मत और शक्ति मिलेगी |

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Wednesday, July 23, 2014

दयनीय पिता और अर्थहीन दशा



आज बहुत दिनों के बाद शकील मुझे मिला था । वह उस डिपो में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था । मुझेबहुत ही आदर करता  था । यह उसकी अपनी बड़प्पन थी । वह देखते ही सलाम किया । मै भी मुस्कुराते हुए स्वीकृति में हाथ उठा दिया और उससे पूछा - कहो शकील कैसे हो ? गुंतकल कैसे आना हुआ ? सर ऑफिस काम से ही आया हूँ । बातो - बातो में यह भी पूछ लिया - परिवार कहाँ रखे हो ? और हा वह नवीन कैसा है ? परिवर गुंतकल में ही है सर । फिर वह कुछ उदास सा हो गया । आगे कहने लगा -सर आप के ट्रांसफर के करीब दो - तीन महीने बाद ही नवीन का देहांत हो  गया ।मेरा  मुह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए । पूछा - वह कैसे हुआ ? क्या बीमार था ? नहीं सर । लोग कहते है - स्टोव से जल कर मर गया । 

अजीब समाचार था । घर आया । दिल में  एक अनजाने दर्द ने घर कर  लिया जैसे मैंने घोर अपराध कर दिए हो । बातो ही बातो में इस घटना की जिक्र पत्नी से भी कर दिया । पत्नी ने अफ़सोस जाहिर की  । पत्नी बोली - आप ने गलती कर दी अन्यथा ऐसी घटना नहीं होती थी । उस वक्त उसे आप को उसकी  मदद करनी चाहिए थी । मैंने लम्बी साँस ली । किसे मालूम था एक दिन ऐसा भी होगा ?


उन दिनों मै एक छोटे से डिपो में कार्य करता था । शाम का समय । अभी - अभी ड्यूटी से उतरा था । पत्नी चाय नास्ते बनाने के लिए किचन के अंदर व्यस्त थी । मै बाथ रूम में मुह -हाथ धोने के लिए अंदर गया । तभी दरवाजे पर लगी काल बेल को किसी ने दबाया । घंटी बजी , पत्नी ने बाहर जाकर देखने की प्रयत्न की । नवीन आया है । पत्नी ने आवाज दी ।  अरे अभी - अभी ही गाड़ी लेकर आया हूँ , यह क्यों आ गया ? ठीक  ही कहते है इन पियक्कड़ों की कोई भरोसा नहीं होती ? पैसे की कमी पड़ी होगी ? बाथरूम में मन ही मन बुदबुदाया और पत्नी से बोला - कह दीजिये थोड़ा इन्तेजार करे । अभी आया । 

घर से बाहर निकला । देखा नवीन दोनों हाथो को सामने सीने के ऊपर मोड़े  हुए स्थिर खड़ा था । लम्बा , गोरा और पतला छरहरा आधे उम्र का इंसान । मुझसे उम्र में बड़ा किन्तु प्रशासनिक पद में छोटा था । देखते ही नमस्कार किया और सहमे हुए खड़ा रहा । शायद उसके मुह से कोई शव्द नहीं निकल पा रहे थे । मैंने ही पूछ लिया  - कहो क्या बात है ? देखा उसके चहरे पर उदासी झलक रही थी । सर एक जरूरी काम है । कहो ? मैंने हामी भरी । सर मै रेलवे नौकरी से स्वैक्षिक अवकाश लेना चाहता हूँ  कृपया एक दरख्वास्त लिख दे । 

वस इतनी सी बात । कल सुबह भी आ सकते थे ? किन्तु मेरा मन कारण जानने के लिए जागरूक हो गया । सच में आखिर इसकी क्या वजह है ? कोई मेहनत की नौकरी भी नहीं है । इसके पिने की लत से सभी वाकिफ  है । सभी एडजस्ट भी करते है । मैंने उससे पूछ ही डाला -" नवीन आखिर क्यों ऐसा करना चाहते हो ? " वह रोने लगा । बोला - " सर मेरा बेटा मुझसे कहता है ,जा के कहीं  मर क्यों नहीं जाते । कम से कम उसे एक नौकरी मिल जाएगी अन्यथा हम ही किरोसिन छिड़क कर तुम्हे मार डालेंगे ।"  मै इसे  गम भीरता से नहीं लिया और उसे समझा बुझा कर -कल सुबह लिख दूंगा कह कर बिदा कर दिया । फिर वह कई बार मिला किन्तु दरख्वास्त लिखने की अनुरोध कभी  नहीं  दुहरायी । 

आज मन विचलित था । शायद उसने सही अभिव्यक्ति की थी । एक दयनीय पिता अपने दयनीय अर्थ से परास्त हो चूका था । काश ऐसा न होता । संसय कहाँ तक उचित है - कह नहीं सकता । ( नाम और स्थान काल्पनिक किन्तु सत्य ) 

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Sunday, February 23, 2014

कहानी - दो पैर

मै अपने किसी कार्य हेतु तिरुपति जा रहा था । प्लेटफॉर्म के एक सीट पर बैठा  ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रहा था । चारो तरफ गहमा - गहमी थी । सभी को सिर्फ  ट्रेन की  इंतजार थी । चारो तरफ  नजर  दौड़ाई  । शायद कोइ जानकार  
 साथी मिल जाए ? दूर भीड़ के एक कोने में एक व्यक्ति के ऊपर नजर पड़ी  । वह अपने बैशाखी के सहारे खड़ा था । अनायास उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी ।वह मुझे  बार - बार देख रहा था । मुझे भी वह कुछ परिचित सा लगा । शायद कहीं देखा हो  । बार -बार माथे पर बल दिया किन्तु सफलता नहीं मिली क्यूंकि अपाहिज से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । ट्रेन आ चुकी थी । सभी जगह पाने कि होड़ में दौड़े । ट्रेन समय से पहले आई  थी । अतः यह तो निश्चित था कि पहले नहीं छूटेगी । 

मै एक कम्पार्टमेंट के अंदर जगह पा लीथी  । अनायास वह बैशाखी वाला व्यक्ति भी मेरे सामने वाली सीट पर आ बैठा । मेरे मुंह खुले रह गए । यह तो वही नायडू था  ,जिसे दो वर्ष पहले एक ट्रेन एक्सीडेंट ने अपाहिज बना दिया था । " नमस्ते नायडू " - नायडू से उम्र में बड़े  होने के  वावजूद भी मेरे मुख से आत्मीय स्वर निकल पड़े । नायडू ने भी स्वीकृति में - मेरी तरफ देखा और प्रशंशनीय मुद्रा में कहा - " शेखर सर  नमस्ते । कैसे है सर जी  ? बहुत दिनों के बाद मिले है ?"  उसके चेहरे 
पर एक अजीब सी ख़ुशी कि रेखाए नांच गयी ।मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि वह मुझे अभी भी  
पहचान लिया था । वैसे तो उस ट्रेन एक्सीडेंट के बारे में मुझे सूचना थी ,पर नायडू ने दोनों  पैर  
गवा दिए थे , इसकी जानकारी  नहीं थी । 

" ये कैसे हुआ नायडू ?" - मैने विस्तृत जानकारी हासिल करने कि कोशिश की । उसने अगल - बगल देखें और एक लम्बी साँस लेते  हुए कहा । " सर आप को उस दुर्घटना कि जानकारी तो है ही , पर प्रशासन कि लापरवाही की  वजह से मुझे ये पैर गवाने पड़े ।रिलीफ वैन देर से आई थी  " इतना कहते  ही उसके आँखों में पानी भर आया  । " मै दो घंटे तक लोको में फँसा रहा । सभी समझ रहे थे कि मै मर गया हूँ ।अस्पताल पहुँचने के पहले ही मेरे दोनों पैर अधिक रक्तस्राव की  वजह से ढीले पड़ गए थे ।मै  उन लोको पायलटो का शुक्र गुजार हूँ जिन्होंने अपने खून दानकर मेरी जान बचाई । अन्यथा। .... । " नायडू ने अपनी आँखे पोछी और अपने हाथ कि अंगुलियो को मरोड़ने लगा । 

मैंने कहा -" ईश्वर को शायद यही मंजूर था नायडू । ईश्वर ही सबका रखवाला है । " मुझे पता था लोको पायलटो के परिवार वाले कैसे- कैसे  दर्द और अलगाव बर्दाश्त  करते है ।कुछ पूछूं ? इसके पहले ही नायडू ने कहा -"सर आज मेरी पत्नी ही मेरी दो पैर है ,इसके वजह से जिन्दा हूँ । " इतना कह नायडू ने बगल में बैठी अपनी पत्नी से परिचय करवाया । इस महान महिला के प्रति आदर स्वरूप मेरे दोनों हाथ नमस्कार हेतु  जुड़ गए ।उस साध्वी ने भी एक हल्की ख़ुशी के साथ अपने हाथ जोड़ दिए ।बिलकुल यह सच है कि लोको पायलटो को कोई सम्बल देता है तो वह है उनका परिवार ।तब - तक तिरुपति आ चूका था । हम सभी काम्पार्टमेंट से बाहर आ गए थे । नायडू ने मुझसे मिलने कि ख़ुशी जाहिर की  और सपरिवार आगे बढ़ गया ।

 मै एक टक लगाये सोंचता  रहा -यह कैसी विडम्बना है , दुनिया के मुसाफिरो को मंजिल तक ले जाने वाला , बैशाखियों के सहारे अपनी मंजिल तय कर  रहा है । क्या यह सच है  प्रशासन  इन्हे कोल्हू के बैल से ज्यादा महत्त्व नहीं देता ? जागो लोको पायलटो .... नयी सूरज की  नयी किरण अभी बाकी है । 

Wednesday, January 22, 2014

आधा घंटा पहले का निर्णय

मै अपने पाठको के समक्ष हमेश ही सत्य और प्रमाणिकता से जुड़े विषयों को प्रस्तुत करते रहा हूँ , चाहे कहानी हो या अनुभव । कभी -कभी अति आश्चर्य होता है , जब सत्य सामने खड़ा हो  और हम उसे समझ पाने या अनुभव कर सकने में अक्षम हो जाते है । कही ऐसा तो नहीं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता ? जो भी हो , हवा की रूख भापने वाले संभल जाते है । हमारे शरीर  का निर्माण पाँच तत्वो  से हुआ  है । अतः यह स्वाभाविक है कि इनमे से किसी के अपनत्व  का संपर्क एक अजीब सा अनुभव ही देगा । 

हम लोको चालको का कार्य स्थान्तरित होते रहता है । कभी इस शहर में तो कभी उधर । यात्री गाड़ी हो तो अनुभव के अवसर बहुत मिलते  है । तरह - तरह के यात्रियो से संपर्क बनते है । हर किस्म के लोग संपर्क में आते है । इस अनुभव और प्रश्नो कि लड़ी उस समय और बढ़ जाती है ,जब किसी बाधाबश गाड़ी देर तक रूक गई हो । यात्री  झुण्ड के झुण्ड लोको के पास आ खड़े होते है । प्रश्न वाचक चेहरे , प्रश्न वाचक शव्द -हमे संयम कि पटरी पर ला घसीटते है । 

लाख करें चतुराई पर विधि कि लिखन्ती को कोई टाल नहीं सका है । अगर ईश्वर है , तो कालनिर्णय का चांस सभी को देते है । कोई जरूरी नहीं कि आप भी इस मत से सहमत हों । उस दिन ऐसा ही कुछ हुआ था । मै अपने को -लोको चालक के साथ सिकंदराबाद आरामगृह में कॉफी कि चुस्की ले रहा था । ठंढ लग रही थी । सबेरे का वक्त था । अभी - अभी बंगलूरू - हजरतनिजमुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस को काम करके आयें थे । वि. आर. के. राव ने कहा -मै अपोलो अस्पताल जाकर आता हूँ । आप नास्ता कर लेना । मैंने पूछा - ऐसी क्या बात है ? 

उन्होंने जो बताएं वह इस प्रकार है --
" मेरे सम्बन्धी एक अपार्टमेंट हैदराबाद में ख़रीदे है । उन्होंने  शिफ्ट करने के पहले दूध गर्म और गृहप्रवेश कि पूजा हेतु , गुंतकल से  सपरिवार अपने कार से हैदराबाद आ रहे थे । वे लोग रात को ग्यारह बजे यात्रा शुरू किये । रास्ते में एक बजे कार चालक ने कहा -मुझे नींद आ रही है । एक घंटा सोना  चाहता हूँ । चालक को अनुमति मिल गयी । कार को सड़क के एक किनारें पार्किंग कर सो गया । कुछ आधे घंटे ही हुए होंगे , मेरे रिस्तेदार ने उस चालक को आगे चलने को कहा , क्यूंकि सुबह का मुहूर्त छूट सकता था । 

अल साये हुए चालक और कार चल दी । यात्रा के दौरान कुछ दूर जाने के बाद चालक ने कंट्रोल खो दी और कार ने पलटी मारी । सभी रात  भर घायल अवस्था में कार में पड़े रहे । किसी वाहन चालक या पथिक  ने उनकी सुध नहीं ली । सुबह आस - पास के गाव वालो की नजर पड़ी और उनके मदद से मेरे रिस्तेदार अपोलो में भर्ती है । सभी को गम्भीर चोट पहुंची है । "

जी हाँ । यह घटना पिछले माह कि है । अब वे लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके है । आधा घंटा पहले का निर्णय महंगा पड़ा ? या नियति में यही लिखा था ? या कर्म के परिणाम थे ?या अपार्टमेंट अशुभ था ? जो भी हो हवा और अग्नि में जरूर फर्क होता है । 

Wednesday, October 23, 2013

ऐसा होता है अनुशासन

अनुशासन की बात आते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है । मुख्यतः  जो इसके आदी नहीं है । पर अपने आप में अनुशासन बहुत ही लाजबाब चीज है ।जिन्हें यह प्रिय है , उनके लिए देव तुल्य  । इसके परिणाम उस समय आश्चर्य की सीमा को छू लेती  है , जब दोनों ही इसके प्यारे/ अवलंबी हो । इसके परिणाम इसके सकारात्मक / नकारात्मक इस्तेमाल पर निर्भर करते है ।

 हां यह जरूर पथ में कांटे / दुश्मनों की संख्या बढ़ा देती है , परन्तु  धैर्यवान उच्चाई को छु लेते है और कायर परिणाम की गिनती करते हुए हथियार डाल देते है । कभी ऐसा भी होता होगा जब  अनुशासित व्यक्ति अपने आप को भी थोड़े समय के लिए सोंचने के लिए बाध्य हो जाए ।वास्तव में ऐसा  होता भी है । किन्तु यह सत्य है कि अनुशासन स्वयं को फायदा और इसका दुरुपयोग दुसरे को फायदा पहुंचता है । 

हम रेलवे के लोको पायलटो की कहानी बहुत करीब से  इससे  जुडी हुई  है । इस अनुशासन के सहारे गाड़िया अपने मंजिल तक सुरक्षित पहुंचती है । इसी लिए कहते है - अनुशासन हटी , दुर्घटना घटी । मेरा निजी अनुभव  है कि अनुशासन प्रिय लोग दिल और दिमाग से कठोर होते है । कभी - कभी ऐसे कदम उठाने पड़ते है , जिसे याद करके अकेले में आंसू निकल आते है । 

एक वाकया प्रस्तुत है । घटना उस समय की है जब मेरी पोस्टिंग यात्री लोको चालक के रूप में पकाला में हुई  थी । सांय काल का समय । katapadi  से तिरुपति पैसेंजर ट्रेन लेकर जाना था । ड्यूटी में आ गया था । katapadi का अगला स्टेशन रामापुरम  है । जो करीब १५ किलोमीटर दूर है । मुझे ट्रेन प्रस्थान की आथारिटी दी गयी । अथारिटी एब्नार्मल थी यानी पेपर लाइन क्लियर और सतर्कता आदेश के साथ , क्युकी katapadi स्टेशन मास्टर का संपर्क रामापुरम  मास्टर से नहीं हो पा रही  थी  । सतर्कता आदेश को पढ़ा , जो मुझे १५ किलोमीटर की गति से katapadi से रामापुरम जाने की अनुमति दे रहा था । कुछ समय के लिए अवाक् हो गया । 

katapadi दक्षिण और दक्षिण मध्य रेलवे की सीमा है । katapadi दक्षिण रेलवे के अंतर्गत पड़ता है । सीएमसी /वेल्लोर जाने के लिए यही उतरना पड़ता है ।मै सतर्कता आदेश के साथ स्टेशन मास्टर के ऑफिस  में गया और कहाकि - हमारे रेलवे में एब्नार्मल परिस्थिति में १५ किलोमीटर की सतर्कता आदेश नहीं दी जाती है । रामापुरम की दुरी १५ किलोमीटर से ज्यादा है । १५किलोमीटर की गति से रामापुरम पहुँचाने में बहुत समय लगेगा । मास्टर ने जबाब में कहा - मै कुछ नहीं कर सकता । हमारे यहाँ जो नियम है , उसी के मुताबिक सतर्कता आदेश दिया हूँ । अब मै निरुत्तर हो गया ।

 मै भी दृढ अनुशासन प्रिय । मैंने दृढ निश्चय कर ट्रेन को अनुशासित रूप से चालू कर दिया । रामापुरम तक १५ किलोमीटर की  गति से चल कर१५ मिनट के रास्ते को  ७५ मिनट में पूरा करते हुए पहुंचा । इधर हमारे मंडल में खतरे की घंटी बजने लगी । आखिर ट्रेन किधर है ? रामापुरम में मदुरै एक्सप्रेस एक घंटे से लाइन क्लियर के इन्तेजार में खड़ी थी । रामापुरम पहुंचते ही मास्टर ने लेट आने की जानकारी मांगी । मैंने पूरी कहानी कह दी । सभी आश्चर्य चकित रह गए । सभी ने मानी - ऐसा होता है अनुशासन । 

Saturday, August 24, 2013

एक लघु कथा - पिघलती ममता

मुंशी प्रेमचंद पुस्तकालय -अपने  आप में एक अलग ही महत्त्व रखता है । इस पुस्तकालय में  एक साथ  पचासों लोग  बैठ सकते है । शिप्रा एक विदुषी महिला  थी । सामाजिक , राजनितिक , आर्थिक और देश -विदेश की समस्याओ में विशेष रूचि । इस पुस्तकालय के  सभी पाठको में बहुत लोकप्रिय । वह अपने एकलौते पांच वर्षीय पुत्र के  साथ नियमित पुस्तकालय में शरीक होती थी । बहुत ही मृदुल भाषी , शांत स्वाभाव वाली ।  उसका पुत्र भी सभी का प्यारा था । 

एक दिन हरीश ने उनके   पुत्र के सिर पर टोपी  रखते हुए -" टोपी " कह  दिया । शिप्रा के मुख की रेखाए तन गयी । माँ का कोमल दिल , पुत्र के प्रति इस्तेमाल  विशेषण के शव्द से आहत हो गया ।  मर्माहत सा टोपी को दूर फेंकते हुए ,पुस्तकालय से बाहर निकल  गयी । हरीश समझ न सका ? सन्न रह गया । समझ नहीं पाया कि उससे कौन सी गलती हो गयी   है । वैसे टोपी सिर की शोभा और  इज्जत बढाने वाली वस्तु  है । पैर पर थोड़े ही रखी जाती है ? एक माँ की ममता को ठेस पहुंचे , ऐसी  हरीश की इच्छा नहीं थी , महज प्यार से कह दिया था । एक इत्तेफाक था । 

पुस्तकालय में शिप्रा की उपस्थिति दिन प्रतिदिन कम होने लगी । सभी को उसकी कमी खलने लगी थी  । हरीश ने तय किया कि अवसर मिलने पर शिप्रा से गलती के लिए खेद प्रकट करेगा । वह अवसर की  ताक में था । आज पुस्तकालय के सभागार में एक समारोह का आयोजन किया गया था । शायद पुस्तकालय के एक  वार्षिक मैगजीन की लोकार्पण होने वाली थी । हरीश भी उपस्थित था । मैगजीन को आम पब्लिक हेतु लोकार्पित  किया गया । हरीश मैगजीन का मुखपृष्ट देख आश्चर्य चकित हो गया -" मुखपृष्ट पर शिप्रा के पुत्र की तश्वीर छपी थी । "

भीड़ में उसे शिप्रा दिखी । क्षमा हेतु इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है  । हरीश ने तपाक से कहा - " आप एक श्रेष्टतम माँ है ।" और शिप्रा कुछ कहे , तब - तक वह  आँखों से ओझल हो गया । एक माँ का कोमल मन हर्षित हो उठा ।  शिप्रा के मन में अमृत का संचार हो चूका था । एक माँ की ममता पिघलने लगी थी । वह पुस्तकालय फिरसे गुंजित होने लगा । 

एक शब्द कडुवाहट ,नफ़रत और  प्यार  को  फ़ैलाने के लिए काफी होते है । अंतर उसके उपयोग में है  । इसकी पीड़ा सभी नहीं , कोई माँ  ही समझ सकती  है । 

Saturday, May 18, 2013

मेरे नैना ...क्यू भर आयें ?

जीवन से मृत्यु का सफ़र सभी के लिए खुशनसीब नहीं होतें । संघर्ष भरी कड़ी का अंत ही तो मृत्यु  है । इन्होने जीवन को  एक कर्मयोगी की तरह जी थी । ऐसे पुरूष विरले ही देंखे थे , जिन्हें कभी गुस्सा आया हो ? किसी को भी मुस्कुराकर स्वीकार करने की शक्ति इनमे थी । बच्चे हो या नौजवान या हमउम्र ...सभी से हंसते हुए व्यवहार ..गजब से थे । ह्रदय में गुस्से की प्रतिशत नाममात्र भी नहीं । मैंने अपने जीवन का बचपन इनके आगोश में ही  विताएं । मुझे  याद है , एक ..... बस एक  बार थप्पड़ मारे थे , वह भी स्कूल जाने के लिए । पिताजी ऐसे थे , जिन्हें एक भी शत्रु नहीं थे । उनकी सक्सियत विरले ही मिलेगी । खुद हम भी उनके कदमो  पर चलने में असमर्थ है । 

पढ़े नहीं । स्कूल नहीं गए थे । रामायण की चौपाई या दोहें सामने बैठे बच्चो को प्यार से सुनाते  थे । किताबे धीरे - धीरे पढ़ लेते थे । कागजातों पर हिंदी में अपनी हस्ताक्षर कर लेते थे । गाँधी जी को देंखे थे हमें उनके बारे में भी बताते थे । उन्होंने कभी भी पैसे नहीं पूछे । निस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी । उन्हें गाय - गरू और खेती बहुत प्रिय थे । जब -तक शरीर में दम थे ,खेती को नहीं छोड़ें । 
उनकी बराबरी करने की शक्ति हम दोनों भाईयो में नहीं है । 

पिछले एक वर्ष से वे कमजोर हो गए थे । दावा -दारू चल रहा था । विस्तर पकड़ लिए थे ।  दिनांक ८ अप्रैल २ ० १ ३ को मेरे दादा जी के छोटे भाई का देहांत हो गया । पिताजी ने  घर के अन्दर से ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय देखा । वे भाव - विह्वल हो गए ।  " काका मुझे छोड़ कर चले गए । "- कह -कह कर रोने लगे थे । इसके उपरांत पिताजी की तबियत और ख़राब होने लगी । खान - पान बंद होने लगे । सभी को आशा की किरण कम नजर आने लगी । मुझे इसकी सूचना मिली । 2 3 अप्रैल 2 0 1 3 को बछिया के पूंछ पकडाने और उसको ब्राह्मण को दान देने की विधि संपन्न कराई गयी । इसके बाद उनकी आँखे और बात - चित बंद हो गयी । 

इस गंभीर समाचार के बाद मैंने अपनी यात्रा शुरू कर दी । 2 5 अप्रैल 2 0 1 3 को ट्रेन पकड़ी । गुंतकल से बलिया जाने में कम से कम 4 8 घंटे लगते है । इधर सभी परेशां थे क्यूंकि उनके काकाजी का क्रियाकर्म 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को होनी थी । डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे । यात्रा के दौरान हर घडी की खबर मुझे दी जा रही थी । 2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को इलाहबाद पहुंचा । देखा -मोबाईल का स्क्रीन क्रैक हो गया था । मन में डर पैदा हो गया । वातानुकूलित डिब्बे में अपने बर्थ में मुंह छुपा कर रो दिया था । 

शाम को साढ़े छह बजे बलिया पहुंचा । मेरे बहनोई मुझे लेने के लिए आयें । घर पहुँचाने में बस आध घंटे की दुरी बाकी थी । तभी बहनोई की मोबाईल बजी । बहन का फोन था । फोन रखते ही उनकी आँखे भर आई । माजरा समझते देर न लगी । पिताजी जी मुझसे मिले वगैर प्रस्थान कर चुके थे । रात का अँधेरा , चारो तरफ फैला हुआ था । जो उत्तर - प्रदेश की उन्नति का गवाह था । घर में कदम रखते ही माँ , बहन और अन्य सभी रो पड़े । मै  पिताजी के पार्थिव शरीर से चिपक कर रोने लगा । माँ सुध खोये जा रही थी । अपने ऊपर कंट्रोल किया और माँ को सान्तवना दी की आप के सामने अभी मै हूँ । आप निः फिक्र रहे । 

कितनी विडम्बना थी की 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को जब -तक उनके काकाजी का क्रिया कर्म और भोज की प्रक्रिया चली  , उनके प्राण नहीं निकलें ।शायद  पिताजी की आत्मा अपने काकाजी  के रस्म में खलल नहीं डालनी चाहती थी  । सभी कह रहे थे की अंतिम क्षणों में तीन बार भगवान का नाम लिए थे । दुसरे दिन 2 7 अप्रैल 2 0 1 3 को पिताजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपूर्त कर दिया गया । कईयों की इच्छा गंगा में परवाह करने की थी । किन्तु माँ ने इच्छा जाहिर कि  की  हमारे पुरखे जिस जगह अग्नि को सुपुर्द हुए है  , वही इनका भी संस्कार होगा । माँ की इच्छा भला कौन टाले  ?  ज्येष्ठ पुत्र के नाते मुझे ही मुखाग्नि देनी पड़ी । बाकी सभी क्रिया कर्म गरूण पुराण के अनुसार पूर्ण हुए । 

कुछ सार्थक मुहूर्त होते है । जो कुछ न कुछ कह जाते है । सभी को इस मृत्यु रूपी सच्चाई का सामना करना है । दुनिया से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ ? बस अपने कर्मो के पद छाप छोड़ जाते है । 


                                             मेरी रेलवे की नौकरी दिनांक - 2 6 जून 1 9 8 7 । 
                                             मेरे दादाजी की मृत्यु दिनांक - 2 6  जून 1 9 9 6 । 
                                            मेरे पिताजी की मृत्यु दिनांक -2 6 अप्रैल 2 0 1 3 । 
                                             "--------------------------- "-2 6 .                    ?

जीवन की सबसे बहुमूल्य समय गवा दिया था । पिताजी का अंतिम आशीर्वाद से वंचित रहा । यह हमेशा ही खलेगा । मेरे नैना  फिर भर आयें ....फिर भर आयें ......



Monday, February 11, 2013

हाय जीवन तेरी यही कहानी

मिडिया में खलबली | बारम्बार समाचार  चैनलों पर दिखाया  जाना की अफजल गुरु को ९ फरवरी २०१३ को सुबह फांसी के तख्ते  पर लटका दिया गया | वाकई आश्चर्य चकित करने वाली समाचार थी | सभी प्रतिक्रियाएं   
देश की कानून की जीत  को दर्शाती हुयी , आने लगी |  या यूँ  कहें की दो दिनों की कहानी मानस  पटल पर सदैव यादगार बन कर रहेगी | एक तरफ अफजल गुरु को मृत्यदंड , तो दूसरी तरफ दिनांक १० फरवरी २०१३  को रात्रि सात बजे के करीब , इलाहाबाद में होने वाले भगदड़ और मौत का तांडव | एक तरफ उल्लास तो दूसरी तरफ उदासी का माहौल | 

 किन्तु मैंने कल ( १० फरवरी २०१३ को साढ़े छ बजे के करीब )  इन दो घटनाओ के बीच जो देखा , वह मनुष्य को जीवन और मृत्यु के बारे में सोंचने को मजबूर कर देती है | सभी के लिए जीवन ...जीवन नहीं है | कुछ लोग ऐसे है जो मृत्यु को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है |काश   मृत्यु प्राप्त लोगो के अनुभव  विश्व में उपलब्ध होते , जब की काल्पनिक अवशेष बहुत मिल जायेंगे |  ऐसा यदि  होता तो मनुष्य के मृत्यु भी हसीन होते | सभी बड़े - बड़े ग्रन्थ फीके पड़ जाते | हाय जीवन तेरी यही कहानी |

कल हुआ यूँ की , मुझे राजधानी एक्सप्रेस ( १२४३०  हजरत निजामुदीन - बंगलुरु एक्सप्रेस ) को  लेकर सिकंदराबाद से गुंतकल तक आना था | अतः ड्यूटी में तैनात था | अभी ट्रेन नहीं आई थी | अतः  मै और लोको इंस्पेक्टर श्री जय प्रकाश एक नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर हैदराबाद एंड में खड़े होकर वार्तालाप में व्यस्त थे | हमने देखा ..कुछ पांच /छ युवक एक युवक को पकड़ कर खिंच रहे है  ,( सभी के पीठ पर छोटे - बड़े बैग लटके हुए थे  , शायद वे १२५९१ गोरखपुर - बंगलुरु एक्सप्रेस से उतरे थे ) और स्टेशन से बाहर ले जाने का प्रयास कर रहे थे | वह जाने से इनकार कर रहा था | तभी पास से गुजरते आर.पि.ऍफ़ के पास भी गए | मामला कुछ समझ में नहीं आ रहे  थे | हमने सोंच शायद आपसी झगडा या चोरी का मामला होगा |

और ये क्या ?  पकड़ ढील पड़ते ही वह युवक भाग खड़ा हुआ | एक और युवक अपने बैग को जमीन पर रख उसके पीछे दौड़ा | समय का अंतर बढ़ चला था  | भागने  वाला युवक पास के इलेक्ट्रिक खम्भे से लगा एक इलेक्ट्रिक ट्रांसफोर्मर के खुले तार को अपने हाथो से पकड़ लिया | देखते ही देखते उसके शरीर में आग लग गयी | वह धडाम से जमीन पर गिर गया | उसके पीछे दौड़ने वाले  युवक के पैर जहाँ के तहां रूक गए | लोगो का हुजूम लग गया | किसी को अपने आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था | क्षण में क्या से क्या हो गया था | तुरंत मौके पर जी.आर.पि और आर.पि.ऍफ़ को लोग आ धमके और कानूनी प्रक्रिया तेज हो चली थी | क्या ये आत्महत्या की कोशिश थी , जो  देहदाह में बदल चुकी थी ?

राजधानी एक्सप्रेस  के दस नंबर प्लेटफोर्म पर आने की सूचना दी जा रही थी | हम दोनों उस प्लेटफोर्म की ओर चल दिए | आज के अखबारों में यह समाचार जरूर छपा होगा |

जीवन अमूल्य है , इसका मजा लें  और जीवन से कभी  निराश  न हो |

Thursday, December 13, 2012

दुरंतो

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो  में हिंसा का बहुत ही कम स्थान है । स्वाभाविक है की इस धर्म के अनुयायी भी नर्म , शांत और भाई- चारे से ओत प्रोत होंगे ही । यहाँ किसी धर्म विशेष के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूँ । प्रसंग वश कहने पड़ते है । उस दिन रविवार था अर्थात दिनाँक 9 वि दिसम्बर 2012 ।  गुंतकल से दुरंतो  ट्रेन लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । 424 किलो मीटर की दुरी तय करनी थी । वैसे ट्रेन हमेशा ही समय से चलती है । पर उस दिन देर से आई पांच बजे सुबह  , वजह था बंगलुरु मंडल में रेल  लाइन में वेल्ड फेलुर । एक बार गुंतकल से ट्रेन चली तो सिकंदराबाद के पहले कहीं नहीं रुकती है । 

अब आप सोंच सकते है की लोको पायलटो  के ऊपर क्या गुजरती होगी , जब उन्हें संडास /पेशाब की जरुरत महसूस हो । लोको के अन्दर इसकी कोई सुबिधा नहीं है । पानी पीना बंद , नास्ते    बंद । ट्रेन की गति थमने की नाम नहीं लेती । दुरंतो जो है । इस हालत में स्वास्थ्य को ठीक रख पाना   कितना मुश्किल है । यह हमारे जीवन की रोज - मर्रा  और भोगने वाली प्रक्रिया  है । यही वजह है की लोको पायलटो को  सुगर / बीपि खाए जा रही  है ।  " ये भी कोई जीवन है ।"- एक सहायक ने गंभीर हो कहा था ।

 " रेल प्रशासन को कुछ करना चाहिए । आखिर अफसर किस लिए है ?"- एक बार यात्रा के दौरान एक यात्री ने प्रश्न किया  था । आप समझते है । वो समझे तब न । बगल वाले ने प्रश्न जड़ दिया । अजीब सा लगता है , जब यात्रा के दौरान साधारण सी पब्लिक बहुत कुछ कह देती है , जो हमारे जिह्वा पर नहीं आते । आखिर क्यों सत्ताधारी /प्रशासनिक अधिकारी अपने सूझ - बुझ से कल्याणकारी योजनाओ को मूर्त रूप नहीं देतें ?

लिंगम्पल्ली  और हाफिजपेट  के बीच  महज चार किलोमीटर का फासला है । दिल धड़क उठा जब एक दो वर्ष का लड़का  पटरी के बीच में आ गया । सिटी बजाये जा रहें थे । अब कुछ करे , तब तक उसकी माँ सामने आती ट्रेन को भांप ली और तुरंत देर किये बिना बच्चे को पटरी से बाहर  खिंच ली । लोको के अन्दर चार व्यक्ति थे । सभी के मुह से चीख निकल गयी । हे भगवान ! आप की कृपा अपरमपार   है । लोको के अन्दर एक अफसर भी थे , घबडा सा गए । अभी थोड़ी आगे ही बढे थे की फिर दो लडके करीब ग्यारह के आस - पास के होंगे , अपनी साईकिल को रेल के बीच  रख कर विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेन को देखने में व्यस्त । सिटी बजती रही , हाई टेक सिटी के प्लेटफोर्म पर खड़े लोगो ने शोर मचाई और वे दोनों लडके ट्रेन के आने की आभास होते ही ,सायकिल को तुरंत रेल की मध्य से बाहर खिंच लिए । ट्रेन  तीब्र  गति से आगे निकल गयी ।फिर कुछ दुरी पर एक महिला मरने से बची । एक ब्लाक के बीच .. तीन  जीवन को जीवनदान मिली ।
सब कुछ उसके हाथ में है , हम तो वश एक आधार /कारक  है । ॐ साईं
 

Sunday, November 11, 2012

सावधानी हटी ....दुर्घटना घटी ।

आज धन- तेरस है । दक्षिण दिशा में दीप जलाने  और अकाल मृत्यु से मुक्ति का दिन । सभी जगह दुकाने सजी हुई  है । नए सामानों को खरीदने की होड़ । सभी को लक्ष्मी जी को मनाने और अपने घर में आगमन की  तैयारी / और  इंतज़ार । अपने - अपने ढंग और तैयारी  । साफ़ - सफाई और समृद्धि  की पूजा / त्यौहार है ..यह ..दिवाली । कहीं  समृद्धि  तो कहीं दिवालापन । तरह  तरह के भाग्य आजमाने के नुस्खे ।

 कल किसने देखा है । अतः आज की सुरक्षा  ही कल की दिवाली है । मनुष्य अत्यंत ही महत्वाकांक्षी प्राणी है । अपने अभिलाषा  की पूर्ति हेतु यह जरुरी है .कि ..कदम - कदम पर  सावधानी बरती  जाय । अब  देखिये ना ...कल यानी  दिनांक  10 . 11. 2012  कि एक घटना याद आ गयी । मै 12163 - दादर -चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता  जा रहा था ।   लोको चालको को ड्यूटी में आते ही सतर्कता आदेश ( caution order ) दिए जाते है । जिसमे यह अंकित होते है कि उसे किन दो स्टेशन के  बीच  , किस किलोमीटर के पास , कितने गति से ट्रेन को  चलाने है तथा किन चीजो का विशेष ध्यान  रखने है ।
 
मुझे भी सतर्कता आदेश की कापी स्टेशन मैनेजर ने दी  । ट्रेन समय से गुंतकल आई । हमने ट्रेन का चार्ज लिया । समय से रवाना भी हुयी । हम जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे ...क्रमानुसार ...आगे आने वाले स्टेशन के सतर्कता क्रम पर भी नजर थी । अचानक मैंने देखा कि पताकोत्तचेरुवु और गूती स्टेशन के बीच 402/1-0 किलोमीटर पर 30 किलोमीटर की गति से जाने का आदेश है क्यों की रेल जॉइंट टूटी हुई  है और मरम्मत का कार्य चल रहा है । 

 तुरंत मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठा । ये दोनों स्टेशन तो ठीक है , परन्तु ये किलोमीटर इन दोनों स्टेशन के बीच  नहीं है , जरुर कोई प्रिंटिंग में गलती हुई  है । मैंने अपने सहायक को कहा की डिप्टी कंट्रोलर को फोन करे और जानकारी लें । सहायक लोको चालक ने ऐसा ही किया । किन्तु डिप्टी कंट्रोलर से सकारात्मक उत्तर नहीं मिला । ट्रेन 105 किलोमीटर की रफ़्तार से दौड़ रही थी ।

असमंजस की घडी । सामने पताकोत्तचेरुवू स्टेशन आने वाला था । कई स्टेशन मास्टरों को वल्कि - ताल्की पर पुकारा गया । कोई जबाब नहीं । अंततः मैंने ट्रेन को पास थ्रू सिगनल होने के वावजूद भी पताकोत्ताचेरुवु स्टेशन में खड़ा  कर दिया । ट्रेन के रुकने के बाद स्टेशन मास्टर हरकत में आया । उसने रुकने का कारण पूछा । मेरे सहायक ने पूरी जानकारी दी । स्टेशन मास्टर एक नया सतर्कता आदेश तैयार कर भेजा । जिसमे किलोमीटर  420/1-0  था । इस तरह एक भीषण दुर्घटना  होने से बची । क्योकि जहाँ कार्य चल रहा था ..वहां ट्रेन गति से चलने की वजह से जान - माल का नुकशान हो सकता था और जहाँ कार्य नहीं हो रहा था , वहां ट्रेन  30 किलोमीटर की गति से चलती थी ।

इसी लिए कहते है --एक लोको चालक सैकड़ो  को बचा सकता है , सैकड़ो मिलकर एक लोको चालक को नहीं बचा सकते  । आज रेलवे में लोको चालक उपेक्षा का शिकार है , फिर भी दिन - रात कड़ी मेहनत कर आप को सुरक्षित ..आप के मंजिल तक पहुँचाने में सतत प्रयत्नशील ।

जी हाँ ...सामने दिवाली है । आप जश्न में मस्त रहेंगे और हम परिवार से दूर आप की सेवा में । पटाखे जलेंगे । प्रदुषण बढ़ेंगे । जेब खाली  होंगे ..जेब भरेंगे । इस पावन - पर्व पर आशा करता हूँ सभी की दिवाली मंगल मय और समृद्धि से परिपूर्ण  होगी । आप इस आतिशबाजी से सावधान रहें और हम ट्रेन के परिचालन में , क्युकी सावधानी हटी , दुर्घटना  घटी ।

Monday, October 29, 2012

फर्क तो है ।


जिस तरह दुनिया में कंटीले या बेकार के वृक्ष  कहीं भी स्वतः उग जाते है तथा सदुपयोगी  वृक्ष सभी    जगह नहीं मिलतें  , वैसे ही संसार में बुरे प्रवृति के व्यक्ति सभी जगह भरे पड़े है । अच्छे लोगो की पहचान और उपस्थिति का आभास बड़ा ही कठिन है । अच्छे लोगो की आवश्यकता उनके अनुपस्थिति के समय महसूस होती  है । संसार में बुरे लोग इस तरह से छाये है कि उनके आगे नियम - क़ानून सब फीके पड़  जाते है । रावण  हो या महिसाशुर , कंश  या दुर्योधन सभी  अपने युग के कालिमा / कलंक थे । अंततः विजय उजाले की ही होती है । सच्चे व्यक्ति में त्याग की भावना चरम पर होती है  , यही वह शक्ति है , जो उसे स्वार्थ से दूर ले जाती है , और एक दिन उसके अन्दर ईश्वरीय  शक्ति का विकास हो जाता है । वह इश्वर स्वरुप  बन जाता है । उसके वाणी में ओज , मुख पर आकर्षण और कार्य में शक्ति भर आती है ।

हम इस क्षेत्र में कहाँ तक आगे है , खुद ही महसूस  कर सकते है । मनुष्य जाती ही एक ऐसा प्राणी है , जो कुछ सोंच और महसूस कर सकता है । अन्यथा पत्थर .......और उसमे कोई भिन्नता नहीं । भारतीय संघ में प्रशासन के कई रूप है । कई नियम - कानून । सभी नियम कानून सर्वजन हिताय से प्रेरित है । फिर भी इसके अनुचित उपयोग और परिणाम निकल आते है । आखिर क्यों ?

यह  व्यक्ति विशेष के व्यवहार  और  इमानदारी पर निर्भर करता है । उसके सकारात्मक सोंच पर निर्भर करता है । अब देखिये ना ......हमारे रेलवे में एक प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जो भी हो ....वह निरिक्षण के दौरान लोको के अन्दर ....लोको पायलट के सिट पर नहीं बैठ सकता । इससे लोको पायलटो के कार्यनिष्पादन  , सिग्नल को देखने और बहुत सी चीजो में व्यवधान पड़ती है , जो ट्रेन को सुरक्षित परिचालन के लिए सही नहीं है । अब आप ही परख लें ---कौन कैसा है ?

1)  मै  एक दिन 12163 दादर - चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता जा रहा था । गुंतकल में ही मंडल सिगनल अधिकारी लोको के अन्दर तशरीफ लायें और आते ही सहायक के सिट पर  ऐसे बैठ गए , जैसे जल्दी ग्रहण ( बैठो  ) करो नहीं तो दूसरा कोई बैठ जायेगा । तादीपत्री   में उतर गएँ ।

2) इसी ट्रेन में कडपा  से एक और अधिकारी लोको में आयें .....आते ही अपना परिचय दिए ...मै सहायक  निर्माण अधिकारी / कडपा हूँ और राजम पेटा  तक आ रहा हूँ । लोको में खड़ा रहे  । सहायक के सिट पर नहीं बैठे । सहायक ने शिष्ठाचार बस  बैठने का आग्रह भी किया ।

3) एक बार मै सिकन्दराबाद से 12430 राजधानी एक्सप्रेस ( हजरत निजामुद्दीन से बंगलुरु  ) आ रहा था । ट्रेन के आने की इंतजार में प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा था । तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और अपना परिचय चीफ कमर्शियल  मैनेजर के निजी सचिव के रूप में करते हुए कहा - कि साहब आपके लोको में फूट प्लेट इन्स्पेक्सन  के लिए आ रहे है । मैंने कहा मोस्ट वेलकम सर । ट्रेन आई । साहब आयें । उन्होंने भी आते ही मुझसे हाथ मिलायी , परिचय का आदान - प्रदान हुयी । लोको के अन्दर आये ।

दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्य कमर्शियल मैनेजर ....यह स्वाभाविक   था  कि  हम उनका भरपूर   स्वागत करें  । ट्रेन  चल दी । हमने उनसे सहायक के सिट पर बैठने के लिए आग्रह की , पर वे ऐसा करने से साफ़ इंकार कर  गएँ  और प्यार भरे शव्दों में कहा कि आप लोग मेरे बारे में चिंता न करे ....आप लोगो का कार्य महत्वपूर्ण है । अंततः वे 304 किलो मीटर तक लोको में -खड़े  खड़े  यात्रा / निरिक्षण कियें  और रायचूर में जाते समय दो टूक बधाई देना भी न भूलें ।

जी हाँ --अब आप क्या कहेंगे ?   एक ही कानून ....एक ही संस्था ...किन्तु कार्यप्रणाली ...बदल जाती है । इसके भागीदार हम और आप ही तो है । आखिर फर्क तो है ।

Monday, August 20, 2012

छिपकली - डूबते को तिनके का सहारा



थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी  । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।  

ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै  तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का -  कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।


उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल  लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा  - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर  गया है । दाल मथना बाकी है ।

अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर  देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ ।  सभी  के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ  देता  था और आज हम सभी लोको पायलट  विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।

फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल  दिया गया और नए सिरे से तैयारी  की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।


Thursday, June 28, 2012

सिल्वर जुबिली समारोह -1987 की मार्मिक यादें

जीवन में  संघर्ष और उल्लास का अंत नहीं है ! जो जीता वही  सिकंदर ! भावनाए उमड़ती है , स्वप्न आते है , परछाईया साथ देती है किन्तु स्पंदन के साथ ही परिवर्तित हो जाती है ! हवा स्पर्स करती हुयी आगे बढ़ जाती है ! पीछे मुड़  कर नहीं देखती ! वस् यादें रह जाती है ! संजोये रखने के लिए ! कभी - कभी चेहरे  की झुर्रिया देख मन व्याकुल हो जाता है !


25 जून और 26 जून 2012 , मेरे लिए बहुत कुछ लेकर आया ! 25 जून को लोको पायलटो और उनकी परिवार के सदस्यों ने मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के समक्ष धरना दिया ! जो मूल भुत सुबिधाओ और अनुशासन की मांग पर केन्द्रित था ! वही यह दिन मेरे कैरियर के पच्चीसवे वर्ष का अंतिम दिन था ! एक  लम्बी अंतराल और देखते - देखते दिन  निकल गए  ! सोंचने पर मजबूर होना पड़ा , क्या खोया और क्या पाया !

मेरे बैच  के दोस्तों ने सिल्वर जुबिली मनाने का प्रस्ताव रख दिए ! फिर क्या था -26 जून 2012 को इस प्रोग्राम को अंजाम मिल गया ! दो -तीन साथियो  की कड़ी मेहनत के बाद रेलवे इंस्टिट्यूट में इस प्रोग्राम को सफलता पूर्वक आयोजित किया गया ! यह प्रोग्राम सुबह आठ बजे से शुरू होकर रात्रि के साढ़े दस बजे समाप्त हुआ !

हमसभी 1987 में अपरेंटिस फायर मेन " ये " ग्रेड में ज्वाइन किये थे ! उस समय स्टीम  लोको चलती थी ! नए - नए थे ! सभी के अन्दर उल्लास भरे हुए थे ! जिधर छुओ उधर कालिख , तेल ! दो वर्ष ट्रेंनिंग करनी पड़ी थी ! इसी दौरान सभी स्टीम लोको धीरे - धीरे गायब हो गए ! पहले तो ऐसा लगा की नौकरी छोड़ कर भाग जाए , किन्तु ड्राईवर बनने की तमन्ना दिल में उछाले ले रही थी ! प्रायः सभी साथी  पदोन्नति करते हुए लोको इंस्पेक्टर / क्रू कंट्रोलर /ऑफिस मैनेजर /लोको पायलट ( मेल / एक्सप्रेस) वगैरह तक कार्यरत  है ! किसी ने भी ऑफिसर बनने की इच्छा नहीं जताई और न बने  ! उसमे मै  भी एक हूँ !

सभी को समय रहते ही निमंत्रित कर दिया गया था ! हम कुल 34 थे !  20 साथी ही अपने परिवार के साथ शामिल हुयें ! दो साथी इस दुनिया में नहीं रहे ! उनके याद में, श्रधांजलि हेतु ,  दो मिनट का मौन  रखा गया ! सुबह की शुरुआत   दक्षिण भारतीय इडली , दोसे , वडा  चटनी और  साम्भर के नास्ते  से शुरू हुआ ! दोपहर का मेनू बड़ा ही स्वादिस्ट - चिकन , मटन,  रोटी  हलीम , ब्रिंजल करी , रायता , ice  cream ,सलाद तले  हुए  चावल ,  वेज कुरमा  वगैरह - वगैरह ! सभी की हालत देखते बनती थी  , क्या खाएं न खाए की चिंता !सब कुछ स्वादिस्ट ! रात का भोजन बिलकुल शाकाहारी ! रोटी चावल दाल रसम साम्भर पापड़ दही केला  आदी ! मनोरंजन के लिए आर्केस्ट्रा का इंतजाम ! बच्चे और कई साथियों ने नृत्य कर इसके लुत्फ लिए !छोटा सा शहर , किन्तु मेट्रोपोलिटन के इंतजाम , किसी को किसी तरह की कमी महसूस नहीं हुयी !


 जो भी हो यह सिल्वर जुबिली एक याद ले कर आई और यादगार बन कर चली गयी ! 25 को पच्चीसवे का अंत और 26 को छब्बीसवे की शुरुआत अपने आप में एक अर्थ छोड़ चली गयी  !सभी परिवार एक दुसरे से मिलकर अत्यंत खुश थे !सभी साथियों ने अपने - अपने अनुभव बाँटें ! जो सुन और देख परिवार के सदस्य अचंभित थे !बच्चो को  कभी भी स्टीम लोको देखने को नहीं  मिली थी , वे मंच पर लगे फ्लक्स के तस्वीर से संतुष्ट लग रहे थे ! कईयों ने इसके कार्य पद्धति पर कई प्रश्न पूछ डाले !स्टीम लोको में कार्य करना कठिन , किन्तु बहुत ही स्वास्थ्य बर्धक !
परिवार और छोटे - बड़े बच्चो को देख ऐसा लगा  जैसे  - इंजन के पीछे रंग - विरंगे डब्बे ! एक  और अनेक में परिवर्तित ! सभी इस   अनोखी समागम को देख दंग ! हमारे पीछे इतनी बड़ी संख्या ! कल क्या होगा ?अब वह दिन दूर नहीं जब हमें बच्चो के शादी - व्याह के मौके पर शरीक होना होगा ! इस समूह में लड़कियों की संख्या ज्यादा और लड़को की कम थी !इस समारोह के मुख्य अतिथि सीनियर मंडल यांत्रिक इंजिनियर और उनकी टीम थी ! उन्होंने अपने अविभाषण  में सभी की मंगल की कामनाये करते हुए  बधाई दी ! संध्या के समय  सहायक  मंडल यांत्रिक  इंजिनियर के कर कमलो से सभी साथियों को मोमेंटो प्रदान की गयी ! जो हमेशा इस सुनहरे दिन की याद दिलाता रहेगा !  इस तरह से रेलवे के अंतिम और आखिरी   स्टीम लोको के साक्षियों की सिल्वर जुबिली 26 जून 2012 को हर्षौल्लास के साथ संपन्न हुआ !

Sunday, June 3, 2012

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ ! मनुष्य दुनिया में सबसे सर्वोत्तम प्राणी के श्रेणी में गिना जाता है !विचार , रहन - सहन ,पराक्रम और बुद्धि में अंतर स्वाभाविक है ! यही मनुष्य को अलग - अलग चोटियों पर ले जाते है ! कुछ गिर जाते है , कुछ सम्हल जाते है  तो कुछ ऐसी स्थान प्राप्त कर लेते है , जहाँ सबके पहुँचने की  आस कम ही होती है !

आखिर ये सब कैसे और क्यूँ होता है ? 

दुनिया में आने और जाने के रास्ते तो एक जैसा ही है ! बीच  में इतने अंतर क्यूँ ? क्या ये सब हमारे मुट्ठी में बंद तकदीर का कमाल है या कोई आप रूपी  शक्ति कंट्रोल करती है ! जो भी हो मै तो तक़दीर और अंगुलियों के सतरंगी ध्वनि  पर ही विश्वास करता हूँ ! हम अपने अंगुलियों के कर्म रूपी शक्ति से तक़दीर रूपी घरौंदे का निर्माण करते है ! सभी के तकदीर सुनिश्चित है ! इसमे फेर बदल हमारे कर्मो पर निर्भर है ! अगर ऐसा नहीं होता तो आकाश में फेंकी हुई पत्थर इधर - उधर न गिर , हमारे निशान पर ही गिरते !




कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस  जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक  ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है !  जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद  हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4)  एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से  स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के  जॉब से मुक्त है !(7)  एक लोको पायलट काटपादी  गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !  


 अभी बहुत से उदहारण मेरे पास  है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य  स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले  का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र  बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !


( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)